बरसो हे सावन मनभावन - कृष्ण मुरारी पहारिया

बरसो हे सावन मनभावन धरती को कर दो वृन्दावन रचो आस के रास हृदय में गाकर म्रुदु गर्जन की लय में उबरें मन डूबे संशय में

बरसो हे सावन मनभावन

बरसो हे सावन मनभावन
धरती को कर दो वृन्दावन

रचो आस के रास हृदय में
गाकर म्रुदु गर्जन की लय में
उबरें मन डूबे संशय में

आओ हे सुधियों के धावन

हर लो तीनों ताप मनुज के
मिटें कष्ट मानस के रुज के
हों निर्बन्ध पराक्रम भुज के

कर दो हे प्राणों को पावन

आई है संक्रान्ति देश पर
ठेस यहाँ लग रही ठेस पर
धिक है छलियों के सुवेष पर

मारो हे दुर्दिन का रावन
- कृष्ण मुरारी पहारिया


barso he sawan manbhawan

barso hai sawan manbhawan
dharti ko kar do wrindawan

racho aas ke ras hirdai mein
gakar mridu garjan ki lai mein
ubren man dube sanshay mein

ao he sudhiyon ke dhawan

harlo tinon tap manuj ke
miten kasht manas ke ruj ke
hon nirbandh parakram bhuj ke

kar do he pranon ko pawan

aai hai sankranti desh par
thes yahan lag rahi thes par
dhik hai chhaliyon ke suwesh par

maaro he durdin ka rawan
- Krishna Murari Pahariya
बरसो हे सावन मनभावन

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