दरिया का सारा नशा उतरता चला गया - वसीम बरेलवी

दरिया का सारा नशा उतरता चला गया

दरिया का सारा नशा उतरता चला गया,
मुझको डुबोया और मैं उभरता चला गया

वो पैरवी तो झूठ की करता चला गया,
लेकिन बस उसका चेहरा उतरता चला गया

हर सांस उम्रभर किसी मरहम से कम न थी,
मैं जैसे कोई जख्म था भरता चला गया

हद से बड़ी उड़ान की ख्वाहिश तो यूँ लगा,
जैसे कोई परों को कतरता चला गया

मंज़िल समझ के बैठ गये जिनको चंद लोग,
मैं ऐसे रास्तों से गुज़रता चला गया

दुनिया समझ में आई मगर आई देर से,
कच्चा बहुत था रंग उतरता चला गया - वसीम बरेलवी


dariya ka sara nasha utarta chala gaya

dariya ka sara nasha utarta chala gaya
mujhko duboya aur mai bharta chala gaya

wo pairavi to jhuth ki karta chala gaya
lekin bas uska chehra utarta chala gaya

har saans umrbhar ksi marham se kam n thi,
mai jaise koi jakhm tha bharta chala gaya

had se badi udan ki khwahish to yun laga
jaise koi paron ko katarta chala gaya

manzil samajh ke baith aye jinko chand log
mai aise rasto se guzarta chala gaya

duniya samajh me aai magar aai der se
kachcha bahut tha rang utarta chala gaya - Waseem Barelavi

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