नज़र के सामने कुछ अक्स झिलमिलाए बहुत - मख्मूर सईदी

नज़र के सामने कुछ अक्स झिलमिलाए बहुत हम उनसे बिछड़े तो दिल में ख्याल आए बहुत

नज़र के सामने कुछ अक्स झिलमिलाए बहुत

नज़र के सामने कुछ अक्स झिलमिलाए बहुत
हम उनसे बिछड़े तो दिल में ख्याल आए बहुत

थी उनको डूबता सूरज से निस्बते कैसी
ढली जो शाम तो कुछ लोग याद आए बहुत

ये ढलती रात, ये पलके झपकाता सन्नाटा
गए दिनों के फ़साने हमें सुनाए बहुत

इसीलिए की इस अंधे सफ़र में काम आए
हम उस गली के उजाले समेट लाए बहुत

नजर गई है तआकुब में कितने चेहरों के
तिरी तलाश में हमने फरेब खाए बहुत

मिटी न तीरगी 'मख्मूर' घर के आँगन की
चिराग हमने मुंडेरो पे यु जलाये बहुत - मख्मूर सईदी


nazar ke samne kuch aks jhilmilaye bahut

nazar ke samne kuch aks jhilmilaye bahut
ham unse bichhde to dil me khyal aaye bahut

thi unko dubta suraj se nisbate kaisi
dhali jo sham to kuch log yaad aaye bahut

ye dhalti raat, ye palke jhapkata sannata
gaye dino ke fasane hame sunaye bahut

isliye ki ham andhe safar me kaam aaye
ham us gali ke ujale samet aaye bahut

nazar gai hai taakub me kitne chehro ke
tiri talash me hamne fareb khaye bahut

miti n teeragi 'Makhmoor' ghar ke aangan ki
chirag hamne mundero pe yun jalaye bahut - Makhmoor Saeedi

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