नदी कानून की, शातिर शिकारी तैर जाता है - ओमप्रकाश यती

नदी कानून की, शातिर शिकारी तैर जाता है। यहाँ पर डूबता हल्का है भारी तैर जाता है।

नदी कानून की, शातिर शिकारी तैर जाता है

नदी कानून की, शातिर शिकारी तैर जाता है।
यहाँ पर डूबता हल्का है भारी तैर जाता है।

ज़रूरत नाव की,पतवार की है ही नहीं उसको
निभानी है जिसे लहरों से यारी, तैर जाता है।

बताते हैं कि भवसागर में दौलत की नहीं चलती
वहाँ रह जाते हैं राजा भिखारी तैर जाता है।

समझता है तुम्हारे नाम की महिमा को पत्थर भी
तभी हे राम! मर्ज़ी पर तुम्हारी तैर जाता है।

निकलते हैं जो बच्चे घर से बाहर खेलने को भी
मुहल्ले भर की आँखों में ‘निठारी’ तैर जाता है। - ओमप्रकाश यती


nadi kanun ki, shatir shikari tair jata hai

nadi kanun ki, shatir shikari tair jata hai
yahan par dubta halka hai bhari tair jata hai

jarurat naav ki, patwar ki hai hi nahin usko
nibhani hai jise lahron se yari, tair jata hai

batate hai ki bhavsagar me daulat ki nahin chalti
wahan rah jate hai raja bhikhari tair jata hai

samjhta hai tumhare naam ki mahima ko patthar bhi
tabhi hai ram! marzi par tumhari tair jata hai

niklate hai jo bachche ghar se bahar khelne ko bhi
muhlle bhar kio aankhon me nithari tair jata hai - Omprakash Yati

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