रानाई में डूबी हुई पाई तिरी आवाज़ - मोहम्मद ख़ाँ साजिद

रानाई में डूबी हुई पाई तिरी आवाज़

रानाई में डूबी हुई पाई तिरी आवाज़
क्या ख़ूब ख़ुदा ने है बनाई तिरी आवाज़

मख़मूर है हर तार मिरे साज़-ए-नफ़स का
कानों में मिरे जब से है आई तिरी आवाज़

ये मेरा जुनूँ है कि है आवाज़ का जादू
आँखों से भी देती है दिखाई तिरी आवाज़

मस्ती भरे लहजे में जहाँ तू हुआ गोया
गहराई में जाँ की उतर आई तिरी आवाज़

कोयल की ये शीरीं सदा सौग़ात है तेरी
बुलबुल ने भी तुझ से है चुराई तिरी आवाज़

ले दे के फ़क़त कान पे मौक़ूफ़ नहीं है
करती है तह-ए-दिल में रसाई तिरी आवाज़

करता है शब-ओ-रोज़ 'नदीम' इतनी दुआएँ
तुझ से न कहीं माँगे जुदाई तिरी आवाज़ - मोहम्मद ख़ाँ साजिद


ranai mein dubi hui pai teri aawaz

ranai mein dubi hui pai teri aawaz
kya khub khuda ne hai banai teri aawaz

makhmur hai har tar mere saz-e-nafas ka
kanon mein mere jab se hai aai teri aawaz

ye mera junun hai ki hai aawaz ka jadu
aankhon se bhi deti hai dikhai teri aawaz

masti bhare lahje mein jahan tu hua goya
gahrai mein jaan ki utar aai teri aawaz

koyal ki ye shirin sada saughat hai teri
bulbul ne bhi tujh se hai churai teri aawaz

le de ke faqat kan pe mauquf nahin hai
karti hai tah-e-dil mein rasai teri aawaz

karta hai shab-o-roz 'nadim' itni duaen
tujh se na kahin mange judai teri aawaz - Mohammad Khan Sajid

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