देवेन्द्र देव के कुछ अशआर
आखिर कितना बाँध कर रखु में दरख्त की हर डाल को !टूट के बिखरे है ऐसे हमारी जड़े ही ख़राब हो जैसे !!
असर तो है हम पर भी उस आफ़ताब का लेकिन,
उनकी बात और है वो अंधेरो में चिराग जला देते है !!
तेरी ख़ुशी में नाच उठेगा ये दिल !
तुझे खुश देखकर के मचल जाएगा !!
बड़ी जल्दी में बनकर के आया है जहा में !
गम हो या ख़ुशी सब चल जाएगा !!
ये भी जमाना है कि
वो पूछते है दिल-ए-हाल मेरे
हो गया है नाम मेरा अब इस जहा में
अब तो कह भी नहीं सकते कि
अच्छे नहीं हालात फ़िलहाल मेरे
वक़्त रहा तो फिर मिलेंगे मैखान
फ़िलहाल तो खुद से वक़्त न होने कि शिकायत करते है
वक़्त लगता है किसी जख्म को भर जाने में
पर जब वक़्त ही उसकी वजह हो तो कोई क्या करे
वक़्त ने जला दिया मुझको तिनका-तिनका करके
हम भी दीवाने थे शमा के,
जल जाते यूँ भी उसके पास जाकर
वो दिल ही क्या जो दर्द को समेट न सके
और वो दर्द ही क्या जो दिल में समां न सके
हम और क्या कहे यारो
वो इश्क-ऐ-रूमानी एहसास ही क्या
जिसके बारे में बता न सके
वो आज भी टूटी खाट पे सोता होगा
वो सबसे छुपकर के कही पर रोता होगा
कभी मुझे याद करता होगा
कभी किसी चेहरे में मुझे खोजता होगा
कभी मिलने के लिए मुझसे तडपता होगा
कभी खुद पे हँसता होगा
कभी जागकर करवटे बदलता होगा
वो मेरा महबूब नहीं
मेरा दिल है देव जो मेरे नकाब को देखकर डरता होगा
वो भी सूरज है अपने घर का
पर आज खुद ही घर को जला चूका
कुछ यु बदली है तासीर उसने अपनी
कई बेगानों में वो अपनों का मजाक बना चुका
न जाने कौन सा पर्दा आन पड़ा उसकी आँखों पर
खुद कि तरह वो औरो को अपना शिकार बना चुका
अश्क है, दरिया है, दर्द भी है,
मगर इन्हें बहाने का सबब भी चाहिए
वो भूल जाते है हर बात लेकिन,
हमें नहीं भूलते ये खुदा का शुक्र है !
मैं भूल गया मगर वो भूलता कहा है ,
वो कहते है दिल में है कोई,
पर बताये वो दिल में रहता कहा है ?
तू मोहब्बते इज़हार इतना भी न कर !
कि चेहरा तेरे दिल का आइना बन जाये !!
एक चेहरा है जिस पे हम मर मिटे है !
वर्ना शमा के पास जा के तो परवाना भी जल उठता है !!
आँखों से अश्क छिपाते-छिपाते सारा दामन भीग गया |
ऐसा लगा की अज मै कुछ हारकर भी सब जीत गया ||
गुम यूँ टूटते वक़्त नहीं लगता !
अँधेरे में तीर मारू पर निशाना कमबख्त नहीं लगता !!
राह पे था एक बीज रोपा !
पर वह एक दरखत नहीं लगता !!
कहते है सोहबत का असर होता है !
फिर फूल क्यों काटों सा नहीं सख्त नहीं होता !!
दिल का कोई बाज़ार नहीं होता !
हर इंसा खुद्दार नहीं होता !!
अब ढूंढे से भी आदिल मिले कहा से !
की ऐसा कौन सा दामन है जो दागदार नहीं होता !!
इसी कशमकश में मेरा कारवा निकल गया !
कि आज कोई किसी का कर्जदार नहीं होता !!
ये वक़्त, ये तन्हाई और ये दीवानापन,
हमें कही खा न जाये हमारा ये आवारापन !
टूट गए है मोती हमारे ही हाथ से जिन्दगी के ,
कि अब सहन नहीं होती दूजो के रिश्तो की तपन !!