जमाने को कलंकित कर गया हूँ - आचार्य फजलुर रहमान हाशमी

जमाने को कलंकित कर गया हूँ

जमाने को कलंकित कर गया हूँ
मिला भाई तो उससे डर गया हूँ

नहीं अनुभूति है जीवंत मेरी
मुझे लगता है जैसे मर गया हूँ

कहीं कुछ बच गया तो थोड़ा अमृत
यही तो ढूंढने सागर गया हूँ

बुलंदी की बहुत चाहत थी खुद को
मगर पाताल के अंदर गया हूँ

रहा गंतव्य से रिश्ता पुराना
कभी रुककर कभी थमकर गया हूँ

ये दुनिया ही नहीं है मेरी मंजिल
जहां पहुंचा हूँ अपने घर गया हूँ

दिया है तीन पग विष्णु को मैंने
जमाना देख ले क्या कर गया हूँ - आचार्य फजलुर रहमान हाशमी


jamane ko kalankit kar gaya hun

jamane ko kalankit kar gaya hun
mila bhai to usse dar gaya hun

nahin anubhuti hai jeevant meri
mujhe lagta hai jaise mar gaya hun

kahin kuchh bach gaya to thoda amrit
yahi to dhundhne sagar gaya hun

bulandi ki bahut chaahat thi khud ko
magar patal ke andar gaya hun

raha gantvya se rishta purana
kabhi rukkar kabhi thamkar gaya hun

ye duniya hi nahin hai meri manzil
jahan pahucha hun apne ghar gaya hun

diya hai teen pag vishnu ko maine
jamana dekh le kya kar gaya hun - Acharya Fazlur Rahmar Hasmi

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