न कोई ख्वाब हमारे है, न ताबीरे है
न कोई ख्वाब हमारे है, न ताबीरे हैहम तो पानी पे बनाई हुई तस्वीरे है
लुट गए मुफ्त में दोनों, तिरी दौलत मिरा दिल
ए सखी ! तेरी-मेरी एक सी तकदीरे है
कोई अफवाह गला काट न डाले अपना
ये जुबाने है कि चलती हुई शमशीरे है
हम तो नाख्वादा नहीं है, तो चलो आओ पढ़े
वो जो दीवार पर लिखी हुई तहरीरे है
हो न हो यह कोई सच बोलने वाला है क़तील
जिसके हाथो में कलम, पाँव में जंजीरे है - क़तील शिफ़ाई
n koi khwab hamare hai, n tabire hai
n koi khwab hamare hai, n tabire haiham to pani pe banai hui tasweere hai
lut gaye muft me dono, tiri doulat mira dil
e sakhi! teri-meri ek si takdeere hai
koi afwaah gala kaat n dale apna
ye jubane hai ki chalti hui shamshire hai
ham to nkhwada nahi hai, to chalo aao padhe
wo jo deera par likhi hui tahreere hai
ho n ho yah koi sach bolne wala hai qateel
jiske hatho me kalam, paanv me zanzeere hai - Qateel Shifai
बहुत सुंदर ग़ज़ल पढवाने का शुक्रिया।