उबैदुल्लाह अलीम के 25 बेहतरीन शेर
मैं तन्हा था मैं तन्हा हूँ
तुम आओ तो क्या न आओ तो क्या
बना गुलाब तो कांटे चुभा गया इक शख़्स
हुआ चराग़ तो घर ही जला गया इक शख़्स
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए
अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए
मैं ये किस के नाम लिखूँ जो अलम गुज़र रहे हैं
मिरे शहर जल रहे हैं मिरे लोग मर रहे हैं
बड़ी आरज़ू थी हम को नए ख़्वाब देखने की
सो अब अपनी ज़िंदगी में नए ख़्वाब भर रहे हैं
कुछ दिन तो बसो मिरी आंखों में
फिर ख़्वाब अगर हो जाओ तो क्या
एक चेहरे में तो मुमकिन नहीं इतने चेहरे
किस से करते जो कोई इश्क़ दोबारा करते
पलट सकूँ ही न आगे ही बढ़ सकूँ जिस पर
मुझे ये कौन से रस्ते लगा गया इक शख़्स
बाहर का धन आता जाता, असल ख़ज़ाना घर में है
हर धूप में जो मुझे साया दे, वो सच्चा साया घर में है
हज़ार राह चले फिर वो रहगुज़र आई
कि इक सफ़र में रहे और हर सफ़र से गए
सुख़न में सहल नहीं जाँ निकाल कर रखना
ये ज़िंदगी है हमारी सँभाल कर रखना
अब तो मिल जाओ हमें तुम कि तुम्हारी ख़ातिर
इतनी दूर आ गए दुनिया से किनारा करते
आँख से दूर सही दिल से कहाँ जाएगा
जाने वाले तू हमें याद बहुत आएगा
इंसान हो किसी भी सदी का कहीं का हो
ये जब उठा ज़मीर की आवाज़ से उठा
जवानी क्या हुई इक रात की कहानी हुई
बदन पुराना हुआ रूह भी पुरानी हुई
जैसे तुम्हें हम ने चाहा है कौन भला यूं चाहेगा
माना और बहुत आएंगे तुम से प्यार जताने लोग
जिस को मिलना नहीं फिर उस से मोहब्बत कैसी
सोचता जाऊँ मगर दिल में बसाए जाऊँ
दुआ करो कि मैं उस के लिए दुआ हो जाऊँ
वो एक शख़्स जो दिल को दुआ सा लगता है
ख़्वाब ही ख़्वाब कब तलक देखूँ
काश तुझ को भी इक झलक देखूँ
एक ऐसी भी घड़ी इश्क़ में आई थी कि हम
ख़ाक को हाथ लगाते तो सितारा करते
सिवाए अपने किसी के भी हो नहीं सकते
हम और लोग हैं लोगो हमें सताओ मत
शायद इस राह पे कुछ और भी राही आएँ
धूप में चलता रहूँ साए बिछाए जाऊँ
ये कैसी बिछड़ने की सज़ा है
आईने में चेहरा रख गया है
फिर इस तरह कभी सोया न इस तरह जागा
कि रूह नींद में थी और जागता था मैं
अगर हों कच्चे घरोंदों में आदमी आबाद
तो एक अब्र भी सैलाब के बराबर है