मुद्दत से तो दिल की मुलाकात भी गई - मीर तक़ी मीर

मुद्दत से तो दिल की मुलाकात भी गई जाहिर का पास था, सो मदारात भी गई

मुद्दत से तो दिल की मुलाकात भी गई

मुद्दत से तो दिल की मुलाकात भी गई
जाहिर का पास था, सो मदारात भी गई

कितने दिनों से आई थी उसकी शबे-विसाल
बाहम रही लड़ाई, सो वह रात भी गई

कुछ कहते आ के हम, तो सुना करते वो खामोश
अब हर सुखन पे बहस है, वह बात भी गई

फिरते है 'मीर' ख्वार कोई पूछता नहीं
इस आशिकी में इज्जते-सादात भी गई - मीर तक़ी मीर
मायने
पास = लिहाज/शिष्टाचार, मदारात = महमान नवाजी, शबे-विसाल = मिलन की रात, बाहम = परस्पर, सुखन = बात, ख्वार = त्रस्त/दुखी, इज्जते-सादात = कुलीन होने की प्रतिष्ठा


Muddat se to dil ki mulakat bhi gai

Muddat se to dil ki mulakat bhi gai
zahir ka paas tha, so madarat bhi gai

kitne dino se aai thi uski shabe-visal
baham rahi ladai, so wah raat bhi gai

kuchh kahte aa ke ham, to suna karte wo khamosh
ab har sukhan pe bahas hai, wah baat bhi gai

phirte hain 'meer' khwar koi puchhta nahi
is ashiqi men izzat-e-sadat bhī gai- Meer Taqi Meer

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