बिछड़ के मुझ से वो कब चैन से रहा होगा - रहबर प्रतापगढ़ी

बिछड़ के मुझ से वो कब चैन से रहा होगा

बिछड़ के मुझ से वो कब चैन से रहा होगा
कभी तो उस ने मुझे याद भी किया होगा

लिपट के रोया भी होगा वो मेरे क़ासिद से
तमाम हाल मिरा उस ने जब सुना होगा

मिरे क़लम की ये ख़ुशबू भी जब उड़ी होगी
वो हर्फ़-ए-हक़ की हिमायत में आ गया होगा

कराहने की सदा होगी आसमानों में
कि तीर खा के परिंदा कोई गिरा होगा

जो अहल-ए-हक़ हैं सदा बोलते तो हैं 'रहबर'
उन्हें भी सुन के तो अंदाज़ा हो गया होगा - रहबर प्रतापगढ़ी


bichhad ke mujh se wo kab chain se raha hoga

bichhad ke mujh se wo kab chain se raha hoga
kabhi to us ne mujhe yaad bhi kiya hoga

lipat ke roya bhi hoga wo mere qasid se
tamam haal mera us ne jab suna hoga

mere qalam ki ye khushbu bhi jab udi hogi
wo harf-e-haq ki himayat mein aa gaya hoga

karahne ki sada hogi aasmanon mein
ki teer kha ke parinda koi gira hoga

jo ahl-e-haq hain sada bolte to hain 'rahbar'
unhen bhi sun ke to andaza ho gaya hoga - Rahbar Pratapgarhi

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