वो इक चिराग़ जो हर बार जलना चाहता है - डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफरी

वो इक चिराग़ जो हर बार जलना चाहता है

वो इक चिराग़ जो हर बार जलना चाहता है
वो इन अंधेरों की क़िस्मत बदलना चाहता है

ये खानदानी लड़ाई का बस सबब है यही
हमारा हक़ वो कहीं से निगलना चाहता है

मुझे पुकार ले मौला मैं थक गया हूँ बहुत
हुई जो शाम तो सूरज भी ढलना चाहता है

उसे पता है कि ज़ंज़ीर पर से भारी है
कफस में फिर भी परिंदा उछलना चाहता है

कभी अदा कभी जलवे कभी मचलते हुए
जो बेवफा है कई बार छलना चाहता है - डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफरी


wo ek chirag jo har jalna chahta hai

wo ek chirag jo har jalna chahta hai
wo in andhero ki kismat badlana chahta hai

ye khandani ladai ka bas sabab hai yahin
hamara haq wo kahi se niglna chahta hai

mujhe pukaar le maula mai thak gaya hun bahut
hui jo shaam to suraj bhi dhalna chahta hai

use pata hai ki janzeer par se bhari hai
kafas mein phir bhi parinda uchhalana chahta hai

kabhi ada kabhi jalwe kabhi machlate hue
wo bewafa hai kai baar chhalna chahta hai- Dr. ZiaUr Rahman Jafri

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