अपनी उलझन को बढ़ाने की ज़रूरत क्या है - नदीम गुल्लानी

अपनी उलझन को बढ़ाने की ज़रूरत क्या है छोड़ना है तो बहाने की ज़रूरत क्या है साथ रहते हो मगर साथ नहीं रहते हो ऐसे रिश्ते को निभाने की ज़रूरत क्या है

अपनी उलझन को बढ़ाने की ज़रूरत क्या है

अपनी उलझन को बढ़ाने की ज़रूरत क्या है
छोड़ना है तो बहाने की ज़रूरत क्या है

लग चुकी आग तो लाज़िम है धुआँ उट्ठेगा
दर्द को दिल में छुपाने की ज़रूरत क्या है

उम्र भर रहना है ताबीर से गर दूर तुम्हें
फिर मिरे ख़्वाब में आने की ज़रूरत क्या है

अजनबी रंग छलकता हो अगर आँखों से
उन से फिर हाथ मिलाने की ज़रूरत क्या है

आज बैठे हैं तिरे पास कई दोस्त नए
अब तुझे दोस्त पुराने की ज़रूरत क्या है

साथ रहते हो मगर साथ नहीं रहते हो
ऐसे रिश्ते को निभाने की ज़रूरत क्या है - नदीम गुल्लानी


apni uljhan ko badhane ki zarurat kya hai

apni uljhan ko badhane ki zarurat kya hai
chhodna hai to bahane ki zarurat kya hai

lag chuki aag to lazim hai dhuan utthega
dard ko dil mein chhupane ki zarurat kya hai

umr bhar rahna hai tabir se gar dur tumhein
phir mere khwab mein aane ki zarurat kya hai

ajnabi rang chhalakta ho agar aankhon se
un se phir hath milane ki zarurat kya hai

aaj baithe hain tere pas kai dost nae
ab tujhe dost purane ki zarurat kya hai

sath rahte ho magar sath nahin rahte ho
aise rishte ko nibhane ki zarurat kya hai - Nadeem Gullani

Post a Comment

कृपया स्पेम न करे |

Previous Post Next Post