कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की - परवीन शाकिर

कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की उस ने ख़ुशबू की तरह मेरी पज़ीराई की  कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की

कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की

कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
उस ने ख़ुशबू की तरह मेरी पज़ीराई की

कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने
बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की

वो कहीं भी गया लौटा तो मिरे पास आया
बस यही बात है अच्छी मिरे हरजाई की

तेरा पहलू तिरे दिल की तरह आबाद रहे
तुझ पे गुज़रे न क़यामत शब-ए-तन्हाई की

उस ने जलती हुई पेशानी पे जब हाथ रखा
रूह तक आ गई तासीर मसीहाई की

अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की - परवीन शाकिर



ku-ba-ku phail gai baat shanasai ki

ku-ba-ku phail gai baat shanasai ki
us ne khushbu ki tarah meri pazirai ki

kaise kah dun ki mujhe chhod diya hai us ne
baat to sach hai magar baat hai ruswai ki

wo kahin bhi gaya lauta to mere pas aaya
bas yahi baat hai achchhi mere harjai ki

tera pahlu tere dil ki tarah aabaad rahe
tujh pe guzre na qayamat shab-e-tanhai ki

us ne jalti hui peshani pe jab hath rakha
ruh tak aa gai tasir masihai ki

ab bhi barsat ki raaton mein badan tutta hai
jag uthti hain ajab khwahishen angdai ki - Parveen Shakir

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