तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है - हरेन्द्र सिंह 'एहसास'

तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है, और तू है मेरे गांव को गँवार कहता है।

तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है

तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है,
और तू है मेरे गांव को गँवार कहता है।

ऐ शहर मुझे तेरी सारी औक़ात पता है,
तू बच्ची को भी हुस्न ए बहार कहता है।

थक गया हर शख़्स काम करते करते,
तू इसे ही अमीरी का बाज़ार कहता है।

गांव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास,
तेरी सारी फ़ुर्सत तेरा इतवार कहता है।

मौन होकर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं,
तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है।

वो मिलने आते थे कलेजा साथ लाते थे,
तू दस्तूर निभाने को रिश्तेदार कहता है।

बड़े-बड़े मसले हल करती थी पंचायतें,
अंधी भ्रस्ट दलीलों को दरबार कहता है।

अब बच्चे भी बड़ों का अदब भूल बैठे हैं,
तू इस नये दौर को संस्कार कहता है। - हरेन्द्र सिंह कुशवाह एहसास


teri buraiyon ko har akhbar kahta hai

teri buraiyon ko har akhbar kahta hai
aur hu hai mere gaon ko ganwar kahta hai

ae shahar mujhe teri sari aukaat pata hai
tu bchchi ko bhi husn-e-bahar kahta hai

thak gaya har shakhs kaam karte karte
tu ise hi amiri ka bazar kahta hai

gaon chalo waqt hi waqt hai sabke paas
teri sari fursat tera itwaar kahta hai

moun hokar phone par rishte nibhae ja rahe hai
tu is mashini daur ko pariwar kahta hai

wo milne aate the kaleja sath late the
tu dastur nibhane ko roshtedar kahta hai

bade-bade masle hal karti thi panchayate
andhi bhrashth dalilo ko darbaar kahta hai

ab bachche bhi bado ka adab bhul baithe hai
tu is naye daur ko sanskar kahta hai - Harendra Singh Kushwah Ehsas

Post a Comment

कृपया स्पेम न करे |

Previous Post Next Post