उस शाम वो रुख़्सत का समाँ याद रहेगा - इब्ने इंशा

उस शाम वो रुख़्सत का समाँ याद रहेगा वो शहर वो कूचा वो मकाँ याद रहेगा

उस शाम वो रुख़्सत का समाँ याद रहेगा

उस शाम वो रुख़्सत का समाँ याद रहेगा
वो शहर वो कूचा वो मकाँ याद रहेगा

वो टीस कि उभरी थी इधर याद रहेगी
वो दर्द कि उट्ठा था यहाँ याद रहेगा

हम शौक़ के शोले की लपक भूल भी जाएँ
वो शम-ए-फ़सुर्दा का धुआँ याद रहेगा

हाँ बज़्म-ए-शबाना में हमा-शौक़ जो उस दिन
हम थे तिरी जानिब निगराँ याद रहेगा

कुछ 'मीर' के अबयात थे कुछ 'फ़ैज़' के मिसरे
इक दर्द का था जिन में बयाँ याद रहेगा

आँखों में सुलगती हुई वहशत के जिलौ में
वो हैरत ओ हसरत का जहाँ याद रहेगा

जाँ-बख़्श सी उस बर्ग-ए-गुल-ए-तर की तरावत
वो लम्स-ए-अज़ीज़-ए-दो-जहाँ याद रहेगा

हम भूल सके हैं न तुझे भूल सकेंगे
तू याद रहेगा हमें हाँ याद रहेगा - इब्ने इंशा
मायने
बज्मे-शबां=रात कि महफ़िल, हमाशौक=बड़े शौक से, निगरा=देखने वाले, अबियात=शेर, मिसरे=कविता कि लाइने


us sham wo rukhsat ka saman yaad rahega

us sham wo rukhsat ka saman yaad rahega
wo shahr wo kucha wo makan yaad rahega

wo tis ki ubhri thi idhar yaad rahegi
wo dard ki uttha tha yahan yaad rahega

hum shauq ke shole ki lapak bhul bhi jayen
wo sham-e-fasurda ka dhuan yaad rahega

han bazm-e-shabana mein hama-shauq jo us din
hum the teri jaanib nigaran yaad rahega

kuchh 'mir' ke abyat the kuchh 'faiz' ke misre
ek dard ka tha jin mein bayan yaad rahega

aankhon mein sulagti hui wahshat ke jilau mein
wo hairat o hasrat ka jahan yaad rahega

jaan-bakhsh si us barg-e-gul-e-tar ki tarawat
wo lams-e-aziz-e-do-jahan yaad rahega

hum bhul sake hain na tujhe bhul sakenge
tu yaad rahega hamein han yaad rahega - Ibne Insha

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