तिरी गली में कोई हम-ज़बाँ नहीं मिलता - रहबर प्रतापगढ़ी

तिरी गली में कोई हम-ज़बाँ नहीं मिलता

तिरी गली में कोई हम-ज़बाँ नहीं मिलता
मकाँ तो हैं कोई अहल-ए-मकाँ नहीं मिलता

करूँ मैं कैसे भला एतिबार लोगों का
यहाँ किसी का भी चेहरा अयाँ नहीं मिलता

अगरचे ऐश के सामान सारे हैं मौजूद
मगर कोई भी हमें शादमाँ नहीं मिलता

कभी जो आम था लोगों की तिश्नगी के लिए
हमारे गाँव में अब वो कुआँ नहीं मिलता

जो अपनी मंज़िल-ए-मक़्सूद से नहीं वाक़िफ़
उसे फ़रेब-ए-तमन्ना कहाँ नहीं मिलता

कहूँ न तुम से तो मैं हाल-ए-दिल कहूँ किस से
सिवा तुम्हारे कोई राज़दाँ नहीं मिलता

है नस्ल-ए-नौ के लिए फ़िक्र लाज़मी रहबर
दिल-ओ-नज़र का कोई नौजवाँ नहीं मिलता - रहबर प्रतापगढ़ी


teri gali mein koi ham-zaban nahin milta

teri gali mein koi ham-zaban nahin milta
makan to hain koi ahl-e-makan nahin milta

karun main kaise bhala etibar logon ka
yahan kisi ka bhi chehra ayan nahin milta

agarche aish ke saman sare hain maujud
magar koi bhi hamein shadman nahin milta

kabhi jo am tha logon ki tishnagi ke liye
hamare ganw mein ab wo kuan nahin milta

jo apni manzil-e-maqsud se nahin waqif
use fareb-e-tamanna kahan nahin milta

kahun na tum se to main haal-e-dil kahun kis se
siwa tumhaare koi raaz-dan nahin milta

hai nasl-e-nau ke liye fikr lazmi rahbar
dil-o-nazar ka koi naujawan nahin milta - Rahbar Pratapgarhi

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