ज़ालिम हैं हम ज़फाएँ उठाने के बावजूद - देवेश दीक्षित देव

ज़ालिम हैं हम ज़फाएँ उठाने के बावजूद

ज़ालिम हैं हम ज़फाएँ उठाने के बावजूद
मज़लूम वो हैं ज़ुल्म को ढाने के बावजूद

आदम समझ ले काश!, फ़साना-ए-ग़म मेरा
हँसता है ज़ख्म चोट को खाने के बावजूद

कैसा क़रार और भी बेताब हो गए
हम उनकी बज़्म-ए-नाज़ में आने के बावजूद

की तो बहुत ही कोशिशें नाकाम हो गयीं
आते रहे वो याद भुलाने के बावजूद

ये अपने-अपने 'देव' मुक़द्दर की बात है
खोया है हमने आपको पाने के बावजूद - देवेश दीक्षित देव


zalim hai ham zafae uthane ke bawajood

zalim hai ham zafae uthane ke bawajood
mazloom wo hai zulm ko dhane ke bawajood

aadam samajh le kaash! fasana-e-gham mera
hansta hai zakhm chot ko khane ke bawajood

kaisa karaar aur bhi betab ho gae
ham unki bazm-e-naaz me aane ke bawajood

ki to bahut hi koshishe nakam ho gayi
aate rahe wo yaad bhulane ke bawajood

ye apne-apne 'Dev' mukddar ki baat hai
khoya hai hamne aapko paane ke bawajood - Devesh Dixit Dev

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