नींद के पाँव पे पत्थर बन के आते है ख्वाब
नींद के पाँव पे पत्थर बन के आते है ख्वाबजख्म देते है उन्हें और टूटते जाते है ख्वाब
आप चाहे तो हमारी पुतलियो से पूछ लों
हमने यादो की रुई से रात भर काते है ख्वाब
नर्म चेहरे और उन पर सख्त चोटों के निशान
सोचिए इनके सिवा अब और क्या पाते है ख्वाब
बंद सीपी में छुपे अनमोल मोती की तरह
अपने अन्दर की चमक खुद ढूंढ़ कर लाते है ख्वाब
नींद में चलने का इनको रोग है लेकिन कुंवर
नींद के बाहर भी अक्सर मुझसे टकराते है ख्वाब - कुंवर बेचैन
nind ke paav pe patthar ban ke aate hai khwab
nind ke paav pe patthar ban ke aate hai khwabjakhm dete hai unhe aur tutte jaate hai khwab
aap chaho to hamari putliyo se puchh lo
hamne yaado kirui se raat bhar kaate hai khwab
narm chehre aur un par sakht choto ke nishan
sochiye inke siwa ab aur kya paate hai khwab
band sipi me chupe anmol moti ki tarah
apne andar ki chamak khud dhudh kar laate hai khwab
nind me chalne ka inko rog hai lekin kunwar
nind ke baahar bhi aksar mujhse tarate hai khwab - Kunwar Baichain
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 01- 02- 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
सपनो की सुन्दर अभिव्यक्ति..
www.forums.abhisays.com
अतिसुन्दर प्रस्तुति
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