मै तो समझा था क़यामत आ गई - हसरत मोहानी

मै तो समझा था क़यामत आ गई खैर फिर साहब सलामत हो गई

मै तो समझा था क़यामत आ गई

मै तो समझा था क़यामत आ गई
खैर फिर साहब सलामत हो गई

मस्जिदों में कौन जाये वाइज़ा
अब तो एक बुत से इरादत हो गई

जब मै जानू दिल में भी आओ न याद
गरचे जाहिर में अदावत हो गई

उनको कब मालूम था तर्ज-ए-ज़फ़ा
गैर की सोहबत क़यामत हो गई

इश्क ने सबको सिखा दी शायरी
अब तो अच्छी फिक्र-ए-हसरत हो गई | - हसरत मोहानी
मायने
साहब सलामत = सलाम दुआ, वाइज़ा = उपदेश देने वाला, इरादत = लगाव, तर्ज-ए-ज़फ़ा = सितम करने का तरीका, फिक्र-ए-हसरत = हसरत (शायर) का चिंतन


mai to samjha tha qayamat aa gai

mai to samjha tha qayamat aa gai
khair phir sahab salamat ho gai

masjido mein kaun jaye waaiza
ab to ek boot se iradat ho gai

jab main janu dil me bhi aao n yaad
garche jahir mein adawat ho gai

unko kab maloom tha tarz-e-zafa
fair ki sohbat qayamat ho gai

ishq ne sabko sikha di shayari
ab to achchhi fikr-e-hasrat ho gai - Hasrat Mohani

1 Comments

कृपया स्पेम न करे |

Previous Post Next Post