हिजाब पर शायरी | नक़ाब पर शायरी

हिजाब पर शायरी | नक़ाब पर शायरी | ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं

हिजाब पर शायरी | नक़ाब पर शायरी |
हिज़ाब/नक़ाब/पर्दा पर बेहतरीन शेर का संकलन

हिजाब पर शायरी | नक़ाब पर शायरी को उर्दू हिन्दी शायरी में कई शायरों ने अपनी शायरी में उपयोग किया है | इस संकलन में हिजाब पर शायरी | नक़ाब पर शायरी में महबूब के हुस्न को लेकर और इसके अतिरिक्त भी कई विषयों को शामिल कर लिखे गए शेर शामिल है |

अँधेरी रात में उजला नक़ाब पहने हुए
ये कौन आता है शाइर का ख़ाब पहने हुए
- के.पी.अनमोल



अंजाम गरचे तूर है ख़्वाहिश के बाब का
दीदार बे-हिजाब का उन्वान इश्क़ है
- सहबा बिलाल



'अंजुम' शरार-ए-इश्क़ है हंगामा-ए-अलस्त
बंद-ए-हिजाब से उसे ग़ाफ़िल कशीद कर
- अंजुम उसमान



अगर आईना-ए-दिल साफ़ हो हुस्न-ए-तवज्जोह से
हर इक आँखों का पर्दा पर्दा-ए-असरार बन जाए
- हबीब मूसवी



अगर वो गुल-बदन दरिया नहाने बे-हिजाब आवे
तअज्जुब नहिं कि सब पानी सती बू-ए-गुलाब आवे
- अब्दुल वहाब यकरू



अगरचे वो बे-पर्दा आए हुए हैं
छुपाने की चीज़ें छुपाए हुए हैं
- अहमद हुसैन माइल



अच्छा गुमान ओ वहम हमारे ग़लत सही
कहिए तो कहती है निगह-ए-पुर-हिजाब क्या
- मिर्ज़ा मायल देहलवी



अजब है आलम अजब है मंज़र कि सकता में है ये चश्म-ए-हैरत
नक़ाब उलट कर वो आ गए हैं तो आइने गुनगुना रहे हैं
- हनीफ़ अख़गर



अजल को थाम के बैठे थे उनकी राहों में
के रुख पे शर्मो हया का हिजाब था शायद
- शेफालिका झा



अजल-नसीब था शाम-ए-विसाल ख़्वाब आया
वो बे-हिजाब हुए तो मुझे हिजाब आया
- साक़िब लखनवी



'अज़ीज़' मुँह से वो अपने नक़ाब तो उलटें
करेंगे जब्र अगर दिल पे इख़्तियार रहा
- अज़ीज़ लखनवी



अजीब लज़्ज़त-ए-नज़्ज़ारा थी हिजाब के साथ
हर एक ज़ख़्म महकता था माहताब के साथ
- मुस्तफ़ा ज़ैदी



अदम का राज़ सदा-ए-शिकस्त साज़-ए-हयात
हिजाब-ए-ज़ीस्त भी कितना लतीफ़ पर्दा था
- फ़िराक़ गोरखपुरी



अदा आई जफ़ा आई ग़ुरूर आया हिजाब आया
हज़ारों आफ़तें ले कर हसीनों पर शबाब आया
- नूह नारवी



अदा ए नाज़ से कभी वो काम लेते थे मगर
हिजाब बे - हिजाब है समय समय कि बात है
- निधि सिंह "पाखी"



अदा-ए-हुस्न की मासूमियत को कम कर दे
गुनाहगार-ए-नज़र को हिजाब आता है
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़



अपना अपना ज़ौक़-ए-नज़र है
किस का जल्वा कैसा पर्दा
- पंडित विद्या रतन आसी



अपनी पथरा गई हैं आँखें भी
हुस्न पर्दा उठाएगा कब तक
- हरी मेहता



अपने रंग-ए-हिजाब से पूछो
'राज़' शाइस्ता-ए-नज़र क्यों है
- रफ़ीउद्दीन राज़



अपने रूख़ पर निक़ाब रहने दे
दिल में ये इज़्तिराब रहने दे
- रिज़वान अली



अपने हसीन रुख़ से हटा कर निक़ाब को
शर्मिन्दा कर रहा है कोई माहताब को
- सलीम रज़ा रीवा



अफ़्लाक से आता है नालों का जवाब आख़िर
करते हैं ख़िताब आख़िर उठते हैं हिजाब आख़िर
- अल्लामा इक़बाल



अब आओ रख लूँ छुपा कर तुम्हें कलेजे में
हुए हो ख़ैर से शर्म ओ हिजाब के क़ाबिल
- जलील मानिकपूरी



अब उन्हें मुझ से कुछ हिजाब नहीं
अब इन आँखों में कोई ख़्वाब नहीं
- शबनम रूमानी



अब कोई और हिजाब-ए-रुख़-ए-रौशन न उठा
जलवा-ए-शाम बहुत नूर-ए-सहर काफ़ी है
- रौनक़ बदायूनी



अब तक तिरे हिजाब से थी बे-क़रारियाँ
अब बे-हिजाब हो के ज़रा बे-क़रार कर
- अली काज़िम



अब तलक उसके ख़यालों से गुज़रते थे मगर
जिस्म से गुज़रे तो हमने रूह से पर्दा किया
- मोनिका सिंह



अब तो हर शख़्स उजालों में खड़ा है उर्यां
कौन सी शक्ल पस-ए-पर्दा-ए-ज़ुल्मात रही
- कौसर नियाज़ी



अब नए सुर से छेड़ पर्दा-ए-साज़
मैं ही था एक दुख-भरी आवाज़
- फ़ानी बदायुनी



अब भी पर्दे हैं वही पर्दा-दरी तो देखो
अक़्ल का दावा-ए-बालिग़-नज़री तो देखो
- मज़हर इमाम



अब मिरे उन के दरमियाँ 'अमजद'
कोई पर्दा नहीं हिजाब नहीं
- अमजद अली ग़ज़नवी



अब ये सूरत है कि ऐ पर्दा-नशीं
तुझ से अहबाब छुपाते हैं मुझे
- मोमिन ख़ाँ मोमिन



अब रहा कौन जो दीदार तुम्हारा देखे
पर्दा उठते ही हुई हसरत-ए-दीदार तमाम
- बेख़ुद देहलवी



अब रुख़-ए-लैला नहीं होगा कभी पर्दा-नशीं
शहर के आतिश-कदे में पर्दा-ए-महमिल जला
- फ़रहत एहसास



अब हुआ है मा-सिवा का पर्दा फ़ाश
मअरिफ़त के अब कहीं दफ़्तर खुले
- मोहम्मद अली जौहर



अबस अबस तुझे मुझ से हिजाब आता है
तिरे लिए कोई ख़ाना-ख़राब आता है
- अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ



अभी तो बख़िया-गरी को सोज़न ही काम आए
हिना की दहलीज़ पे तुलू-ए-हिजाब देखा
- किश्वर नाहीद



अभी रात कुछ है बाक़ी न उठा नक़ाब साक़ी
तिरा रिंद गिरते गिरते कहीं फिर सँभल न जाए
- अनवर मिर्ज़ापुरी



अभी से सुब्ह-ए-गुलशन रक़्स-फ़रमा है निगाहों में
अभी पूरी नक़ाब उल्टी नहीं है शाम-ए-सहरा ने
- परवेज़ शाहिदी



अम्बार उस का पर्दा-ए-हुरमत बना मियाँ
दीवार तक नहीं गिरी पर्दा किए बग़ैर
- जौन एलिया



अयाँ थे जज़्बए दिल और बयाँ थे सारे ख़याल
कोई भी पर्दा ना था जब कि थे हिजाब में हम
- अलीना इतरत



अयाँ हुआ है मोहब्बत की दास्ताँ बन कर
किसी के चेहरा-ए-पुर-नूर पर हिजाब का रंग
- अहमद मेरठी



'अलीम' जल्वा निगाहों में किस तरह आता
छुपा था हुस्न किसी का हिजाब के पीछे
- अलीमुद्दीन अलीम



अल्लाह अल्लाह वो इम्तिज़ाज-ए-लतीफ़
शोख़ियों में हिजाब का आलम
- जिगर मुरादाबादी



अल्लाह अल्लाह हुस्न की ये पर्दा-दारी देखिए
भेद जिस ने खोलना चाहा वो दीवाना हुआ
- आरज़ू लखनवी



अश्क टपके हाल दिल का खुल गया
दीदा-ए-गिर्यां से पर्दा खुल गया
- पंडित दया शंकर नसीम लखनवी



अश्क-बारी नहीं ये दर-पर्दा
हाल कहती है चश्म-ए-तर अपना
- जलील मानिकपूरी



असर है जज़्ब-ए-उल्फ़त में तो खिंच कर आ ही जाएँगे
हमें पर्वा नहीं हम से अगर वो तन के बैठे हैं
- दाग़ देहलवी



असल साबित है वही शरअ' का इक पर्दा है
दाने तस्बीह के सब फिरते हैं ज़ुन्नारों पर
- हबीब मूसवी



असलियत थी या धोका था इक फ़ित्ना-ए-रंगीं बरपा था
सौ जल्वे थे इक पर्दा था पर्दा न रहा तो कुछ भी नहीं
- जमील मज़हरी



अहल-ए-दिल सहरा में गुम होते रहे
ज़िंदगी बैठी रही पर्दा किए
- राही मासूम रज़ा



आ गई बे-पर्दा वो सूरत नज़र
आँख की जब बंद पर्दा खुल गया
- निज़ाम रामपुरी



आ जा कि खड़ी है शाम पर्दा घेरे
मुद्दत हुई जब हुए थे दर्शन तेरे
- फ़िराक़ गोरखपुरी



आँख से पर्दा न कर पर्दे का घर ये भी तो है
तू तो देखे हम न देखें तुर्फ़ा-तर ये भी तो है
- चंदू लाल बहादुर शादान



आँख से रूमाल सरका बा'द-ए-मर्ग
चश्म-ए-तर का आज पर्दा खुल गया
- ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर



हिजाब पर शायरी | नक़ाब पर शायरी | आँखें ख़ुदा ने दी हैं तो देखेंगे हुस्न-ए-यार कब तक नक़ाब रुख़ से उठाई न जाएगी
आँखें ख़ुदा ने दी हैं तो देखेंगे हुस्न-ए-यार
कब तक नक़ाब रुख़ से उठाई न जाएगी
- जलील मानिकपूरी



आँखें तिरी हर एक से मिलती हैं बे-हिजाब
इन आहुओं में अब कोई वहशत नहीं रही
- जलील मानिकपूरी



आँखें नर्गिस लड़ाती है हम से
ये भी उस बे-हिजाब की सी है
- फ़ज़ल हुसैन साबिर



आँखें शब-ए-वस्ल भी झुकी हैं
ख़ल्वत में भी ये हिजाब तौबा
- हफ़ीज़ जौनपुरी



आँखों का भी हम से कभी पर्दा नहीं रक्खा
मिलने का भी लेकिन कोई रस्ता नहीं रक्खा
- अहमद फ़ाख़िर



आँखों को देखने का सलीक़ा जब आ गया
कितने नक़ाब चेहरा-ए-असरार से उठे
- अकबर हैदराबादी



आँखों पर आह-ए-यास का पर्दा सा पड़ गया
दुनिया उजड़ गई कि मिरा दिल उजड़ गया
- बेख़ुद मोहानी



आँखों में मेरी सुब्ह-ए-क़यामत गई झमक
सीने से उस परी के जो पर्दा उलट गया
- नज़ीर अकबराबादी



आइना आइना रहा फिर भी
लाख दर-पर्दा-ए-गुबार रहा
- रसा चुग़ताई



आइना देखा जो उर्यां हो कर
जिस्म ही जिस्म का पर्दा निकला
- क़ैसर सिद्दीक़ी



आईने से पर्दा कर के देखा जाए
ख़ुद को इतना तन्हा कर के देखा जाए
- भारत भूषण पन्त



आए हो तो ये हिजाब क्या है
मुँह खोल दो नक़ाब क्या है
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी



आओ बे-पर्दा तुम्हें जल्वा-ए-पिन्हाँ की क़सम
हम न छेड़ेंगे हमें ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ की क़सम
- अख़्तर शीरानी



आख़िर ये हुस्न छुप न सकेगा नक़ाब में
शर्माओगे तुम्हीं न करो ज़िद हिजाब में
- इस्माइल मेरठी



आख़िर हिजाब-ओ-शर्म की हद भी है मेहरबाँ
पर्दा उलट न दे मिरी आह-ए-सहर कहीं
- यगाना चंगेज़ी



आज उस ने नक़ाब उल्टा है
पर्दा-ए-आफ़्ताब उल्टा है
- आसी फ़ाईकी



आज क्यूँ हम से पर्दा है
आ तिरा इंतिज़ार कब से है
- साहिर लुधियानवी



आज जिस पर ये पर्दा-दारी है
कल उसी की तो दावे-दारी है
- वसीम अकरम



आज देखा है बे-हिजाब उस को
सारी बातें भुला के रख दी हैं
- उमर फ़रहत



आज बे-पर्दा नज़र आने में क्या रक्खा है
ये शब-ए-वस्ल है शरमाने में क्या रक्खा है
- काशिफ़ अख़तर



आज है किस लिए ऐसा तिरा अंदाज़-ए-हिजाब
अजनबी कौन है महफ़िल में पकड़ कान उठा
- नातिक़ गुलावठी



आतिश-ए-जलवा-ए-महबूब ने सब फूँक दिया
अब कोई पर्दा नहीं पर्दा-बर-अंदाज़ नहीं
- असग़र गोंडवी



आती मुस्सविरी तो दिखाता कमाले फ़न
पर्दा उठा है और नज़र है झुकी हुई
- पंडित वेद दीवाना



आप अपनी नक़ाब है प्यारे
ये भी कोई हिजाब है प्यारे
- रियासत अली ताज



आप ही इक हर तरफ़ जल्वा-नुमा थे बे-हिजाब
आप को देखा किए और उम्र भर देखा किए
- क़ैसर हैदरी देहलवी



आफ़त-ए-जाँ है कोई पर्दा-नशीं
कि मिरे दिल में आ छुपा है इश्क़
- मोमिन ख़ाँ मोमिन



आह से दर-पर्दा उस को लाग है
आइने की ये कुदूरत देखना
- पंडित जगमोहन नाथ रैना शौक़



इंसान है बे-हया कुछ ऐसा
हैवाँ को हिजाब आ रहा है
- करामत अली करामत



इंसाफ़ को हैं दीदा-ए-अहल-ए-नज़र खुले
पर्दा उठा कि पर्दा-ए-शम्स-ओ-क़मर खुले
- हैदर अली आतिश



इक अदना सा पर्दा है इक अदना सा तफ़ावुत
मख़्लूक़ में माबूद में बंदे में ख़ुदा में
- परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़



इक अदा इक हिजाब इक शोख़ी
नीची नज़रों में क्या नहीं होता
- असग़र गोंडवी



इक दिन जो यूँही पर्दा-ए-अफ़्लाक उठाया
बरपा था तमाशा कोई तन्हाई से आगे
- दिलावर अली आज़र



इक दिन पर्दा ख़ुद उल्टेगा
छुप-छुप के तरसाने वाला
- आरज़ू लखनवी



इक पर्दा काली मख़मल का आँखों पर छाने लगता है
इक भँवर हज़ारों शक्लों का दिल को दहलाने लगता है
- मुनीर नियाज़ी



इक पर्दा-नशीं की आरज़ू है
दर-पर्दा कहीं की आरज़ू है
- मुज़्तर ख़ैराबादी



इक हिजाब-ए-तह-ए-इक़रार है माने वर्ना
गुल को मालूम है क्या दस्त-ए-सबा चाहता है
- परवीन शाकिर



इज़हार-ए-ख़मोशी में है सौ तरह की फ़रियाद
ज़ाहिर का ये पर्दा है कि मैं कुछ नहीं कहता
- मीर हसन



इज़हार-ए-जान-ए-पाक है जिस्म-ए-कसीफ़ से
बे-पर्दगी हिजाब है ज़ुल्मत ही नूर है
- इस्माइल मेरठी



इज़्न-ए-नज़ारा तो दिया जुरअत-ए-दीद छीन ली
वो कभी सामने न आए रुख़ से हिजाब उठा के भी
- कैफ़ मुरादाबादी



इतना मायूस उस ने कर डाला
उस का जल्वा हिजाब लिखता हूँ
- प्रभात कुमार सरवर लखनवी



इतनी जल्दी न गिरा अपने ह़सीं रुख़ पे निक़ाब
तू मुझे ठीक से ह़ैरान तो हो लेने दे
- राजेश रेड्डी



इतनी सी बात पर कि हुई शम्अ बे-हिजाब
तय्यार जान देने को परवाना हो गया
- अहसन मारहरवी



इतने हिजाबों पर तो ये आलम है हुस्न का
क्या हाल हो जो देख लें पर्दा उठा के हम
- जिगर मुरादाबादी



इन के रुख़ पर हिजाब रहता है
जैसे मह पर सहाब रहता है
- लईक़ अकबर सहाब



इन को पर्दे में भी हिजाब रहा
है नुमायाँ नक़ाब में घुँघट
- पंडित जवाहर नाथ साक़ी



इन नक़ाबों के रंग फीके हैं
रंग अपना मुझे दिखाया कर
- डॉ.सीमा विजयवर्गीय



इलाही जज़्ब-ए-दिल की इस कशिश से बाज़ आया मैं
कोई पर्दा-नशीं कहता है पर्दा हो नहीं सकता
- हफ़ीज़ जौनपुरी



इल्तिफ़ात-आश्ना हिजाब तिरा
लुत्फ़-ए-पिन्हाँ है इज्तिनाब तिरा
- रविश सिद्दीक़ी



इल्म इक रौशनी है रस्ता है
इल्म सब से बड़ा हिजाब भी है
- मास्टर निसार अहमद



इल्म और मा'लूम में दुई की बू है
इस वास्ते इल्म है हिजाब-उल-अकबर
- इस्माइल मेरठी



इल्म के थे बहुत हिजाब मगर
हुस्न का सेहर पुर-फ़ुसूँ ही रहा
- सूफ़ी तबस्सुम



इल्म भी इक हिजाब है नादाँ
जानता है तो जानता क्या है
- दिल अय्यूबी



इश्क़ ख़ुद माइल-ए-हिजाब है आज
हुस्न मजबूर-ए-इज़्तिराब है आज
- सीमाब अकबराबादी



इश्क़ दर-पर्दा फूँकता है आग
ये जलाना नज़र नहीं आता
- दाग़ देहलवी



इश्क़ ने आँख झुका ली वर्ना
हुस्न और हुस्न का पर्दा क्या था
- असरार-उल-हक़ मजाज़



इश्क़ बे-ख़ुद था बे-हिजाब आया
हुस्न डाले हुए नक़ाब आया
- जलाल आरिफ़



इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में
या तो ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर
- अल्लामा इक़बाल



इस अर्सा-ए-हिजाब की आख़िर को हद भी है कहीं
तेरी तलाश में कोई दुनिया से दूर आ गया
- रसूल साक़ी



इस क़दर कीं जज़्बा-ए-उल्फ़त की पर्दा-पोशियाँ
डस रही हैं आज ख़ुद मुझ को मिरी ख़ामोशियाँ
- नूर फ़ातिमा नूर



इस तरह के दिन रात दिखाती है करिश्मे
तक़दीर पस-ए-पर्दा-ए-तदबीर हमारी
- मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी



इस दौर में इंसान का चेहरा नहीं मिलता
कब से मैं नक़ाबों की तहें खोल रहा हूँ
- मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी



इस पर्दे में ये हुस्न का आलम है इलाही
बे-पर्दा वो हो जाएँ तो क्या जानिए क्या हो
- शरफ़ मुजद्दिदी



इस में ऐ पर्दा-नशीं पर्दा-दरी किस की है
देखने आती है ख़िल्क़त तिरे दीवाने को
- जलील मानिकपूरी



इसी उमीद पे गुज़री है ज़िंदगी सारी
कभी तो हम से मिलोगे हिजाब से बाहर
- फ़हीम शनास काज़मी



इसी उम्मीद पर तो जी रहे हैं हिज्र के मारे
कभी तो रुख़ से उट्ठेगी नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
- हाशिम अली ख़ाँ दिलाज़ाक



उट्ठो कि आईना भी कहीं का कहीं गया
रह जाओगे यहीं जो रहोगे हिजाब में
- फ़रहत एहसास



उठ ऐ नक़ाब-ए-यार कि बैठे हैं देर से
कितने ग़रीब दीदा-ए-पुर-नम लिए हुए
- जलील मानिकपूरी



उठ गई इस तरफ़ नज़र उन की
ऐ तमन्ना 'हिजाब' हो जाना
- सलमा हिजाब



उठ गए सब हिजाब नज़रों के
मुझ को साक़ी ने वो पिलाई है
- हाजी शफ़ीउल्लाह शफ़ी बहराइची



उठ गया दिल से दुई का पर्दा
छुप के अब आप कहाँ जाइएगा
- वज़ीर अली सबा लखनवी



उठ गया पर्दा जो फ़ी-माबैन था
मन्न-ओ-तू के थे इशारे हो चुके
- यासीन अली ख़ाँ मरकज़



उठ गया पर्दा-ए-अजल जिस दम
इक हयात आई इक हयात गई
- शौक़ बिजनौरी



उठ जाए गर ये बीच से पर्दा हिजाब का
दरिया ही फिर तो नाम है हर इक हुबाब का
- क़ाएम चाँदपुरी



उठ जाए दरमियाँ से जो पर्दा हिजाब का
पढ़ लूँ किताब-ए-हुस्न से मज़मून ख़्वाब का
- कंवल सियालकोटी



उठता जाता था पर्दा-ए-निस्याँ
एक इक बात याद थी कल रात
- ज़ेहरा निगाह



उठने ही को है बीच से पर्दा हिजाब का
महफ़िल तमाम आलम-ए-तस्वीर हो न जाए
- यगाना चंगेज़ी



उठा न पर्दा-ए-हैरत रुख़-निहां से अभी
मिरे यक़ीन को फ़ुर्सत नहीं गुमाँ से अभी
- अली मीनाई



उठा पर्दा तो महशर भी उठेगा दीदा-ए-दिल में
क़यामत छुप के बैठी है नक़ाब-ए-रू-ए-क़ातिल में
- फ़ना बुलंदशहरी



उठा सके आदमी तो पहले नजर से अपनी नकाब उठाये,
जमाने भर की तजल्लियों से नकाब उल्टी हुई मिलेगी
- नवाब झांसवी



उठा हिजाब जला दे चराग़ मा'बद के
जहान-ए-गर्द तिरा अब क़ियाम करता है
- राशिद इमाम



उठा हिजाब तो बस दीन-ओ-दिल दिए ही बनी
जनाब-ए-शैख़ को दावा था पारसाई का
- इस्माइल मेरठी



उठा होटल का 'पर्दा सामने पर्दा-नशीं आए
जो छुप कर कर रहे थे एहतिराम-ए-हुक्म-ए-दीं आए
- मजीद लाहौरी



उठे हम उठ गया पर्दा दुई का
हमारे उस के बस हम दरमियाँ थे
- अब्दुल अलीम आसि



उन को आईना उठाने में भी आता है हिजाब
जानते क्या थे वो आदाब-ए-नज़र से पहले
- सैलानी सेवते



उन को ख़ल्वत-सरा में बे-पर्दा
साफ़ मैदान पा के देख लिया
- दाग़ देहलवी



उन को देखेंगे बे-हिजाब 'हफ़ीज़'
शौक़-ए-दीदार अगर सलामत है
- हफ़ीज़ बनारसी



उन को भी तिरे इश्क़ ने बे-पर्दा फिराया
जो पर्दा-नशीं औरतें रुस्वा न हुईं थीं
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी



उन को सुनता रहा मैं देखे बग़ैर
ख़ूब था दरमियाँ हिजाब नया
- अख़तर मधुपुरी



उनपे आया शबाब पहली बार
रुख़ पे डाली नक़ाब पहली बार
- सलाहुद्दीन हक़अबुसारिम सारिम



उन्हें दिल दे दिया नादीदा 'अफ़्क़र'
हिजाब-ओ-ग़म्ज़ा-ओ-नाज़-ओ-अदा क्या
- अफ़क़र मोहानी



उम्मीदों से पर्दा रक्खा ख़ुशियों से महरूम रहीं
ख़्वाब मरा तो चालिस दिन तक सोग मनाया आँखों ने
- भारत भूषण पन्त



उलट तो दिया पर्दा-ए-शब मगर
नहीं सूझता अब किधर जाइए
- अख़्तर सईद ख़ान



उल्टी इक हाथ से नक़ाब उन की
एक से अपने दिल को थाम लिया
- जलील मानिकपूरी



उश्शाक़ अगर है महरम-ए-राज़
दिलबर कूँ हिजाब ख़ूब है ख़ूब
- दाऊद औरंगाबादी



उस आँख से तुम ख़ुद को किस तरह छुपाओगे
जो आँख पस-ए-पर्दा भी देखने वाली है
- दिवाकर राही



उस के आने का गुमाँ होता है
ऐ हवा पर्दा हिलाया मत कर
- शम्स तबरेज़ी



उस के रुख़ पर निखर गई सुर्ख़ी
अल्लाह अल्लाह उस हिजाब का रंग
- सफ़ी औरंगाबादी



उस गुल से कुछ हिजाब हमें दरमियाँ न था
जिस दिन कि ये बहार न थी गुलिस्ताँ न था
- इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन



उस तजल्ली पे पर्दा रखने को
ये जो रुख़ पर हिजाब है कम है
- अबू लेवीज़ा अली



उस ने किया हिजाब मिरे देखने के बा'द
उस को मिला सवाब मिरे देखने के बा'द
- फख़्र अब्बास



उस ने रक्खा है तकल्लुफ़ का भरम
अब अदावत पर कोई पर्दा तो है
- आज़िम कोहली



उसे ज़रूरत-ए-पर्दा ज़रा ज़ियादा है
ये वो भी जानती है जब से वो बड़ी हुई है
- आमिर अमीर



उसे भी पर्दा-ए-तहज़ीब को गिराना है
मुझे भी पैकर-ए-नायाब से निकलना है
- ताहिर अदीम



उसे लगती हैं ख़ूब मेरी आंखें
दीदार अभी नक़ाब से आगे नहीं बढ़ा
- खान हबीबा



उसे शरमाएँगे ज़िक्र-ए-अदू पर
ये क़िस्मत है हिजाब आए न आए
- दाग़ देहलवी



उसे हिजाब कहूँ या कहूँ पशेमानी
मिरे मज़ार पे वो सर झुकाए बैठे हैं
- इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल



एक दिन तुम ने की न बात कभू
मर गए हम तो इस हिजाब में जान
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी



एक दिन बेनक़ाब हो भी जा ,
रोज़ आती हो क्यों नक़ाबों में
- कुँवर कुसुमेश



एक पर्दा हटा एक चेहरा खुला रात ढलने लगी रुत बदलने लगी
चाँद चलता हुआ महर से जा मिला रात ढलने लगी रुत बदलने लगी
- अख़्तर हुसैन जाफ़री



एक पर्दा है बे-सबाती का
आइने और तिरे जमाल के बीच
- आरिफ़ इमाम



एक रुख़ सौ नक़ाब है दुनिया
और फिर बे-हिजाब है दुनिया
- ज़ेबा जोनपुरी



एक ही चीज़ है पर्दे में कि बैरून-ए-हिजाब
मुझ को ज़ाहिर भी किया ख़ुद को छुपाया भी गया
- अबु मोहम्मद वासिल बहराईची



ए'जाज़ मेरी चश्म-ए-हक़ीक़त-निगर का देख
अब कोई पर्दा पर्दा-ए-हाइल नहीं रहा
- शैदा अम्बालवी



एहतिमाम-ए-पर्दा ने खोल दीं नई राहें
वो जहाँ छुपा जा कर मेरा सामना पाया
- शाद आरफ़ी



ऐ 'ज़फ़र' उठ जाएगा जब पर्दा-ए-शर्म-ओ-हिजाब
सामने वो यार मेरे बे-हिजाब आ जाएगा
- बहादुर शाह ज़फ़र



ऐ जुरअत-ए-रिंदाना कुछ तू ही मदद फ़रमा
या उन का हिजाब उट्ठे या मेरी झिझक जाए
- रियासत अली ताज



ऐ दिल उन के चेहरे तक किस तरह नज़र जाती
नूर उन के चेहरे का बन गया हिजाब उन का
- जगन्नाथ आज़ाद



ऐ पर्दा-नशीं सहल हुआ ये इश्काल
दर-पर्दा नहीं वस्ल से कम तेरा ख़याल
- क़लक़ मेरठी



ऐ बर्क़-ए-इश्क़ तू ही जला दे हिजाब को
इतना सा काम है तो कहें क्या किसी से हम
- अमजद अली ग़ज़नवी



ऐ बुतो दर-पर्दा तुम से ज़ाहिदों को भी है इश्क़
सूरत-ए-तस्बीह पिन्हाँ रखते हैं ज़ुन्नार को
- ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर



ऐ शह-ए-ख़ूबाँ तसव्वुर से तिरे रुख़्सार के
चश्म का पर्दा बे-ऐनिहि लाल-ए-पर्दा हो गया
- शैख़ अली बख़्श बीमार



ऐ हुस्न-ए-पुर-हिजाब ज़रा सामने तो आ
इन तिश्ना-लब निगाहों को जल्वे की आस है
- शेवन बिजनौरी



ओ जवानों की जान हम से हिजाब
याद है तेरी कम-सिनी हम को
- शरफ़ मुजद्दिदी



ओ पर्दा-दार अब तो निकल आ कि हश्र है
दुनिया खड़ी हुई है तिरे इंतिज़ार में
- सीमाब अकबराबादी



और क्या होगा पस-ए-पर्दा-ए-दिल ऐ 'शौकत'
अपनी तस्वीर का इक और सरापा होगा
- शाैकत वास्ती



और से बे-हिजाबियाँ करना
एक हम से हिजाब में रहना
- मीर मोहम्मदी बेदार



कई तरह के लिबास-ओ-हिजाब रक्खूँगा
उधड़ रहा है ये जीवन नक़ाब रक्खूँगा
- सुदेश कुमार मेहर



कब तक रहूँ हिजाब में महरूम वस्ल से
जी में है कीजे प्यार से बोस-ओ-कनार ख़ूब
- मह लक़ा चंदा



कब वो आता है सामने 'कशफ़ी'
जिस की हर इक अदा हिजाब हिजाब
- कशफ़ी मुल्तानी



कब से पिंदार में मुक़य्यद है
कैसी पर्दा-नशीं उदासी है
- साइमा बुख़ारी



कभी तो इश्क़ में ये इंक़लाब देखा है
कि अपने आप को ही बे-हिजाब देखा है
- ज़हीरुन्निसा निगार



कभी याद उन की आई है कभी वो ख़ुद भी आते हैं
मोहब्बत में हिजाब-ए-दरमियाँ बाक़ी नहीं रहता
- मोहम्मद उस्मान आरिफ़



क़मर को जामा-ए-शब तो बसर को पर्दा-ए-चश्म
कई लिबास तिरे नूर को सियाह मिले
- दाग़ देहलवी



कमाल है ये तसव्वुर की मश्क़-ए-पैहम का
तिरे हिजाब की तस्वीर भी उतर आई
- नसीर कोटी



क़यामत के दीवाने कहते हैं हम से
चलो उन के चेहरे से पर्दा हटा दें
- सुदर्शन फ़ाकिर



क़यामत है होगा जो रफ़अ'-ए-हिजाब
न बे-मस्लहत यार मस्तूर है
- मीर तक़ी मीर



करता कुछ और है वो दिखाता कुछ और है
दर-अस्ल सिलसिला पस-ए-पर्दा कुछ और है
- आफ़ताब हुसैन



क़रार से रहें क्या शोख़-ए-बे-हिजाब कहीं
ठहर सका है किसी वक़्त आफ़्ताब कहीं
- शहीर मछलीशहरी



क़रीब-ए-नज़'अ भी क्यूँ चैन ले सके कोई
नक़ाब रुख़ से उठा लो तुम्हें किसी से क्या
- सैफ़ुद्दीन सैफ़



करें सलाम उसे तो कोई जवाब न दे
इलाही इतना भी उस शख़्स को हिजाब न दे
- इब्राहीम अश्क



कर्ब दर-पर्दा-ए-तरब है अभी
मुस्कुराहट भी ज़ेर-ए-लब है अभी
- आमिर मौसवी



कल बस्तियों में आग लगाकर गए थे कौन
हो फ़ाश अब नक़ाब कोई टोटका करो
- खुरशीद खैराड़ी



कली को कर ही दिया बे-हिजाब ऐ 'ख़ावर'
नसीम-ए-सुब्ह की बे-रह-रवी को क्या कहिए
- खुर्शीद खावर अमरोहवी



कश्मीर की वादी में बे-पर्दा जो निकले हो
क्या आग लगाओगे बर्फ़ीली चटानों में
- साग़र आज़मी



कह अपस चश्म-ए-बा-हया कूँ सनम
रफ़'अ कर रफ़'अ कर हिजाब हिजाब
- दाऊद औरंगाबादी



कह गईं राज़-ए-मोहब्बत पर्दा-दारी-हा-ए-शौक़
थी फ़ुग़ाँ वो भी जिसे ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ समझा था मैं
- अल्लामा इक़बाल



कह सके कौन कि ये जल्वागरी किस की है
पर्दा छोड़ा है वो उस ने कि उठाए न बने
- मिर्ज़ा ग़ालिब



क़हर ग़ज़ब ज़ाहिर की रुकावट आफ़त-ए-जाँ दर-पर्दा लगावट
चाह की तेवर प्यार की चितवन माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह
- अमीर मीनाई



क़हर थीं दर-पर्दा शब मज्लिस में उस की शोख़ियाँ
ले गया दिल सब के वो और सब से शरमाता रहा
- जुरअत क़लंदर बख़्श



कहा था उठा पर्दा-ए-शर्म को
वो उल्टा हमीं को उठाने लगे
- मीर मेहदी मजरूह



कहाँ तक एक ही तमसील देखूँ
बस अब पर्दा गिरा दो थक गया हूँ
- लियाक़त अली आसिम



कहां तक अब छिपायेंगे उसे शब के अंधेरों में
हर इक शय होगी अब तो बे-नकाब आहिस्ता-आहिस्ता
- सचिन मेहरोत्रा



कहीं ऐसा न हो कि दूर-रसी
ख़ुद नज़र का हिजाब हो जाए
- सय्यद सिद्दीक़ हसन



कहीं चराग़ों को नींद आए कहीं पे रब्त-ए-हिजाब टूटे
किसी की आँखों की जागे क़िस्मत किसी का बंद-ए-नक़ाब टूटे
- असद रिज़वी



कहीं छाँव है कहीं धूप है कहीं और ही कोई रूप है
कई चेहरे इस में छुपे हुए इक अजीब सी ये नक़ाब है
- राजेश रेड्डी



कहीं मुश्ताक़ से हिजाब हुआ
कहीं पर्दा उठा दिया तू ने
- दाग़ देहलवी



काफ़ी है नक़ाब-ए-ज़ुल्फ़ मुँह पर
आशिक़ से अगर हिजाब आवे
- मीर मोहम्मदी बेदार



कितना खुल खुल के लोग करते हैं
शर्मसारी हिजाब की बातें
- सुहैब फ़ारूक़ी



कितनी दिल-कश हैं तिरी तस्वीर की रानाइयाँ
लेकिन ऐ पर्दा-नशीं तस्वीर फिर तस्वीर है
- शकील बदायूनी



कितने मोती हैं उस के आँचल में
कितनी किरणें हिजाब से निकले
- डॉ.समीर कबीर



किधर से आये किधर चले हो ? अता पता कुछ हमें बताओ
शनाख्त अपनी छिपा रहे हो नकाब मुख से जरा हटाओ
- पद्मानन्दन (राम पंण्डित)



क़िब्ला-ए-मक़्सद-ए-निगाह-ए-नियाज़
फिर वही पर्दा-ए-अमारी है
- मिर्ज़ा ग़ालिब



किया था रेख़्ता पर्दा-सुख़न का
सो ठहरा है यही अब फ़न हमारा
- मीर तक़ी मीर



किया है फ़ाश पर्दा कुफ़्र-ओ-दीं का इस क़दर मैं ने
कि दुश्मन है बरहमन और अदू शैख़-ए-हरम मेरा
- चकबस्त ब्रिज नारायण



किस क़दर नूर-ए-सहर देख के शरमाते हैं
शब हुई ख़त्म सितारों को हिजाब आता है
- अली सरदार जाफ़री



किस क़दर सख़्त मक़ाम आए थे
हम ने रक्खा तिरा पर्दा क्या क्या
- जमीलुद्दीन आली



किस के चेहरे से उठ गया पर्दा
झिलमिलाए चराग़ महफ़िल के
- हसन बरेलवी



किस घर में किस हिजाब में ऐ जाँ निहाँ हो तुम
हम राह देखते हैं तुम्हारी कहाँ हो तुम
- शाह अकबर दानापुरी



किस वक़्त किया मर्दुमक-ए-चश्म का शिकवा
ऐ पर्दा-नशीं हम तुझे रुस्वा न करेंगे
- मोमिन ख़ाँ मोमिन



किसी के ऐब छुपाना सवाब है लेकिन
कभी कभी कोई पर्दा उठाना पड़ता है
- अज़हर इनायती



किसी भी रब्त से परदा न खींचो
सभी परदों के भीतर बरहना है
- अनंत नांदुरकर ख़लिश



किसी में ताब कहाँ थी कि देखता उन को
उठी नक़ाब तो हैरत नक़ाब हो के रही
- जलील मानिकपूरी



किसी शब उस को बे-पर्दा तो आना चाहिए था
हमारे ज़र्फ़ को भी आज़माना चाहिए था
- शमशाद शाद



किसी से ख़्वाब का चर्चा न करना
तमन्नाओं को बे-पर्दा न करना
- गिरिजा व्यास



क़िस्सा अभी हिजाब से आगे नहीं बढ़ा
मैं ‘जनाब’, वो ‘आप’ से आगे नही बढ़ा
- खान हबीबा



क़िस्सा-ए-मजनूँ-ओ-फ़र्हाद भी इक पर्दा है
जो फ़साना है यहाँ शरह-ओ-बयाँ है अपना
- शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम



कीजिए ग़म से आप ही पर्दा
कह रहा है ये मुहतजिब कोई
- दिलशाद नसीम



कुछ ऐसी हक़ीक़तें हैं जिन को
पाबंद-ए-हिजाब चाहता हूँ
- शकील बदायुनी



कुछ ऐसे ज़ख़्म भी दर-पर्दा हम ने खाए हैं
जो हम ने अपने रफ़ीक़ों से भी छुपाए हैं
- इक़बाल अज़ीम



कुछ तो किसी ने उन्हें समझा दिया
हम जो गए आज तो पर्दा किया
- नसीम देहलवी



कुछ मिरे शौक़ ने दर-पर्दा कहा हो जैसे
आज तुम और ही तस्वीर-ए-हया हो जैसे
- सय्यद एहतिशाम हुसैन



कुछ हवा का भी हाथ था वर्ना
पर्दा यूँ ही हिला नहीं होता
- इंद्र सराज़ी



कुफ़्र ही दीन बन गया मेरा
कुफ़्र में जो हिजाब था न रहा
- लईक़ आजिज़



क़ुर्बान इस हिजाब के इस शर्म के निसार
इतना न आशिक़ों से कर ऐ मह-लक़ा लिहाज़
- अरशद अली ख़ान क़लक़



कुल आलम-ए-वुजूद कि इक दश्त-ए-नूर था
सारा हिजाब तीरा-दिली का क़ुसूर था
- अकबर हैदराबादी



क़ुसूर इस को समझिए मिरी बसारत का
वो बे-लिबास रहा बे-हिजाब हो न सका
- कफ़ील अनवर



क़ैस ने पर्दा-ए-महमिल को जो देखा तो कहा
ये भी अल्लाह करे मेरा गरेबाँ हो जाए
- मुज़्तर ख़ैराबादी



कैसा है कौन ये तो नज़र आ सके कहीं
पर्दा ये दरमियाँ से हटा लेना चाहिए
- ज़फ़र इक़बाल



कैसी शिकस्त-ए-दिल थी कि इक इक सदा के बा'द
एक इक हिजाब उठा के कोई जल्वा-गर हुआ
- शादाँ इंदौरी



कोई अच्छा नज़र आ जाए तो इक बात भी है
यूँ तो पर्दे में सभी पर्दा-नशीं अच्छे हैं
- मुज़्तर ख़ैराबादी



कोई जुम्बिश पस-ए-पर्दा हो कभी
सर तिरे दर से लगा रक्खा है
- मुश्ताक़ अंजुम



कोई न हिजाब काम आया
देखा तो वो थे मिरी नज़र में
- जलील मानिकपूरी



कोई पर्दा मियान-ए-इश्क़ हाइल हो नहीं सकता
ये हद है तो भी अब मद्द-ए-मुक़ाबिल हो नहीं सकता
- बलदेव राज



कौन था कल बाइस-ए-बे-पर्दगी
आप मुझ से आज पर्दा कीजिए
- आसी ग़ाज़ीपुरी



कौन-ओ-इमकान में दो तरह के ही तो शो'बदा-बाज़ हैं
एक पर्दा गिराता है और एक पर्दा नहीं छोड़ता
- तहज़ीब हाफ़ी



क्या अजनबी क्या आशना
ये शहर ए नक़ाबपोश है
- शारिक़ हयात



क्या करोगे हिजाब करके अब
हमने जी भर के तुम को देख लिया
- जावेद अकरम



क्या ज़रूरी है कि हर पर्दा उठाया जाए
मेरे हालात भी अपने ही मकाँ से सुनिए
- निदा फ़ाज़ली



क्या ज़ुल्म है बे-पर्दा उसे ग़ैर ने देखा
क्यूँ पर्दा मिरी आँख का हाइल नहीं होता
- अब्दुल हादी वफ़ा



क्या देखिए कि देख ही सकते नहीं उसे
अपनी निगाह-ए-शौक़ हिजाब-ए-नज़र है आज
- ताजवर नजीबाबादी



क्या पस-ए-पर्दा-ए-तवहहुम है
क्या सर-ए-पर्दा-ए-हक़ीक़त है
- रसा चुग़ताई



क्या मज़ा पर्दा-ए-वहदत में है खुलता नहीं हाल
आप ख़ल्वत में ये फ़रमाइए क्या करते हैं
- मुनीर शिकोहाबादी



क्या लुत्फ़ जो ग़ैर पर्दा खोले
जादू वो जो सर पे चढ़ के बोले
- पंडित दया शंकर नसीम लखनवी



ख़मोशी जो कभी थी पर्दा-ए-ग़म
यही ग़म्माज़ होती जा रही है
- आनंद नारायण मुल्ला



ख़राब-ए-दीद को यूँ ही ख़राब रहने दे
कोई हिजाब उठा दे नक़ाब रहने दे
- सुहा मुजद्ददी



ख़लवत-ए-क़ुद्स की बे-पर्दा तजल्ली को न पूछ
शौक़-ए-नज़्ज़ारा में सिर्फ़ आँख का पर्दा देखा
- औज लखनवी



ख़ला का ख़ौफ़ पस-ए-पर्दा-ए-ग़ुबार नहीं
हिसार-ए-ख़ाक से फिर भी कोई फ़रार नहीं
- मर्ग़ूब हसन



ख़लिश है फूल से तितली की ग़ुफ़्तगू नाजुक
ऐसे घड़ियों की उलटकर नक़ाब क्यूं देखे
- अनंत नांदुरकर खलिश



ख़ल्वतों के शैदाई ख़ल्वतों में खुलते हैं
हम से पूछ कर देखो राज़ पर्दा-दारों के
- साहिर लुधियानवी



ख़ामोशी के दर-पर्दा महसूस किया
तेरी आँखों को अपना जासूस किया
- आतिफ़ तौक़ीर



खिड़कियों में हिजाब था पहले
अब आँखों पे हिजाब रखता हूँ
- चेतन पंचाल



खिड़की का वो भारी पर्दा
हिज्र में मलमल हो जाता है
- कामरान नफ़ीस



ख़ुद अपना हाल सुनाते हिजाब आता है
है बज़्म में कोई देरीना आश्ना कि नहीं
- ख़ुर्शीद रिज़वी



ख़ुद अपनी ज़ीस्त का पर्दा था जब अलग ये हुआ
हिजाब दूर जमाल-ए-रुख़-ए-निकू ने किया
- बेताब अज़ीमाबादी



ख़ुद अपनी महफ़िल में इस क़दर क्यूँ है एहतिमाम-ए-हिजाब तेरा
यहाँ तो मौजूद तू ही तू है कहाँ है कोई जवाब तेरा
- सलाहुद्दीन फ़ाइक़ बुरहानपुरी



ख़ुद 'तर्ज़' जो हिजाब में हो उस से क्या हिजाब
मुझ से निगाहें चार करो मैं नशे में हूँ
- गणेश बिहारी तर्ज़



ख़ुद दिल में रह के आँख से पर्दा करे कोई
हाँ लुत्फ़ जब है पा के भी ढूँडा करे कोई
- असरार-उल-हक़ मजाज़



ख़ुद ही जो पस-ए-पर्दा-ए-असरार छुपे हैं
वो कैसे भला पर्दा-ए-असरार उठाएँ
- हफ़ीज़ शाहिद



ख़ुद-नुमाई में जो हिजाब रहे
तीरगी उस की इक अलामत है
- जमील मज़हरी



ख़ुद-बख़ुद फूल बे-हिजाब हुए
जोश में है निखार का मौसम
- ज़मीर अज़हर



ख़ुदा के लिए छोड़ दो अब ये पर्दा कि हैं आज हम तुम नहीं ग़ैर कोई
शब-ए-वस्ल भी है हिजाब इस क़दर क्यों ज़रा रुख़ से आँचल उठा कर तो देखो
- पुरनम इलाहाबादी



ख़ुदा के वास्ते चेहरे से टुक नक़ाब उठा
ये दरमियान से अब पर्दा-ए-हिजाब उठा
- शाह नसीर



ख़ुदा के वास्ते ज़ाहिद उठा पर्दा न काबे का
कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफ़िर-सनम निकले
- बहादुर शाह ज़फ़र



ख़ुदा जाने ग़ुबार-ए-राह है या क़ैस है लैला
कोई आग़ोश खोले पर्दा-ए-महमिल से मिलता है
- जलील मानिकपूरी



ख़ुदा तेरे जिन्हें अपनी ख़ुदाई पर तकब्बुर था
हटा जो रुख़ से पर्दा तो पस-ए-पर्दा बशर निकले
- इरफ़ान ग़ाज़ी



खुल के मिलते 'निहाल' क्या जिस की
बे-हिजाबी भी थी हिजाब-ज़दा
- निहाल रिज़वी



खुलने ही लगे उन पर असरार-ए-शबाब आख़िर
आने ही लगा हम से अब उन को हिजाब आख़िर
- वासिफ़ देहलवी



खुला मिला कोई चेहरा ढका मिला कोई
सभी की ज़ात पे हम को मगर हिजाब मिला
- नवीन जोशी



खुला है कब कोई जौहर हिजाब में 'अकबर'
गुहर के बाब में तर्क-ए-सदफ़ ज़रूरी था
- अकबर हैदराबादी



ख़ुलूस ईसार पारसाई हया सदाक़त हिजाब लिख्खूँ
मैं लफ़्ज़ पानी के ढूँड लाऊँ तो बर्फ़ की ये किताब लिख्खूँ
- जावेद रशीद आमिर



खुले किस तरह पर्दा पर्दा-ए-गोश-ए-तहय्युर पर
कि बे-सौत-ओ-सदा है पर्दा साज़-ए-बज़्म-ए-वहदत का
- बयान मेरठी



खुले जो कोई तो खुल कर किसी से बातें हों
उठे हिजाब तो कुछ लुत्फ़-ए-गुफ़्तुगू आए
- रियाज़ ख़ैराबादी



ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं
- दाग़ देहलवी



खेल को ख़त्म करो जल्दी से
वर्ना मैं पर्दा गिराने लगा हूँ
- ज़ाहिद शम्सी



ख़ोल चेहरों पे चढ़ाने नहीं आते हम को
गाँव के लोग हैं हम शहर में कम आते हैं
- बेदिल हैदरी



ख़्वाब के पर्दे में आता है
सोता पा के जगाने वाला
- आरज़ू लखनवी



ख़्वाब में इक हसीं दिखाई दिया
वो भी पर्दा-नशीं दिखाई दिया
- फ़हमी बदायूनी



ख़्वाब से पर्दा करो देखो मत
अब अगर देख सको देखो मत
- महबूब ख़िज़ां



ग़ज़ल के पर्दे में बे-पर्दा ख़्वाहिशें लिखना
न आया हम को बरहना गुज़ारिशें लिखना
- फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी



ग़नीमत है इतना तो उट्ठा हिजाब
कि अब ख़्वाब में भी वो आने लगे
- मीर मेहदी मजरूह



ग़म पसे पर्दा ए हिजाब रहें,
अपने हालात पै नज़र रखिये,
- उर्मिला माधव



गर इश्क़ है तो देखने पिव को शिताब आ
ला-शक हो हक़ की रह में चला बे-हिजाब आ
- अलीमुल्लाह



गर ये उट्ठे तो फिर क़यामत हो
ये जो पलकें हैं सो नक़ाब सी है
- अनंत नांदुरकर ख़लिश



गर है मिलना तो रूह तक पहुंचो,
जिस्म का ये ह़िजाब कुछ भी नहीं
- पवन मुंतज़िर



गरचे है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल पर्दा-दार-ए-राज़-ए-इश्क़
पर हम ऐसे खोए जाते हैं कि वो पा जाए है
- मिर्ज़ा ग़ालिब



गर्दन भी झुकी रहती है करते भी नहीं बात
दस्तूर-ए-हिजाब और हैं अंदाज़-ए-हिजाब और
- साइल देहलवी



गली ये आज जो रोशन नहीं हुई अब तक
सनम के चेहरे पे अब तक हिज़ाब है शायद
- डॉ.राजीव जोशी



ग़श खा के गिरे मूसा अल्लाह-री मायूसी
हल्का सा वो पर्दा भी दीवार नज़र आया
- फ़िराक़ गोरखपुरी



गहन से चाँद निकलता है किस तरह देखें
नक़ाब को रुख़-ए-रौशन से खोल-खाल के फेंक
- जलील मानिकपूरी



ग़ाफ़िल तिरी नज़र ही से पर्दा उठा न था
वर्ना वो किस मक़ाम पे जल्वा-नुमा न था
- रघुनाथ सहाय



ग़िज़ा इसी में मिरी मैं इसी ज़मीं की ग़िज़ा
सदा फिर आती है क्यूँ पर्दा-ए-ख़ला से मुझे
- अदीम हाशमी



गिराते यूँही सर-ए-तूर बिजलियाँ हम पर
अगर हिजाब था पर्दे से गुफ़्तुगू करते
- रियाज़ ख़ैराबादी



गुज़रता है इन पे अलमिया ये अक्सर
कि चेहरा ही भूले नक़ाबों के उश्शाक़
- नवीन जोशी ‘नवा’



गुदड़ी में फिर लपेट के लाया है कोई ला'ल
क्यों बे-हिजाब हो गया सौदा हिजाब का
- नय्यर क़ुरैशी गंगोही



ग़ुबार शाम-ए-वस्ल का भी छट गया
ये आख़िरी हिजाब था जो हट गया
- शाहीन अब्बास



ग़ैर के घर बजा रहे हो सितार
तुम ने दर-पर्दा ठाट बदला है
- मुनीर शिकोहाबादी



ग़ैर से बाँधते हो अह्द-ए-वफ़ा
हम से लेकिन हिजाब होता है
- अरमान रामपुरी



ग़ैर से बे-हिजाब मिलते हो
शब-ए-आशिक़ सहर न हो जाए
- मोमिन ख़ाँ मोमिन



गो बे-नक़ाब रहते हो पर्दे में है हिजाब
दर-पर्दा हम से आप को छुपना न चाहिए
- मुनीर शिकोहाबादी



गो सरापा हिजाब हैं फिर भी
तेरे रुख़ की नक़ाब हैं हम लोग
- जिगर मुरादाबादी



गो हवा-ए-गुलसिताँ ने मिरे दिल की लाज रख ली
वो नक़ाब ख़ुद उठाते तो कुछ और बात होती
- आग़ा हश्र काश्मीरी



घर से जूँ माह-ए-बे-हिजाब निकल
अब तो ऐ शम्अ-रू चराग़ लगा
- हसरत अज़ीमाबादी



घर से बे-पर्दा परी-रू जो निकल जाते हैं
देखने वालों के ईमान बदल जाते हैं
- शब्बीर अहमद शाद



घुँघट शब-ए-उरूस उठाने की देर थी
फिर चादर-ए-हिजाब सँभाली नहीं गई
- एजाज़ मानपुरी



चंद नामों पे पर्दा रहने दो
मेरी इतनी है इल्तिजा सब से
- अब्दुस समी सिद्दीक़ी नईम



चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अंधेरा है
ज़रा नक़ाब उठाओ बड़ा अंधेरा है
- साग़र सिद्दीक़ी



चर्ख़ को कब ये सलीक़ा है सितमगारी में
कोई माशूक़ है इस पर्दा-ए-ज़ंगारी में
- मन्नू लाल सफ़ा लखनवी



चल दिए मेरे मुस्कुराने पर
पर्दा-ए-गुल हटा लिया होता
- बीना गोइंदी



चश्म-ए-इबरत से देख पर्दा-नशीं
शक्ल ताबूत की है डोली में
- शाद लखनवी



चश्म-ए-ज़ाहिर से रुख़-ए-यार का पर्दा देखा
आँखें जब फूट गईं तब ये तमाशा देखा
- हसन बरेलवी



चश्म-ए-नज़्ज़ारा से मानिंद-ए-हिजाब
तोहमत-ए-नज़्ज़ारा मुश्किल से उठी
- ताबिश देहलवी



चश्म-ए-बातिन में से जब ज़ाहिर का पर्दा उठ गया
जो मुसलमाँ था वही हिन्दू नज़र आया मुझे
- मीर कल्लू अर्श



चाँद छत पर नक़ाब में आया
रुख़ नया इज़्तिराब में आया
- अजमेर अन्सारी



चाँद निकला तो इस क़रीने से
इक हसीं बे-हिजाब हो जैसे
- आबिद वदूद



चाँदनी सी बिखर गई हर-सू
रुख़ से पर्दा हटा दिया उस ने
- तौक़ीर अहमद



चाक पर्दे से ये ग़म्ज़े हैं तो ऐ पर्दा-नशीं
एक मैं क्या कि सभी चाक-ए-गरेबाँ होंगे
- मोमिन ख़ाँ मोमिन



चाक हो पर्दा-ए-वहशत मुझे मंज़ूर नहीं
वर्ना ये हाथ गिरेबान से कुछ दूर नहीं
- दाग़ देहलवी



चाहत का इज़हार किया सो अपना काम ख़राब हुआ
उस पर्दे के उठ जाने से उस को हम से हिजाब हुआ
- मीर तक़ी मीर



चाहतों में शुऊ'र है कितना निस्बतें हैं ग़यूर किस दर्जा
जब हुई शर्मसार मैं उस की चश्म-ए-तर में 'हिजाब' आया है
- शाहजहाँ जाफ़री हिजाब अमरोहवी



चाहे हिजाब में रहो तो चाहे बे-हिजाब
हम तुम ही तो हैं और कोई दरमियाँ नहीं
- मख़मूर जालंधरी



चिराग़ आफ़ताब गुम बड़ी हसीन रात थी
शबाब की नक़ाब गुम बड़ी हसीन रात थी
- सुदर्शन फ़ाकिर



चिलमन हो या नक़ाब हो या पर्दा-ए-हया
सूरत तिरी किसी से छुपाई न जाएगी
- जलील मानिकपूरी



चीख करके"कुँवर" वो कह उट्ठे,
आज तो बे-नक़ाब कर डाला
- कुँवर कुसुमेश



चीर कर पर्दा-ए-मह-ओ-अंजुम
आप ही पर नज़र गई आख़िर
- मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा



चेहरा कहां छुपाऊं हिजाबों के शहर में
हैरत ज़दा खडा हूँ,नक़ाबों के शहर में
- मुसव्विर सब्ज़वारी



चेहरा-चेहरा है मक्कारी, गंगा तेरा क्या होगा ?
पत्थर हल्के, फूल हैं भारी, गंगा तेरा क्या होगा ?
- सलीम अख़्तर



छुप छुप के कहाँ तक तिरे दीदार मिलेंगे
ऐ पर्दा-नशीं अब सर-ए-बाज़ार मिलेंगे
- शहज़ाद अहमद



छुप न सकेगा इश्क़ हमारा चारों तरफ़ हैं उन का नज़ारा
पर्दा नहीं जब कोई ख़ुदा से बंदों से पर्दा करना क्या
- शकील बदायुनी



छुपते हैं और छुप नहीं सकते
ऐसा रंगीं हिजाब देखा है
- वफ़ा नियाज़ी



छोटा है सिन तुम्हारा मुखड़ा है प्यारा प्यारा
फिर हो भला गवारा शर्म-ओ-हिजाब क्यूँ कर
- जुरअत क़लंदर बख़्श



जज़्बा-ए-शौक़ कामयाब हुआ
आज मुझ से उन्हें हिजाब हुआ
- जिगर मुरादाबादी



जन्नत का पट धीरे धीरे खुलता है
पहले तो शर्मा कर पर्दा कर लेगी
- ज्ञानेंद्र विक्रम



जब कि बे-पर्दा तू हुआ होगा
माह पर्दे से तक रहा होगा
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी



जब कि वो उम्र थे शबाब न था
ये नक़ाब और ये हिजाब न था
- रियाज़ हसन खाँ ख़याल



जब तक कि है बंदगी ख़ुदाई का हिजाब
बंदे को भला कहीं ख़ुदा मिलता है
- इस्माइल मेरठी



जब परी-रू हिजाब करते हैं
दिल के दर्पन कूँ आब करते हैं
- दाऊद औरंगाबादी



जब भी सीने में किसी बुत को सजाया हम ने
इक हिजाब आप के चेहरे से उठाया हम ने
- माया खन्ना राजे बरेलवी



जब सारे के सारे ही बे-पर्दा हों
ऐसे में ख़ुद पर्दा करना पड़ता है
- नवाज़ देवबंदी



जब से उस ने खींचा है खिड़की का पर्दा एक तरफ़
उस का कमरा एक तरफ़ है बाक़ी दुनिया एक तरफ़
- तहज़ीब हाफ़ी



जब से देखा है उन को बे-पर्दा
नख़वत-ए-आगही नहीं जाती
- शकील बदायुनी



जब्र ज़ौक़-ए-नज़र पे करते रहे
हुस्न को बे-हिजाब क्या करते
- सय्यद मोहम्मद ज़फ़र अशक संभली



ज़माना आया है बे-हिजाबी का आम दीदार-ए-यार होगा
सुकूत था पर्दा-दार जिस का वो राज़ अब आश्कार होगा
- अल्लामा इक़बाल



ज़माना जब कभी आमादा-ए-फ़रेब हुआ
किसी ने पर्दा उठाया है आगही के लिए
- मानी नागपुरी



ज़माना तो मुझे कहता है 'फ़ारिस'
मगर 'फ़ारिस' का पर्दा-दार हूँ मैं
- रहमान फ़ारिस



ज़माने तेरी ख़ातिर देख ये क्या कर लिया मैं ने
कि वो बे-पर्दा आए और पर्दा कर लिया मैं ने
- अबरार नग़मी



ज़माने में फ़साना बन गई दीवानगी मेरी
तिरे पर्दा ने की पर्दा-नशीं पर्दा-दरी मेरी
- मुनीर भोपाली



ज़मीं पे जिन को हिजाब-ओ-हया ज़रूरी है
ग़ज़ब है उन की हिजाब-ओ-हया से दूरी है
- रिफ़अत अल हुसैनी



ज़रा नक़ाब-ए-हसीं रुख़ से तुम उलट देना
हम अपने दीदा-ओ-दिल का ग़ुरूर देखेंगे
- शकील बदायुनी



ज़रा पर्दा हटा दो सामने से बिजलियाँ चमकें
मिरा दिल जल्वा-गाह-ए-तूर बन जाए तो अच्छा हो
- अली ज़हीर रिज़वी लखनवी



ज़रा वो साथ भी चलते हैं लौट जाते हैं
हिजाब टूट रहे हैं मगर हिजाब के साथ
- अहमद आदिल



जरुरी नहीं है हर सच खूबसूरत हो।
'सागर' कुछ को हिज़ाब में रहने दो।।
- सुबोध श्रीवास्तव 'सागर'



जल्वा नुमूद-ए-जिस्म है और जिस्म है हिजाब
पर्दे में कोई रहता है पर्दा किए बग़ैर
- महमूद सरोश



जल्वा हो तो जल्वा हो पर्दा हो तो पर्दा हो
तौहीन-ए-तजल्ली है चिलमन से न झाँका कर
- फ़ना निज़ामी कानपुरी



जल्वे को पर्दा पर्दे को जल्वा बना दिया
अहल-ए-नज़र को तुम ने तमाशा बना दिया
- वेद प्रकाश मालिक सरशार



जल्वे बेताब थे जो पर्दा-ए-फ़ितरत में 'जिगर'
ख़ुद तड़प कर मिरी चश्म-ए-निगराँ तक पहुँचे
- जिगर मुरादाबादी



जवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा
हया यक-लख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता
- अमीर मीनाई



ज़वाल-ए-उम्र के पर्दे में है हिजाब कहाँ
वुफ़ूर-ए-शौक़ से लबरेज़ अब गुलाब कहाँ
- जाफ़र साहनी



जहाँ में कोई हक़ीक़त भी बे-हिजाब नहीं
उरूस-ए-मर्ग के मुँह पर मगर नक़ाब नहीं
- आग़ा नगीनवी



जाँ मुतरिब-ए-तराना-ए-हल-मिम-मज़ीद है
लब पर्दा-संज-ए-ज़मज़मा-ए-अल-अमाँ नहीं
- मिर्ज़ा ग़ालिब



जान-ए-मन तेरी बे-नक़ाबी ने
आज कितने नक़ाब बेचे हैं
- जौन एलिया



जाने किस किस का गला कटता पस-ए-पर्दा-ए-इश्क़
खुल गए मेरी शहादत में सितमगर कितने
- असग़र मेहदी होश



जाम-ए-मय मुँह से तू लगा अपने
छोड़ शर्म ओ हिजाब की बातें
- शेख़ इब्राहीम ज़ौक़



ज़ालिम उठा तू पर्दा-ए-वहम-ओ-गुमान-ओ-फ़िक्र
क्या सामने वो मरहला-हाए-यक़ीं रहे
- जिगर मुरादाबादी



ज़ाहिर में भी क्या क्या पर्दा-दारी है
दुनिया-दारी पुरकारी अय्यारी है
- प्रीतपाल सिंह बेताब



ज़िंदगी और ज़िंदगी की यादगार
पर्दा और पर्दे पे कुछ परछाइयाँ
- असर लखनवी



ज़िंदगी के हसीन चेहरे पर
ग़म ने कितने हिजाब डाले हैं
- क़ाबिल अजमेरी



ज़िंदगी तो क़ैद है और पर्दा-ए-महफ़िल में है
आरज़ू हुस्न-ए-ज़मीं की गोशा-ए-ग़ाफ़िल में है
- एहसान जाफ़री



ज़िंदगी थी हिजाब के दम तक
बरहमी-ए-हिजाब ने मारा
- जिगर मुरादाबादी



ज़िंदगी बन के मिरे दिल में समा जा सलमा
मौत इक पर्दा है ये पर्दा उठा दे आ कर
- अख़्तर शीरानी



ज़िंदगी मौत के दरीचे को
एक पर्दा है जब उठा लिया जाए
- अज़हर फ़राग़



जिस दिन से दोस्त रखता हूँ उस को हिजाब-ए-हुस्न
अपना हमेशा दुश्मन-ए-दीदार ही रहा
- हसरत अज़ीमाबादी



जिस पे मेरी जुस्तुजू ने डाल रक्खे थे हिजाब
बे-ख़ुदी ने अब उसे महसूस ओ उर्यां कर दिया
- असग़र गोंडवी



जिसकी शमशीर पे तारीख़ सरनिगूँ रख्खे
हम उसकी ज़ात में ख़ाली हिजाब क्यूं देखे
- अनंत नांदुरकर खलिश



जिसको फिरदौस का खिताब दिया
उसको तोहफ़े में क्यों नकाब दिया
- अब्दुल रहमान मंसूर



जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है
जिन्हें बे-ख़ुदी-ए-फ़ना मिली उन्हें ज़िंदगी की ख़बर भी है
- फ़िराक़ गोरखपुरी



जिस्म को जाँ का सिरा पर्दा-ए-रानाई कर
साए को धूप में फैला के न हरजाई कर
- शाैकत वास्ती



जिस्म बुर्के में और मुँह बाहर
बे-हया ये भी कुछ हिजाब हुआ
- रऊफ़ रहीम



जी में आता है कि दें पर्दे से पर्दे का जवाब
हम से वो पर्दा करें दुनिया से हम पर्दा करें
- नज़ीर बनारसी



जुज़ क़ुर्बत-ए-जाँ पर्दा-ए-जाँ कोई नहीं था
वो था तो वहाँ और जहाँ कोई नहीं था
- इफ्तिखार शफ़ी



जो अपने मुब्तला हों और दिल से चाहते हों
लाज़िम नहीं फिर उन से रुकिए हिजाब कीजे
- नज़ीर अकबराबादी



जो इंसाँ बारयाब-ए-पर्दा-ए-असरार हो जाए
तो इस बातिल--कदे में ज़िंदगी दुश्वार हो जाए
- सीमाब अकबराबादी



जो एक दूसरे की हक़ीक़त छुपा सके
ऐसा हिजाब उन के मिरे दरमियाँ कहाँ
- महमूद सरोश



जो था मज़हर वही बना पर्दा
राज़-दारी ये तेरे महरम की
- सय्यद बशीर हुसैन बशीर



जो नोंच नोंचकर इज़्जत लूट रहे हैं सर ए आम
वही बंदूक की नोंक पर पहना रहे हैं हिजाब
- भावसुधा



जो पर्दादारी चली तो यारी नहीं चलेगी
हमारी दुनिया में दुनियादारी नहीं चलेगी
- आशु मिश्रा



जो पर्दों में ख़ुद को छुपाए हुए हैं
क़यामत वही तो उठाए हुए हैं
- हफ़ीज़ बनारसी



जो मुझ से मिलना है 'रहबर' तो मिल खुले दिल से
कि दरमियाँ कोई पर्दा कोई हिजाब न रख
- रहबर ताबानी दरियाबादी



जो मुद्दतों में किसी शोख़ का शबाब आया
रहीन-ए-दामन-ओ-मिन्नत-कश-ए-हिजाब आया
- मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी



जो रुख़ से पर्दा उठाओ तो कोई बात बने
हमें भी जल्वा दिखाओ तो कोई बात बने
- हैरत फ़र्रुख़ाबादी



जो वहम है डर है पस-ए-पर्दा नहीं निकला
बस्ती से अभी तक वो बगूला नहीं निकला
- अख़्तर उस्मान



जो होती ख़ूब-सूरत तो न छुपती क़ैस से लैला
मगर ऐसे ही वैसे पर्दा-ए-महमिल में रहते हैं
- दाग़ देहलवी



झूट का साबित हो जाना सच खुल जाना
रात पे पर्दा करना दिन का आना भी
- नूर अहमद नूर



ढूँडते ढूँडते ख़ुद को मैं कहाँ जा निकला
एक पर्दा जो उठा दूसरा पर्दा निकला
- सरवर आलम राज़



तग़ाफ़ुल बद-गुमानी बल्कि मेरी सख़्त जानी से
निगाह बे हिजाब नाज़ को बीम गज़ंद आया
- मिर्ज़ा ग़ालिब



तजल्ली राज़ है सहरा-ए-हस्ती
हरीम-ए-हुस्न का पर्दा उठा क्या
- राज़ चाँदपुरी



तदबीर के हाथों से गोया तक़दीर का पर्दा उठता है
या कुछ भी नहीं या सब कुछ है या मिटी है या सोना है
- अफ़सर मेरठी



तमाशा करने वालों को ख़बर दी जा चुकी है
कि पर्दा कब गिरेगा कब तमाशा ख़त्म होगा
- इफ़्तिख़ार आरिफ़



तमाशा-गाह-ए-आलम पर्दा-दार रू-ए-ज़ेबा है
मिरी नज़रों में लेकिन ख़ुद ये पर्दा हुस्न-ए-यकता है
- सय्यद बशीर हुसैन बशीर



तलाश-ए-मा'नी-ए-हस्ती में फ़ल्सफ़ा न ख़िरद
ये राज़ आज तलक बे-हिजाब हो न सका
- अख़्तर शीरानी



तसव्वुर में भी अब वो बे-नक़ाब आते नहीं मुझ तक
क़यामत आ चुकी है लोग कहते हैं शबाब आया
- हफ़ीज़ जालंधरी



तसव्वुर से भी देखिए क्यूँ कमर को
हिजाब आते हैं दरमियाँ कैसे कैसे
- नसीम मैसूरी



ता-कुजा ये पर्दा-दारी-हा-ए-इश्क़-ओ-लाफ़-ए-हुस्न
हाँ सँभल जाएँ दो-आलम होश में आता हूँ मैं
- जिगर मुरादाबादी



'ताज' है बंदा तिरा हुस्न-ए-अज़ल
क्या भला इस से भी पर्दा चाहिए
- ताज पयामी



ताब-ए-नज़्ज़ारा इन आँखों को कहाँ
देखने वालों से पर्दा चाहिए
- जलील मानिकपूरी



ताबिश-ए-हुस्न हिजाब-ए-रुख़-ए-पुर-नूर नहीं
रख़्ना-गर हो निगह-ए-शौक़ तो कुछ दूर नहीं
- बर्क़ देहलवी



तालिब-ए-दीदार से पर्दा नहीं
क्यों हिजाब-ए-रुख़ नक़ाब-ए-यार है
- शाह अकबर दानापुरी



तिरी जुस्तुजू भी हिजाब है तिरी आरज़ू भी हिजाब है
कभी दाम-ए-अक़्ल-ओ-शुऊ'र से जो निकल सके तो निकल के आ
- शायर फतहपुरी



तिरे क़रीब रहें हम तुझे न देख सकें
हमारी आँखों पे शायद कोई हिजाब सा है
- मश्कूर मुरादाबादी



तिरे जल्वे तेरे हिजाब को मेरी हैरतों से नुमू मिली
कि था शब से दिन कभी तीरा-तर कभी शब ही आइना-रू मिली
- मुख़्तार सिद्दीक़ी



तिरे पर्दा-नशीं होने में तो हैरत ही क्या लेकिन
तू जिस पर्दे में पिन्हाँ है वो पर्दा भी नहीं दिखता
- इम्तियाज़ ख़ान



तुझ से पर्दा नहीं मिरे ग़म का
तू मिरी ज़िंदगी का महरम है
- अंजुम आज़मी



तुझ से हिजाब क्या मगर ऐ हम-नशीं न पूछ
उस दर्द-ए-हिज्र को जो शब-ए-ग़म उठा नहीं
- फ़िराक़ गोरखपुरी



तुझे ख़ल्क़ कहती है ख़ुद-नुमा तुझे हम से क्यूँ ये हिजाब है
तिरा जल्वा तेरा है पर्दा-दर तेरे रुख़ पे क्यूँ ये नक़ाब है
- पंडित जवाहर नाथ साक़ी



तुझे गुमान कि पर्दा-ब-पर्दा तेरा वजूद
मुझे यक़ीन कि राज़-ए-दरून-ए-राज़ हूँ मैं
- तालिब देहलवी



तुझे नक़्श-ए-हस्ती मिटाया तो देखा
जो पर्दा था हाइल उठाया तो देखा
- ममनून निज़ामुद्दीन



तुझे हर शय में देखा 'सेहर' ने हर शय में पहचाना
मगर फिर भी है इक पर्दा वो पर्दा और ही कुछ है
- सेहर इश्क़ाबादी



तुम अगर बे-हिजाब हो जाते
जाने कितनों के दिल गए होते
- मिर्ज़ा हसन नासिर



तुम को हिजाब मुझ को तमाशा पसंद है
मेरी नज़र तुम्हारी नज़र से बुलंद है
- माहिर-उल क़ादरी



तुम जल्वा दिखाओ तो ज़रा पर्दा-ए-दर से
हम थक गए नज़्ज़ारा-ए-ख़ुरशीद-ओ-क़मर से
- अमजद नजमी



तुम जो पर्दे में सँवरते हो नतीजा क्या है
लुत्फ़ जब था कि कोई देखने वाला होता
- जलील मानिकपूरी



तुम से क्यूँकर वो छुप सके 'हसरत'
निगह-ए-शौक़ पर्दा दर न हुई
- हसरत मोहानी



तुमको पहचानता नहीं कोई
फिर भी चेहरा नक़ाब में रखना
- राहत इन्दोरी



तुम्हारे हम तो क़दीमी ग़ुलाम बंदे हैं
तुम्हें न चाहिए हम से हिजाब आँखों में
- नज़ीर अकबराबादी



तुम्हें तुम्हारे करम का आईना, दिखा कर मानेंगे
हमें भी ज़िद है नक़ाब तुम्हारी, हटा कर मानेंगे
- गोविन्द वर्मा सिराज



तुम्हें वो पर्दा यहाँ है पर्दा-दारी
मेरे दिल में नहीं तो फिर कहाँ हो
- अनवर देहलवी



तू अपने आप को आईना सा बना पहले
वगर्ना कैसे भला ख़ुद को बे-हिजाब करूँ
- हाजरा नूर ज़रयाब



तू अपने साथ साथ में पर्दा-नशीं को भी
रुस्वा करेगा ऐ दिल-ए-ख़ाना-ख़राब क्या
- बेंजामिन डीयूड मोंट रोज़ मुज़्तर



तू उठा दे पर्दा तो देख लूँ किसे होश है तुझे देख कर
अभी हर निगाह है मुद्दई कोई पर्दा जबकि उठा नहीं
- हाजी शफ़ीउल्लाह शफ़ी बहराइची



तू कब मआल-ए-जौर-ओ-जफ़ा को समझ सका
तेरा जमाल तेरे लिए भी हिजाब था
- ज़हीर काश्मीरी



तू ख़ुदा है न मेरा इश्क फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसां हैँ तो क्यूं इतने हिजाबों में मिलें
- अहमद फ़राज़



तू ने जिस जल्वे को पर्दा कर दिया
घूमता-फिरता है घर घर देख तो
- बिमल कृष्ण अश्क



तू रहे लाख अब हिजाबों में
ढूँढ़ लेंगे तुझे नकाबों में
- कविता सिंह



तू सुब्ह-दम न नहा बे-हिजाब दरिया में
पड़ेगा शोर कि है आफ़्ताब दरिया में
- शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम



तू है मअ'नी पर्दा-ए-अल्फ़ाज़ से बाहर तो आ
ऐसे पस-मंज़र में क्या रहना सर-ए-मंज़र तो आ
- फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी



तूने चेहरे पे नक़ाबो को चढ़ा रखा है
अक्स-ए-आईना भी पहचान नहीं आएगा
- कबीर राज



तेरा पर्दा भी उठा देगी मिरी रुस्वाई
तेरा पर्दा है मिरे ख़ाक-ब-सर होने तक
- मेला राम वफ़ा



तेरी आवाज़ गाह गाह ऐ दोस्त!
पर्दा-ए-साज़-ए-जाँ से आती है
- रईस अमरोहवी



तेरी बे-पर्दगी ही हुस्न का पर्दा निकली
काम कुछ कर गई हर हाल में ग़फ़लत मेरी
- सुहैल अज़ीमाबादी



तेरी हैरत की क़सम आप उठाएं तो नक़ाब
मेरा जिम्मा है कि जलवे न परेशां होंगे
- जिगर मुरादाबादी



तेरे क़ुर्बान 'क़मर' मुँह सर-ए-गुलज़ार न खोल
सदक़े उस चाँद सी सूरत पे न हो जाए बहार
- क़मर जलालवी



तेरे पर्दे ने की ये परदादारी
तेरे छुपते ही कुछ छुपा न रहा
- मोमिन ख़ाँ मोमिन



तेरे मेरे दरमियाँ है एक मुद्दत से 'हिजाब'
ज़िंदगी सूरत भी तेरी जानी पहचानी नहीं
- सलमा हिजाब



तेरे मेरे बीच मिज़ाज का पर्दा है
क्या कहते हो पर्दा बाँट लिया जाए
- राहिल बुख़ारी



तोड़ अपस का हिजाब ऐ 'बहरी'
मुल्क में मन के उस मवास न कर
- क़ाज़ी महमूद बेहरी



तोड़ दो हदें सारी ये भी तजरबा कर लो
ज़ात और सिमटेगी बे-हिजाब होने से
- फ़रहान सालिम



था नक़ाब में अब तक बे-हिजाब जब देखा
फ़ाश हो गया आख़िर उस का बद-नुमा चेहरा
- बर्क़ी आज़मी



दम-ए-आख़िर मिरी बालीं पे मजमा' है हसीनों का
फ़रिश्ता मौत का फिर आए पर्दा हो नहीं सकता
- मुज़्तर ख़ैराबादी



दमक रहा है केसरी हिजाब से
इस आईने में कोई हू-ब-हू न हो
- आमिर सुहैल



दर-पर्दा उन्हें ग़ैर से है रब्त-ए-निहानी
ज़ाहिर का ये पर्दा है कि पर्दा नहीं करते
- मिर्ज़ा ग़ालिब



दर-पर्दा किस दवा से जिबिल्लत बदल गई
बच्चे बड़े हुए तो ज़रूरत बदल गई
- रफ़ीक़ अंजुम



दर-पर्दा जफ़ाओं को अगर जान गए हम
तुम ये न समझना कि बुरा मान गए हम
- सैफ़ुद्दीन सैफ़



दर-पर्दा फिर ये रंजिश-ए-ताक़त गुसिल है क्यों
बे-पर्दा फिर ये नाज़िश-ए-सब्र-आज़मा है क्या
- अब्दुल हादी वफ़ा



दर-पर्दा बज़्म-ए-ग़ैर में दोनों की गुफ़्तुगू
उट्ठी उधर निगाह इधर बात हो गई
- क़मर जलालवी



दर-पर्दा सितम हम पे वो कर जाते हैं कैसे
गर कीजे गिला साफ़ मुकर जाते हैं कैसे
- करामत अली शहीदी



दर-पर्दा-ए-बहार जो वो नग़्मा-ख़्वाँ न हो
बुलबुल से नाला गुल से तबस्सुम अयाँ न हो
- वहशी कानपुरी



दरमियाँ जो जिस्म का पर्दा है कैसे होगा चाक
मौत किस तरकीब से हम को मिलाएगी न पूछ
- अभिनंदन पांडे



दरवाज़ा का पर्दा तो रहे कान का पर्दा
हम रू-ब-रू उस पर्दा-नशीं के न रहेंगे
- हातिम अली मेहर



दरिया ब-हुबाब-अंदर तूफ़ाँ ब-सहाब-अंदर
महशर ब-हिजाब-अंदर होना हो तो ऐसा हो
- इब्न-ए-इंशा



दरीचों को तो देखो चिलमनों के राज़ तो समझो
उठेंगे पर्दा-हा-ए-बाम-ओ-दर आहिस्ता आहिस्ता
- मुस्तफ़ा ज़ैदी



दर्द ने करवट ही बदली थी कि दिल की आड़ से
दफ़अ'तन पर्दा उठा और पर्दा-दार आ ही गया
- जिगर मुरादाबादी



दर्द-ए-दिल कहते हुए बज़्म में आता है हिजाब
तख़लिया हो तो कुछ अहवाल सुनाएँ तुझ को
- लाला माधव राम जौहर



दल्लाल चश्म-ए-शोख़ है क़ीमत नज़ारा है
और हुस्न बे-हिजाब ख़रीदार-ए-आईना
- अब्दुल हादी वफ़ा



दस्त-ए-ख़िरद से पर्दा-कुशाई न हो सकी
हुस्न-ए-अज़ल की जल्वा-नुमाई न हो सकी
- तिलोकचंद महरूम



दायरा दाएरे को छूता हुआ
और क़ौसैन पर हिजाब उस का
- अक़ील अब्बास



दिन हक़ीक़त का एक जल्वा है
रात भी है उसी का पर्दा क्या
- बशीर बद्र



दिया अपनी ख़ुदी को जो हम ने उठा वो जो पर्दा सा बीच में था न रहा
रहे पर्दे में अब न वो पर्दा-नशीं कोई दूसरा उस के सिवा न रहा
- बहादुर शाह ज़फ़र



दिल की तरफ़ हिजाब-ए-तकल्लुफ़ उठा के देख
आईना देख और ज़रा मुस्कुरा के देख
- फ़ानी बदायुनी



दिल भी आप को भूल चुका है
साहब आप से पर्दा क्या है
- आफ़ताब हुसैन



दिल मरकज़-ए-हिजाब बनाया न जाएगा
उन से भी राज़-ए-इश्क़ छुपाया न जाएगा
- शकील बदायुनी



दिल में आमद आमद उस पर्दा-नशीं की जब सुनी
दम को जल्दी जल्दी मैं ने जिस्म से बाहर किया
- आग़ा हज्जू शरफ़



दिल में ही रह गई है तलब उस के दीद की
पर्दा-नशीं तो आज भी पर्दा-नशीं रहा
- तरुणा मिश्रा



दिल हुआ है मिरा ख़राब-ए-सुख़न
देख कर हुस्न-ए-बे-हिजाब-ए-सुख़न
- वली मोहम्मद वली



दिलकश लगा था मुझको वो पर्दे में बंद था
रुख से हिजाब उसने हटाया तो डर गया
- जतिंदर कुमार शर्मा



दिल-दादगान-ए-हुस्न से पर्दा न चाहिए
दिल ले के छुप गए तुम्हें ऐसा न चाहिए
- मुज़्तर ख़ैराबादी



दिला न क्यूँके करूँ इख़्तिलात की बातें
हिजाब क्या है अब उस बे-हिजाब के घर में
- शाह नसीर



दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं
सब अपने चेहरों पे दुहरी नकाब रखते हैं
- राहत इन्दोरी



दीं-दार कर के काफ़िर बना दे
ये पर्दा-दारी ये बे-हिजाबी
- हफ़ीज़ जालंधरी



दीदनी है ज़ख़्म-ए-दिल और आप से पर्दा भी क्या
इक ज़रा नज़दीक आ कर देखिए ऐसा भी क्या
- अख़्तर सईद ख़ान



दीदनी हैं दिल-ए-ख़राब के रंग
आह उस चश्म-ए-पुर-हिजाब के रंग
- हसरत मोहानी



दीदार से पहले ही क्या हाल हुआ दिल का
क्या होगा जो उल्टेंगे वो रुख़ से नक़ाब आख़िर
- वासिफ़ देहलवी



दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता था
ताले की ईजाद से पहले सिर्फ़ भरोसा होता था
- अज़हर फ़राग़



दुनिया ने मुँह पे डाला है पर्दा सराब का
होते हैं दौड़ दौड़ के तिश्ना-दहन ख़राब
- अहमद हुसैन माइल



दुपट्टे का पर्दा भी नहीं रक्खा आज
पाबंदी इक और उठा दी ज़ालिम ने
- फख़्र अब्बास



दुश्मनों ही से दुश्मनी भी मिली
और दर-पर्दा रहबरी भी मिली
- रशीद कौसर फ़ारूक़ी



दूर तक अपनी निगाहें हैं रसा
पर्दा हाइल गर न हो ईजाद का
- क़ुर्बान अली सालिक बेग



दूसरों से कब तलक हम प्यास का शिकवा करें
लाओ तेशा एक दरिया दूसरा पैदा करें
- नज़ीर बनारसी



दे के दस्तक शबाब आता है
बिन-बुलाए हिजाब आता है
- सरदार पंछी



दे मोहब्बत तो मोहब्बत में असर पैदा कर
जो इधर दिल में है या रब वो उधर पैदा कर
- बेख़ुद देहलवी



देख कर दर-पर्दा गर्म-ए-दामन-अफ़्शानी मुझे
कर गई वाबस्ता-ए-तन मेरी उर्यानी मुझे
- मिर्ज़ा ग़ालिब



हिजाब पर शायरी | नक़ाब पर शायरी | देख कर हम को न पर्दे में तू छुप जाया कर हम तो अपने हैं मियाँ ग़ैर से शरमाया कर
देख कर हम को न पर्दे में तू छुप जाया कर
हम तो अपने हैं मियाँ ग़ैर से शरमाया कर
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी



देख बे-साख़्ता अक्स घबरा गया
शीशे के सामने बे-हिजाब आदमी
- आतिफ़ ख़ान



देख सकते थे छू न सकते थे
काँच का पर्दा दरमियान भी था
- हरजीत सिंह



देखता मैं उसे क्यूँकर कि नक़ाब उठते ही
बन के दीवार खड़ी हो गई हैरत मेरी
- जलील मानिकपूरी



देखने को तरसती थीं आँखें जिसे
सामने वो मिरे बे-हिजाब आ गया
- बर्क़ी आज़मी



देखे बग़ैर हाल ये है इज़्तिराब का
क्या जाने क्या हो पर्दा जो उट्ठे नक़ाब का
- सफ़ी लखनवी



दोस्ती का पर्दा है बेगानगी
मुँह छुपाना हम से छोड़ा चाहिए
- मिर्ज़ा ग़ालिब



दोस्ती में तिरी दर-पर्दा हमारे दुश्मन
इस क़दर अपने पराए हैं कि जी जानता है
- दाग़ देहलवी



धुँद का आँखों पर होगा पर्दा इक दिन
हो जाएँगे हम सब बे-चेहरा इक दिन
- एजाज़ उबैद



धूप निकली हुई है चारों तरफ़
कौन ये बे-हिजाब हो गया है
- ख़ालिद सज्जाद



न अब हिजाब है बाक़ी न क़ैद-ए-रस्म-ए-हिजाब
ये किस मक़ाम पे अपने को पा रहा हूँ मैं
- ख़लिश रिफ़ाई



न आख़िर बचा पर्दा-ए-राज़-ए-दुश्मन
हुआ चाक मेरा गरेबान हो कर
- जलील मानिकपूरी



न आजकल यहां महफूज़ बेटी रहती है
जो तार तार किया वो हिज़ाब हूँ मैं तो
- बिंदु कुलश्रेष्ठ



न आता दौर ए ग़र्दिश तो ये अफ़साने कहाँ जाते
जो चेहरे थे नक़ाबों में वो पहचाने कहाँ जाते
- नज़र द्विवेदी



न ख़ुम-ओ-सुबू हुए चूर अभी न हिजाब-ए-पीर-ए-मुग़ाँ उठा
अभी मस्त बादा-परस्त हैं अभी लुत्फ़-ए-बादा कहाँ उठा
- जिगर बरेलवी



न गुल-ए-नग़्मा हूँ न पर्दा-ए-साज़
मैं हूँ अपनी शिकस्त की आवाज़
- मिर्ज़ा ग़ालिब



न जाने शौक़ को आदत है क्यूँ बहकने की
तिरा हिजाब तो बे-शक अदब सिखाता है
- आल-ए-अहमद सूरूर



न दिल चुराते हमारा न तुम ख़जिल होते
पए-हिजाब है नीची निगाह की तख़सीस
- मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम



न पर्दा खोलियो ऐ इश्क़ ग़म में तू मेरा
कहीं न सामने उन के हो ज़र्द रू मेरा
- ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़



न रुक सकेगी ज़िया-ए-आरिज़ जो सद्द-ए-रह हो नक़ाब-ए-आरिज़
वो होगी बे-पर्दा रख के पर्दा ग़ज़ब की चंचल है ताब-ए-आरिज़
- अहमद हुसैन माइल



न होगा कभी फ़ैसला कुफ़्र ओ दीं का
तुम्हें रुख़ से पर्दा हटाना पड़ेगा
- सैफ़ुद्दीन सैफ़



नक़ाब उठाओ तो हर शय को पाओगे सालिम
ये काएनात ब-तौर-ए-हिजाब टूटती है
- मशकूर हुसैन याद



नक़ाब उन ने रुख़ से उठाई तो लेकिन
हिजाबात कुछ दरमियाँ और भी हैं
- फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली



नक़ाब उनके थे कितने खूबसूरत
मगर चेहरे बहुत बदरंग देखे
- सिया सचदेव



नक़ाब कहती है मैं पर्दा-ए-क़यामत हूँ
अगर यक़ीन न हो देख लो उठा के मुझे
- जलील मानिकपूरी



नक़ाब-ए-ज़र्फ़-ए-तमाज़त को नोच सकता हूँ
मैं आफ़ताब का चेहरा खरोच सकता हूँ
- लकी फ़ारुक़ी



नक़ाब-ए-रुख़ उठाया जा रहा है
वो निकली धूप साया जा रहा है
- माहिर-उल क़ादरी



नक़ाब-ए-शब में छुप कर किस की याद आई समझते हैं
इशारे हम तिरे ऐ शम-ए-तन्हाई समझते हैं
- रविश सिद्दीक़ी



नक़ाबों की नुमाईश में, हमने देखा है ,
चौखटे में जड़ा, चेहरा तुम्हारा भी है
- गोविन्द वर्मा सिराज



नक़ाबों में, नक़ाबें ही फ़क़त थीं
नक़ाबों को उलटता जा रहा था
- नूर मोहम्मद नूर



नक़ाबों से बाहर, झलक दिखावौ, साहब
तआर्रुफ़ अपना भी, हमसे करावौ, साहब
- गोविन्द वर्मा सिराज



नज़र के सामने पर्दा है 'मश्कूर'
दिलों के दरमियाँ पर्दा नहीं है
- मश्कूर मुरादाबादी



नज़र नज़र से मिलाओ हिजाब क्या मा'नी
नियाज़-ए-इश्क़ से ये इज्तिनाब क्या मा'नी
- जोश मलसियानी



नज़र बहकी हिजाब उट्ठा हुई इक रौशनी पैदा
फिर उस के बा'द बचना क्या सँभलना सख़्त मुश्किल था
- शौकत थानवी



नज़र में इशारा रुख पर निकाब होता है
थोड़ा-थोड़ा तो हर कोई ख़राब होता है
- कलीम अंसारी



नज़रें जला के देख मनाज़िर की आग में
असरार-ए-काएनात से पर्दा न कर अभी
- साक़ी फ़ारुक़ी



नज़्ज़ारे ने भी काम किया वाँ नक़ाब का
मस्ती से हर निगह तिरे रुख़ पर बिखर गई
- मिर्ज़ा ग़ालिब



'नज़्र' की पर्दा-दारी समझो
अब नंगे हो जाएँ क्या
- नियाज़ नज़्र फ़ातमी



नफ़रतों को छुपा नका़बों में
मज़हबों पे उठे बवाल यहाँ
- प्रकाश पटवर्धन



नवा-ए-चंग ओ बरबत सुनने वालो
पस-ए-पर्दा बड़ा कोहराम भी है
- वामिक़ जौनपुरी



नवेद ऐ दिल कि रफ़्ता रफ़्ता गया है उस का हिजाब आधा
हज़ार मुश्किल से बारे रुख़ पर से उस ने उल्टा नक़ाब आधा
- एलेक्जेंड्रा हेड्डेरली आजाद



ना मुकम्मल है तेरा यूँ हिजाब में चलना भी
मुकमल हिज़ाब तो निगाहों का झुका देना
- सैफ़ी मौहम्मद आरिफ़ नागौरी



नाकाम ही ता-उम्र रहा तालिब-ए-दीदार
हर जल्वा तिरा बाद को पर्दा नज़र आया
- ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब



ना-फ़हमी अपनी पर्दा है दीदार के लिए
वर्ना कोई नक़ाब नहीं यार के लिए
- हैदर अली आतिश



नाम तेरा ख़ुदा-नुमा है हिजाब
दीदा-ए-दीद का बसर है तू
- यासीन अली ख़ाँ मरकज़



निकल के आसमाँ पे आ समुंदरों पे नाम लिख
तू चाँद है तो चादर-ए-हिजाब के लिए नहीं
- सहबा वहीद



निगाह-ए-पर्दा-कुशा का कमाल क्या कहना
जहाँ जहाँ वो छुपे उस ने जा के देख लिया
- अबु मोहम्मद वासिल बहराईची



निगाह-ए-शौक़ सर-ए-बज़्म बे-हिजाब न हो
वो बे-ख़बर ही सही इतने बे-ख़बर भी नहीं
- फैज़ अहमद फैज़



नूर-ए-हक़ बे-हिजाब इश्क़-अल्लाह
याद-ए-दिलबर शराब इश्क़-अल्लाह
- अलीमुल्लाह



नैन हैं ये शराब उफ़ तौबा
नीम-रुख़ पर हिजाब उफ़ तौबा
- अबू लेवीज़ा अली



पत्ता पत्ता अब निखरा है
दिल सा जो पर्दा-पोश आया
- मीना कुमारी नाज़



परतव से तिरे वजूद मेरा
आग़ोश में ले हिजाब कैसा
- अबुल हसनात हक़्क़ी



पर्दगी हम से क्यूँ रखा पर्दा
तेरे ही पर्दा-दार थे हम तो
- जौन एलिया



पर्दा आँखों से हटाने में बहुत देर लगी
हमें दुनिया नज़र आने में बहुत देर लगी
- यासमीन हमीद



पर्दा उट्ठे कि न उट्ठे मगर ऐ पर्दा-नशीं
आज हम रस्म-ए-तकल्लुफ़ को उठा देते हैं
- ज़हीर देहलवी



पर्दा उठते ही घर की ज़ीनत भी
कैसे कैसे मक़ाम तक पहुँची
- अब्दुस सत्तार दानिश



पर्दा उठते ही मेरी नज़रों से
काएनात-ए-यक़ीन डोली है
- इब्न-ए-मुफ़्ती



पर्दा उठा कर रुख़ को अयाँ उस शोख़ ने जिस हंगाम किया
हम तो रहे मशग़ूल उधर याँ इश्क़ ने दिल का काम किया
- नज़ीर अकबराबादी



पर्दा उठा के चश्म-ए-तग़ाफ़ुल-निगर से आप
दिल का जमाल देखिए दिल की नज़र से आप
- मुनीर भोपाली



पर्दा उठा के मेहर को रुख़ की झलक दिखा कि यूँ
बाग़ में जा के सर्व को क़द की लचक दिखा कि यूँ
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी



पर्दा उठा हिजाब उठा कोई बात कर
सोए हुए बदन को जगा शब बसर करें
- राशिदा माहीन मलिक



पर्दा उलट के उस ने जो चेहरा दिखा दिया
रंग-ए-रुख़-ए-बहार-ए-गुलिस्ताँ उड़ा दिया
- मिर्ज़ा रज़ा बर्क़



पर्दा कब तक रहेगा ऐ ज़ालिम
अख़्तर-ए-मुद्दई सियाह नहीं
- क़लक़ मेरठी



पर्दा किस अम्र का है अब इस बद-नसीब से
कहिए तो बात रात की कह दूँ रक़ीब से
- रियाज़ ख़ैराबादी



पर्दा जब भी हटाया खिड़की से
मेरे कमरे में आ गया सूरज
- ख़लील रामपुरी



पर्दा जो उठा दिया गया है
क्या था कि छुपा दिया गया है
- अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी



पर्दा जो रू-ए-यार से उट्ठा बराए-नाम
देखा भी हम ने उस को तो देखा बराए-नाम
- शब्बर जीलानी क़मरी



पर्दा डालो मिरी आँखों पे न ऐ शर्म-ओ-हिजाब
यार बे-पर्दा है मुझ को निगराँ होने दो
- इमदाद अली बहर



पर्दा तुम्हारे रुख़ से हटाना पड़ा मुझे
यूँ अपनी हसरतों को जगाना पड़ा मुझे
- फ़ैसल इम्तियाज़ ख़ान



पर्दा न सरक जाए कहीं ऐ दिल-ए-बेताब
वो पर्दा-नशीं और पुर-असरार न हो जाए
- अंजुम ख़याली



पर्दा निगाह का है तो कैसी ख़ुसूसियत
अपनी निगाह-ए-नाज़ से पर्दा न कीजिए
- तालिब बाग़पती



पर्दा पड़ा हुआ था ख़ुदी ने उठा दिया
अपनी ही मआरिफ़त ने तुम्हारा पता दिया
- शफ़ीक़ जौनपुरी



पर्दा भी जल्वा बन जाता
आँख तजल्ली-साज़ कहाँ है
- माहिर-उल क़ादरी



पर्दा मत मुँह से उठाना यकबार
मुझ में औसान नहीं रहने का
- जुरअत क़लंदर बख़्श



पर्दा रहा कि जल्वा-ए-वहदत-नुमा हुआ
ग़श ने ख़बर न दी मुझे कब सामना हुआ
- साक़िब लखनवी



पर्दा रुख़-ए-फ़ितरत से हटा कर नहीं देखा
मंज़र पे नज़र थी पस-ए-मंज़र नहीं देखा
- रम्ज़ अज़ीमाबादी



पर्दा वो उठाया तो पर्दा ही नज़र आया
जब कुछ न नज़र आया तो क्यूँ न ठहर जाते
- जमील मज़हरी



पर्दा हटा के जब वो हसीं मुस्कुराएगा
बिजली हमारे होश-ओ-ख़िरद पर गिराएगा
- सेवक नैयर



पर्दा हाइल जो था कहाँ है अब
तेरा जल्वा ही दरमियाँ है अब
- जमील मज़हरी



पर्दा है इक बक़ा का राज़-ए-फ़ना न पूछो
मर कर भी साथ हम से छूटा न ज़िंदगी का
- मख़्फ़ी लखनवी



पर्दा है तअ'य्युन का वही आँखों के आगे
बे-पर्दा नुमाइंदा-ए-इरफ़ान वही है
- वलीउल्लाह मुहिब



पर्दा हो तो पर्दा हो इस पर्दे को क्या कहिए
छुपते हैं निगाहों से रहते हैं निगाहों में
- शमीम करहानी



पर्दा-ए-आज़ुर्दगी में थी वो जान-ए-इल्तिफ़ात
जिस अदा को रंजिश-ए-बेजा समझ बैठे थे हम
- फ़िराक़ गोरखपुरी



पर्दा-ए-क़ल्ब में अनवार तुम्हारे देखे
गुफ़्तुगू किस ने सुनी किस ने इशारे देखे
- मुनीर भोपाली



पर्दा-ए-ग़म में दिखाया जल्वा-ए-कामिल मुझे
ले उड़ी यारब कहाँ मेरी फ़ज़ा-ए-दिल मुझे
- राज कुमारी सूरज कला सरवर



पर्दा-ए-ग़ैब में तश्हीर छुपी होती है
ख़्वाब की आँख में ता'बीर छुपी होती है
- मोहम्मद इफ़तिख़ारुल हक़ समाज



पर्दा-ए-गोश-ए-असीराँ न हुई इक शब-ए-गर्म
पाँव किस मुर्दे का या-रब मिरी ज़ंजीर में था
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी



पर्दा-ए-चश्म थे हिजाब बहुत
हुस्न को ख़ुद-नुमा किया तू ने
- अल्ताफ़ हुसैन हाली



पर्दा-ए-ज़ीस्त उठा रहा हूँ मैं
अब तो उठ पर्दा-ए-हरीम-ए-नाज़
- अब्र अहसनी गनौरी



पर्दा-ए-ज़ुल्मत-ए-शब में जो सहर देखते हैं
दीदा-वर हैं वो पस-ए-हद्द-ए-नज़र देखते हैं
- रहबर ताबानी दरियाबादी



पर्दा-ए-ज़ेहन से साया सा गुज़र जाता है
जैसे पल भर को मिरा दिल भी ठहर जाता है
- मुमताज़ मीरज़ा



पर्दा-ए-दर्द में आराम बटा करते हैं
उस की दरगाह में इनआ'म बटा करते हैं
- मुज़्तर ख़ैराबादी



पर्दा-ए-महमिल उठे तो राज़-ए-वीराना खुले
राज़-ए-वीराना खुले तब जा के दीवाना खुले
- अहमद फ़रीद



पर्दा-ए-माज़ी पे सूरत जो कोई उभरी है
ज़ेहन में घूम गए हैं मिरे अफ़्साने कई
- जयकृष्ण चौधरी हबीब



पर्दा-ए-रंग-ओ-बू तो उठाओ
होगा कोई न कोई ज़रूर
- शकील बदायुनी



पर्दा-ए-रुख़ क्या उठा हर-सू उजाले हो गए
सब अँधेरे दामन-ए-शब के हवाले हो गए
- शारिब मौरान्वी



पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए
हाए ज़ालिम तिरा अंदाज़-ए-करम क्या कहिए
- फ़िराक़ गोरखपुरी



पर्दा-ए-शब की ओट में ज़ोहरा-जमाल खो गए
दिल का कँवल बुझा तो शहर तीरा-ओ-तार हो गए
- शकेब जलाली



पर्दा-ए-शर्म में सद-बर्क़-ए-तबस्सुम के निसार
होश जाते रहे नैरंग-ए-हया से पहले
- फ़िराक़ गोरखपुरी



पर्दा-ए-शे'र में 'नदीम' अक्सर
हम सुनाते हैं माजरा दिल का
- मोहम्मद ख़ाँ साजिद



पर्दा-ए-सबा न ख़ौफ़-ए-सरसर
ख़ाकिस्तर-ए-यास पर खिला हूँ
- सादिक़ नसीम



पर्दा-ए-साज़ में भी सोज़ का हामिल होना
शम्अ' से सीख शरीक-ए-ग़म-ए-महफ़िल होना
- मोहम्मद सादिक़ ज़िया



पर्दा-ए-हिज्र वही हस्ती-ए-मौहूम थी 'यास'
सच है पहले नहीं मालूम था ये राज़ मुझे
- यगाना चंगेज़ी



पर्दा-ए-हुस्न-ए-ज़ात में अंजुमन-ए-सिफ़ात में
मेरे सिवा है और कौन सीना-ए-काएनात में
- आरज़ू सहारनपुरी



पर्दा-दर कोई न था और न दर-पर्दा कोई
ग़ैरत-ए-इश्क़ न थी आलम-ए-तन्हाई था
- साहिर देहल्वी



पर्दा-दार हस्ती थी ज़ात के समुंदर में
हुस्न ख़ूब खुल खेला इस सिफ़त के मंज़र में
- दत्तात्रिया कैफ़ी



पर्दा-दारी करती है दर-पर्दा लैला इश्क़ की
जज़्बा-ए-दिल क़ैस का है पर्दा-ए-महमिल नहीं
- महाराजा सर किशन परसाद शाद



पर्दा-दारी का इस लिए है गिला
रेहन अक़्ल-ए-बशर नहीं होती
- बिशन दयाल शाद देहलवी



पर्दा-दारी की सिपर साथ में रखना अय शोख़
बद-नज़र हिर्स की तलवार सँभाले हुए हैँ
- लकी फ़ारुक़ी



पर्दा-दारी से काम क्या लीजे
'शम्स' होना ही जब तमाशा है
- शम्स ख़ालिद



पर्दा-दारी-ए-नज़्म-ए-कुन की ख़ैर
आज मैं बे-हिजाब पीता हूँ
- शेरी भोपाली



पर्दा-दारों ने ख़ुद-कुशी कर ली
सहन झाँका गया किसी छत से
- नदीम भाभा



पर्दापोशी कोई करे कैसे
इस तरह से वो बे-नक़ाब हुआ
- नईम अख्तर



पर्दा-वर था ग़म-ए-पिन्हाँ मेरा
हो गया चाक गरेबाँ मेरा
- मोहम्मद यूसुफ़ अली ख़ाँ नाज़िम रामपुरी



पर्दे में काएनात के मौजूद हर जगह
इस पर ये एहतिमाम ये आलम हिजाब का
- ऐश मेरठी



पर्दे ही में चला जा ख़ुर्शीद तो है बेहतर
इक हश्र है जो घर से वो बे-हिजाब निकला
- मीर तक़ी मीर



पर्वर्दा-ए-करम से तो ज़ेबा नहीं हिजाब
मुझ ख़ाना-ज़ाद-ए-हुस्न से पर्दा न चाहिए
- बेदम शाह वारसी



पलक फ़साना शरारत हिजाब तीर दुआ
तमन्ना नींद इशारा ख़ुमार सख़्त थकी
- शहज़ाद क़ैस



पस-ए-पर्दा कोई न था फिर भी
एक पर्दा खिंचा रहा मुझ में
- जौन एलिया



पस-ए-पर्दा तुझे हर बज़्म में शामिल समझते हैं
कोई महफ़िल हो हम उस को तिरी महफ़िल समझते हैं
- ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब



पस-ए-पर्दा दिल का रफ़ीक़ था सर-ए-पर्दा मेरा रक़ीब था
मैं मियान-ए-रद्द-ओ-क़ुबूल था कि वो आ के पर्दा हटा गया
- अफ़ीफ़ सिराज



पस-ए-पर्दा बहुत बे-पर्दगी है
बहुत बेज़ार है किरदार अपना
- नईम रज़ा भट्टी



पस-ए-पर्दा भी लैला हाथ रख लेती है आँखों पर
ग़ुबार-ए-ना-तवान-ए-क़ैस जब महमिल से मिलता है
- दाग़ देहलवी



पस-ए-हिजाब रुख़-ए-माहनाज़ पढ़ न सके
हो आज इज़्न अगर बे-हिजाब पढ़ डालें
- जावेद जमील



पसे पर्दा एक रक़्क़ासा थी और पर्दा भी उठने ही वाला था
तहज़ीब के अलमबरदारों को नज़रों ने पशेमाँ कर ही दिया
- शारिक़ हयात



पहन के आए नक़ाब हो तुम
तो क्या सही में ख़राब हो तुम
- सिद्धनाथ सिंह



पा शिकस्ता रबाब है ख़ामोश
पर्दा-पर्दा हिजाब है ख़ामोश
- ज़िया फ़तेहाबादी



पाता हूँ इज़्तिराब रुख़-ए-पुर-हिजाब में
शायद छुपा है दिल मिरा उन की नक़ाब में
- इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल



पूछा जो मैं ने आप का पर्दा वो क्या हुआ
कहने लगीं कि अक़्ल पे मर्दों के पड़ गया
- अकबर इलाहाबादी



पोशीदा राज़-ए-इश्क़ चला जाए था सौ आज
बे-ताक़ती ने दिल की वो पर्दा उठा दिया
- मीर तक़ी मीर



'फ़रीद' अहल-ए-गुलिस्ताँ भी होश खो बैठे
कुछ इस अदा से हिजाब-ए-रुख़-ए-बहार उठा
- फ़रीद इशरती



फ़रेब-ए-जल्वा कहाँ तक ब-रू-ए-कार रहे
नक़ाब उठाओ कि कुछ दिन ज़रा बहार रहे
- अख़्तर अली अख़्तर



फ़र्क़ इतना है कि तू पर्दे में और मैं बे-हिजाब
वर्ना मैं अक्स-ए-मुकम्मल हूँ तिरी तस्वीर का
- असद भोपाली



फाड़ ही डालूँगा मैं इक दिन नक़ाब-ए-रू-ए-यार
फेंक दूँगा खोद कर गुलज़ार की दीवार को
- मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही



फ़ितरत में जिस की रोज़-ए-अज़ल से हिजाब है
वो हुस्न बे-हिजाब अगर हो तो क्या करें
- जमील उस्मान



फिर अपने-आप से उस को हिजाब आता है
थिरकती झील पे जब माहताब आता है
- नादिर सिद्दीक़ी



फिर किसी सुब्ह-ए-तरब का जादू
पर्दा-ए-शब से हुवैदा होगा
- नासिर काज़मी



फिर ये तग़ाफ़ुल-ए-सितम-ए-बे-हिजाब क्यों
फिर ये तजाहुल-ए-निगह-ए-आश्ना है क्या
- अब्दुल हादी वफ़ा



फिर हश्र के पर्दा में तक़दीर नज़र आई
आईना-ए-वहशत में तस्वीर नज़र आई
- अब्दुल हादी वफ़ा



फिरते हैं कैसे पर्दा-नशीनों से मुँह छुपाए
रुस्वा हुए कि अब ग़म-ए-पिन्हाँ नहीं रहा
- मोमिन ख़ाँ मोमिन



फिरा करते हो लैला की तरह दिन रात डोली में
यही पर्दा तुम्हारा पर्दा-ए-महमिल न बन जाए
- बूम मेरठी



फ़िल-हक़ीक़त कोई नहीं मरता
मौत हिकमत का एक पर्दा है
- शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम



फूल शबनम शफ़क़ चाँदनी कहकशाँ
पर्दा-ए-हुस्न से झाँकता कौन है
- अब्दुस्समद ’तपिश’



बंदा-पर्वर हिजाब लाज़िम है
हर नज़र पारसा नहीं होती
- पुरनम इलाहाबादी



बंदिशें दोनों तरफ़ पाबंदियाँ दोनों तरफ़
एक पाबंद-ए-मोहब्बत एक पाबंद-ए-हिजाब
- शारिब लखनवी



बंदे का पर्दा शान-ए-इलाही छुपी हुई
ख़ुद को तो छोड़ ख़ाक उड़ाया तो क्या हुआ
- यासीन अली ख़ाँ मरकज़



बच के झूटे से चाहिए रहना
पर्दा-ए-मक्र और दग़ा है झूट
- मसीहुल्लाह ख़ाँ अता



बजा-ए-ख़ुद मिरी हस्ती को कर दिया उर्यां
वो पर्दा-दार मिरा पर्दा-दार हो न सका
- मख़मूर जालंधरी



बज़्म-ए-ईजाद में बे-पर्दा कोई साज़ नहीं
है ये तेरी ही सदा ग़ैर की आवाज़ नहीं
- इस्माइल मेरठी



बदन नुमायां है और शोख़ है निक़ाब का रंग
बदल रहा है ज़माने में अब हिजाब का रंग
- एजाज़ उल हक़ शिहाब



बदलते ज़िंदगी के रंग देखे
गज़ब दुनिया के हमने ढंग देखे
- सिया सचदेव



बरहना ख़्वाब थे सूरज के नीचे
किसी उम्मीद का पर्दा नहीं था
- अमजद इस्लाम अमजद



बरु-ए-चश्म रिदा-ए-हिजाब तान ली जाए
वो ज़ेर-ए-साया-ए-गुल पैरहन बदलता है
- आलमताब तिश्ना



बर्क़-ए-जमाल-ए-यार ये जल्वा है या हिजाब
चश्म-ए-अदा-शनास को हैराँ बना दिया
- इक़बाल सुहैल



बलाएँ पर्दा-ए-सीमीं पे जल्वा-गर होंगी
नई कहानी की बुनियादें ख़ौफ़ पर होंगी
- असलम अंसारी



बस अब दुनिया से पर्दा चाहती हूँ
में सब से दूर रहना चाहती हूँ
- दीपाली अग्रवाल



बस इक नज़र में हज़ार बातें
फिर उस से आगे हिजाब इतने
- मुनीर नियाज़ी



बस एक पर्दा-ए-इग़माज़ था कफ़न उस का
लहूलुहान पड़ा था बरहना तन उस का
- ज़ेब ग़ौरी



बस तू ने अपने मुँह से जो पर्दा उठा दिया
हसरत निकल गई दिल-ए-उम्मीद-वार की
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी



ब-सद आरज़ू जो वो आया तो ये हिजाब-ए-इश्क़ से हाल था
कि हज़ारों दिल में थीं हसरतें और उठाना आँख मुहाल था
- जुरअत क़लंदर बख़्श



बहुत क़रीब से देखा तो खो गए जल्वे
नज़र ही पर्दा बनी हुस्न ही हिजाब बना
- हसन नईम



बहुत क़रीब हो तुम फिर भी मुझ से कितनी दूर
हिजाब-ए-जिस्म अभी है हिजाब-ए-रूह अभी
- अली सरदार जाफ़री



बहुत महीन था पर्दा लरज़ती आँखों का
मुझे दिखाया भी तू ने मुझे छुपाया भी
- आनिस मुईन



बहुत लिपटे रहे ये जिस्म-ओ-जाँ से बेल की मानिंद
हिजाब आने लगा है अब तो मुझ को इन हिजाबों से
- तलअत ज़हरा



बहुत है,अगर शर्म आँखों में है तो,
ये चिलम,ये घूँघट,नक़ाबों में क्या है
- पवन मुंतज़िर



बाक़ी है उम्मीद ज़रा सी
ऐ पर्दा-वर दीद ज़रा सी
- फैज़ुल अमीन फ़ैज़



बाज़ार से गुज़रे है वो बे-पर्दा कि उस को
हिन्दू का है ख़तरा न मुसलमान का डर है
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी



बात कर दिल सती हिजाब निकाल
ग़ुंचा-ए-लब सती गुलाब निकाल
- सिराज औरंगाबादी



बातें करता है जो पर्दा छोड़ कर
मुझ को देता है वो दर-पर्दा जवाब
- ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर



बातों में तू तड़ाक का बढ़ने लगा चलन
तहज़ीब का हिज़ाब भी बाकी कहाँ है अब
- प्रवीण फ़क़ीर



बाहम हुई यूँ तो दीद-वा-दीद
पर दिल का हिजाब कुछ न निकला
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी



बिठाई जाएँगी पर्दे में बीबियाँ कब तक
बने रहोगे तुम इस मुल्क में मियाँ कब तक
- अकबर इलाहाबादी



बिला-वास्ता हम से आँखें मिलाओ
रहे दरमियाँ क्यूँ हिजाब-ए-मोहब्बत
- शेरी भोपाली



बुझेगी अपने घर की आग कैसे
धुआँ पर्दा-कुशाई कर रहा है
- मसऊद भोपाली



बुतों से पर्दा उठाने की बहस है बेकार
खुली दलील है काबा भी बे-नक़ाब नहीं
- जलील मानिकपूरी



बुलबुला फूटे पे हो जाता है आब
जान ओ जानाँ में है ये हस्ती हिजाब
- इश्क़ औरंगाबादी



बेकार गई आड़ तिरे पर्दा-ए-दर की
अल्लाह-रे वुसअ'त मिरे आग़ोश-ए-नज़र की
- शकील बदायुनी



बेख़ुदी बेसबब नहीं ग़ालिब
कुछ तो है जिसकी परदादारी है
- मिर्ज़ा ग़ालिब



बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं 'ग़ालिब'
कुछ तो है जिस की पर्दा-दारी है
- मिर्ज़ा ग़ालिब



बेगानगी पर उस की ज़माने से एहतिराज़
दर-पर्दा उस अदा की शिकायत कहाँ कहाँ
- फ़िराक़ गोरखपुरी



बे-पर्दा आज निकलेगा पर्दा-नशीं मिरा
कर दे ये कोई महर-ए-मुनव्वर को इत्तिलाअ
- परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़



बे-पर्दा इस तरह कभी हासिल था लुत्फ़-ए-दीद
हस्ती का भी हिजाब मिरे दरमियाँ न था
- अफ़क़र मोहानी



बे-पर्दा उस का चेहरा-ए-पुर-नूर तो हुआ
कुछ देर शो'बदा सा सर-ए-तूर तो हुआ
- शाकिर कलकत्तवी



बे-पर्दा ग़ैर पास उसे बैठा न देखते
उठ जाते काश हम भी जहाँ से हया के साथ
- मोमिन ख़ाँ मोमिन



बे-पर्दा बे-तअय्युन ओ बे-नाम देख उसे
वो तो है सिर्फ़ नाम का पर्दा लिए हुए
- सीमाब अकबराबादी



बे-पर्दा मुँह दिखा के मिरे होश उड़ाओ तुम
पर्दे की आड़ से जो नज़ारे हुए तो क्या
- अहमद हुसैन माइल



बे-पर्दा वो कॉलेज में तो फिरती हैं बराबर
ओढ़ा मिरी महबूब ने बुर्क़ा मिरे आगे
- नज़र बर्नी



बे-पर्दा सू-ए-वादी-ए-मजनूँ गुज़र न कर
हर ज़र्रा के नक़ाब में दिल बे-क़रार है
- मिर्ज़ा ग़ालिब



बे-पर्दा हैं लैलाएँ
और मजनूँ महमिल में हैं
- ख़्वाजा जावेद अख़्तर



बे-पर्दा हो के जब वो लब-ए-बाम आ गया
आँखों पे मेरी दीद का इल्ज़ाम आ गया
- अमजद मिर्ज़ा



बे-मय-ओ-रंग है काशाना-ए-तहज़ीब-ए-जदीद
कुछ पस-ए-पर्दा नहीं पर्दा-ए-दर बाक़ी है
- नुशूर वाहिदी



बे-हिजाब आप के आने की ज़रूरत क्या थी
यूँ मिरे होश उड़ाने की ज़रूरत क्या थी
- जैमिनी सरशार



बे-हिजाबी के बावजूद भी कुछ
इस के रुख़ पर हिजाब जैसा था
- हफ़ीज़ बनारसी



बे-हिजाबी में क्या ग़ज़ब होगा
जब ये कुछ हैं हिजाब की बातें
- मिर्ज़ा मायल देहलवी



बैठा हूँ उस के सामने फिर भी है तिश्नगी
हाइल है दरमियान में पर्दा हिजाब का
- नसीम ज़ैदी त्रिशूल



बैरून-ए-दर हैं सूरत-ओ-मा'नी के पर्दा-दार
हैं पर्दा-ए-ख़िफ़ा में क़वानीन-ए-इख़तिलाफ़
- साहिर देहल्वी



भर गया क्यूँ तसन्नोआ'त से जी
पर्दा आँखों से उठ गया क्या है
- सय्यद हामिद



मग़रिब से आने वाली हवा ने उड़ा दिया,
खिलता था चेहरा ज़ुल्फ़ से बढ़कर हिजाब में
- इम्तियाज़ दानिश



मज़ाक़ छोड़ बता ये कि मुझ से क्या पर्दा
तिरे नुक़ूश हैं सारे मिरे तलाशे हुए
- आमिर अमीर



मन-ओ-तू का हिजाब उठने न दे ऐ जान-ए-यकताई
कहीं ऐसा न हो बन जाऊँ ख़ुद अपना तमन्नाई
- हफ़ीज़ होशियारपुरी



मय-कदे में क्या तकल्लुफ़ मय-कशी में क्या हिजाब
बज़्म-ए-साक़ी में अदब आदाब मत देखा करो
- अहमद फ़राज़



मय-कशों से हिजाब क्या मा'नी
सामने बे-नक़ाब आ साक़ी
- सेवक नैयर



मरने वाले फ़ना भी पर्दा है
उठ सके गर तो ये हिजाब उठा
- एहसान दानिश



मर्दुम-ए-चश्म से आए जो हिजाब
आँख के पर्दे में छुप जाइएगा
- ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर



मस्तूर सौ हिजाब में उस का है रुख़ मगर
हुस्न-ओ-जमाल शोहरा-ए-आफ़ाक़ है सो है
- मीर शम्सुद्दीन फ़ैज़



मस्लहत की ज़ुल्म ने पहनी नक़ाब
रुख़ से ये पर्दा हटाना चाहिए
- शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी



मस्लहत है कि तिरी चश्म को है दिल से हिजाब
रंज हो और जो बीमार से बीमार मिले
- मीर हसन



महरम नहीं है तू ही नवा-हा-ए-राज़ का
याँ वर्ना जो हिजाब है पर्दा है साज़ का।
- नरेश कुमार शाद



माना कि सब के सामने मिलने से है हिजाब
लेकिन वो ख़्वाब में भी न आएँ तो क्या करें
- अख़्तर शीरानी



माना सारे बाग़ हैं उनके, लेकिन हम भी रक्षक हैं
हमसे है जब पर्दादारी, गंगा तेरा क्या होगा ?
- सलीम अख़्तर



माबैन-ए-निगाह-ओ-जल्वा-ए-हुस्न
है एक हिजाब सा तमन्ना
- सीमाब अकबराबादी



मार 'मन'-नकाबपोश, खुद रिहा हुए कभी
बारहा उसी गली, फिसल के देख जिन्दगी
- सुशील यादव



मालूम नहीं हम से हिजाब उन को है कैसा
औरों से तो वो शर्म ओ हया कुछ नहीं करते
- बहादुर शाह ज़फ़र



माशूक़ा-ए-गुल नक़ाब में है
महजूबा अभी हिजाब में है
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी



माह-ए-नौ पर्दा-ए-सहाब में है
या कि अबरू कोई नक़ाब में है
- सख़ी लख़नवी



मिरा वजूद था उर्यां बदन के पैकर में
हिजाब के लिए तेरी क़बा सिलाई गई
- काशिफ़ शकील



मिरा हिजाब सुलगता है जिस की हिद्दत से
तुम उस नज़र से कहो ज़ाविया बदलने को
- ईमान क़ैसरानी



मिरी नज़र कि जिसे चाहे बे-नक़ाब करे
ख़ुदा वो दिन तो दिखाए जो तू हिजाब करे
- कँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर



मिरी निगाह के अंदाज़-ए-शौक़ जब देखे
हिजाब कर न सके वो हिजाब हो न सका
- बिस्मिल सईदी



मिरी लाख मिन्नतों पर तिरी इक हया है भारी
कोई पर्दा है वो पर्दा कि हिले-डुले हवा से
- आरज़ू लखनवी



मिरी हसरत भी इक पर्दा-नशीं ख़ातून है साहब
कहीं बे-पर्दा मेरी रात-की-रानी नहीं जाती
- सरदार पंछी



मिरी हस्ती हिजाब-ए-रो-ए-जानाँ क्यों हो ऐ 'अफ़्क़र'
मिरी हस्ती का पर्दा रू-ए-जानाँ हो नहीं सकता
- अफ़क़र मोहानी



मिरे आँसू तिरी बेदाद का पर्दा न खोलेंगे
अबस ये बद-गुमानी है मैं कब रोया कहाँ रोया
- वहशत रज़ा अली कलकत्वी



मिरे जनाज़े पे अब आते शर्म आती है
हलाल करने को बैठे थे जब हिजाब न था
- अमीर मीनाई



मिरे ज़र्फ़-ए-इश्क़ पे शक न कर मिरे हर्फ़-ए-शौक़ को भूल जा
जो यही हिजाब है दरमियाँ ये हिजाब उठा के भी देख ले
- आनंद नारायण मुल्ला



मिरे माह तुम तो हिजाब ही में रहे मगर
हमें ताब थी तब-ओ-ताब में तुझे देखते
- तारिक़ नईम



मिरे मिटाने की तदबीर थी हिजाब न था
वगरना कौन से दिन हुस्न बे-नक़ाब न था
- एहसान दानिश



मिरे लिए हैं मुसीबत ये आइना-ख़ाने
यहाँ ज़मीर मिरा बे-नक़ाब रहता है
- आलोक यादव



मिरे वजूद की तन्हाइयों के ज़ीने से
उतर रहा है सँभल कर कोई हिजाब के साथ
- मीर नक़ी अली ख़ान साक़िब



मिल गए पर हिजाब बाक़ी है
फ़िक्र-ए-नाज़-ओ-इताब बाक़ी है
- इंशा अल्लाह ख़ान इंशा



मिस्ल-ए-मूसा मुझे ग़श आए न हो तुम को हिजाब
वादा-ए-वस्ल जो ईफ़ा हो हया से पहले
- मीर कल्लू अर्श



मीठी मीठी तुम्हारी बातों के
पस-ए-पर्दा फ़ुतूर कितना है
- डॉक्टर आज़म



मुँह न दिखलावे न दिखला पर ब-अंदाज़-ए-इताब
खोल कर पर्दा ज़रा आँखें ही दिखला दे मुझे
- मिर्ज़ा ग़ालिब



मुँह पर नक़ाब-ए-ज़र्द हर इक ज़ुल्फ़ पर गुलाल
होली की शाम ही तो सहर है बसंत की
- लाला माधव राम जौहर



मुँह से पर्दा न उठे साहब-ए-मन याद रहे
फिर क़यामत ही अयाँ है ये सुख़न याद रहे
- नज़ीर अकबराबादी



मुंशियान-ए-शुहूद ने ता-हाल
ज़िक्र-ए-ग़ैब-ओ-हिजाब ही लिक्खा
- जौन एलिया



मुअम्मा बन गया राज़-ए-मोहब्बत 'आरज़ू' यूँही
वो मुझ से पूछते झिजके मुझे कहते हिजाब आया
- आरज़ू लखनवी



मुख़्तलिफ़ रंग हैं मिरे 'आबिद'
कभी जल्वा कभी हिजाब हूँ मैं
- आबिद मुनावरी



मुझ को ख़बर रही न रुख़-ए-बे-नक़ाब की
है ख़ुद नुमूद हुस्न में शान-ए-हिजाब की
- असग़र गोंडवी



मुझ को ये आरज़ू वो उठाएँ नक़ाब ख़ुद
उन को ये इंतिज़ार तक़ाज़ा करे कोई
- असरार-उल-हक़ मजाज़



मुझ पर ऐ महरम-ए-जाँ पर्दा-ए-असरार कूँ खोल
ख़्वाब-ए-ग़फ़लत सें उठा दीदा-ए-बेदार कूँ खोल
- सिराज औरंगाबादी



मुझ से छुपता ही रहा तू मुझे आँखें दे कर
मैं ही पर्दा था उठा मैं तो तमाशा निकला
- मुज़फ़्फ़र वारसी



मुझ से दर-पर्दा है तुझे उल्फ़त
मुझ को ये हौसला नहीं होता
- जमीला ख़ुदा बख़्श



मुझ से पर्दा ग़ैर से बे-पर्दगी
क्या निराली है अदा दिलदार की
- क़ाज़ी जलाल हरीपुरी



मुझ से बहुत क़रीब है तू फिर भी ऐ 'मुनीर'
पर्दा सा कोई मेरे तिरे दरमियाँ तो है
- मुनीर नियाज़ी



मुझसे है इश्क़ तो ऐसी भी पर्दादारी क्या
आप मिलते हो मुझे मैं जहां नहीं होता !
- ध्रुव गुप्त



मुझी को पर्दा-ए-हस्ती में दे रहा है फ़रेब
वो हुस्न जिस को किया जल्वा-आफ़रीं मैं ने
- अख़्तर अली अख़्तर



मुझे बताओ जगह वो जहाँ मिले मुझ को
जिगर का सोज़ नज़र का हिजाब दिल की कुशाद
- उरूज क़ादरी



मुझे हिजाब नहीं बोसा-ए-जुदाई से
मगर लबों के पियाले में प्यास भर के न जा
- साक़ी फ़ारुक़ी



मुद्दत से यही पर्दा यही पर्दा-दरी है
हो कोई तो पर्दे से नुमूदार न हो जाए
- सीमाब अकबराबादी



मुनफ़रिद हुस्न की दुश्वार है पर्दा-दारी
सौ हिजाबों में भी अंदाज़ नज़र आ जाए
- मसूद क़ुरैशी



मुबहम थे सब नुक़ूश नक़ाबों की धुँद में
चेहरा इक और भी पस-ए-चेहरा ज़रूर था
- अकबर हैदराबादी



मुस्कुरा कर डाल दी रुख़ पर नक़ाब
मिल गया जो कुछ कि मिलना था जवाब
- मुईन अहसन जज़्बी



मुस्कुराहट जवाब में रखना
आँसुओं को नकाब में रखना
- राहत इन्दोरी



मुहताज-ए-कफ़न नहीं है बुलबुल
पर्दा काफ़ी है बाल-ओ-पर का
- नसीम देहलवी



में चाहता हूँ तअल्लुक़ के दरमियाँ पर्दा
वो चाहता है मिरे हाल पर नज़र करना
- लईक़ आजिज़



मेरा दुश्मन 'कँवल' पस-ए-पर्दा
जो भी करना था कर गया होगा
- जी आर कँवल



मेरी आँखें भी झुक गईं आख़िर
उस के रुख़ पर हिजाब आया है
- ग़ाज़ी मोईन



मेरी आँखें है मुन्तज़िर अब भी
कब वो चेहरा नक़ाब से निकले
- डॉ.समीर कबीर



मेरी आँखों पे है मगर एहसाँ
उन को पर्दा कभी उठाना था
- मक़्सूद आलम ख़ाँ आलम बरेलवी



मेरी मजबूरियों पे उन की नज़र
हाथ दर-पर्दा मल ही जाती है
- अदीब मालेगांवी



मेरे और यार के पर्दा तो नहीं कुछ लेकिन
बे-ख़ुदी बीच में दीवार हुआ चाहती है
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी



मेरे क़दमों पे सर है दुनिया का
किस का पर्दा हिजाब-ए-हस्ती है
- शिफ़ा ग्वालियारी



मेरे दर्द-ए-दिल से गोया आश्ना हैं चोब-ओ-तार
अपने नाले सुन रहा हूँ पर्दा-हा-ए-साज़ से
- ग़ुलाम भीक नैरंग



मेरे नालों की परवरिश करने
तुम जो आओ हिजाब धुल जाएँ
- सय्यद सद्दाम गीलानी मुराद



मैं अपने फ़े'ल-ओ-अमल पर खरी रही 'मीना'
अमल कसौटी पे हम बे-हिजाब रखते हैं
- ज़किया शैख़ मीना



मैं उन के पर्दा-ए-बेजा से मर गया 'मुज़्तर'
उन्हों ने मार ही डाला हिजाब कर के मुझे
- मुज़्तर ख़ैराबादी



मैं किसी जन्म की यादों पे पड़ा पर्दा हूँ
कोई इक लम्हे को इक दम से उठाता है मुझे
- अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा



मैं जानता हूँ जो है फ़र्क़-ए-ज़ात-ओ-परतव-ए-ज़ात
मिरी निगाह पस-ए-पर्दा-ए-ज़माना है
- कैफ़ मुरादाबादी



मैं जो चाहूँ कर दूँ सबको बे-नक़ाब
मेरी ख़ामोशी शराफ़त है मेरी
- डॉ.संदीप गुप्ते



मैं तेरी आँख में रह कर हिजाब हो जाऊँ
तू हर्फ़ हर्फ़ पढ़े वो किताब हो जाऊँ
- ताहिर हनफ़ी



मैं तो हिजाब में भी तुझे देखता रहा
पर्दा उठा के क्यूँ मिरी मिट्टी ख़राब की
- सर फ्लोरेंस फेलिज़ मतलूब



मैं नसीम-ए-सुब्ह हूँ मुझे से हिजाब
ऐ उरूस-ए-लाला ऐसा चाहिए
- ताज पयामी



मैं ने किया सलाम तो चिलमन में छुप गए
दर-पर्दा देगी अब निगह-ए-पर्दा-दर जवाब
- अहमद हुसैन माइल



मैं ने तुझे तू ने मुझ को देखा
अब मुझ से तुझे हिजाब क्या है
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी



मैं ने तो किया पर्दा-ए-असरार को भी चाक
देरीना है तेरा मरज़-ए-कोर-निगाही
- अल्लामा इक़बाल



मैं ने दरिया से सीखी है पानी की ये पर्दा-दारी
ऊपर ऊपर हँसते रहना गहराई में रो लेना
- बशीर बद्र



मैं हिजाब-ए-गुमाँ तू हिजाब-ए-यक़ीं
लिख मिरी रूह पर इज़्तिराब-ए-यक़ीं
- नसीर प्रवाज़



मोहब्बत ख़ुद ही अपनी पर्दा-दार-ए-राज़ होती है
जो दिल पर चोट लगती है वो बे-आवाज़ होती है
- विशनू कुमार शौक़



मौत आ कर जिसे उठाएगी
ज़िंदगी वो हिजाब-ए-हस्ती है
- शंकर लाल शंकर



मौत क्या है बस एक पर्दा है
आदमी कुछ फ़ना नहीं होता
- जमील अहमद राज़



मौत ने पर्दा करते करते पर्दा छोड़ दिया
मेरे अंदर आज किसी ने जीना छोड़ दिया
- साक़ी फ़ारुक़ी



यही आलम रहा पर्दा-नशीनी का तो ज़ाहिर है
ख़ुदाई आप से होगी न हम से बंदगी होगी
- सीमाब अकबराबादी



या किसी पर्दे में गुम हो जाओ
या उठा कर कोई पर्दा देखो
- बाक़ी सिद्दीक़ी



या तजल्ली तूर की है ख़ुद हिजाब-अंदर-हिजाब
या नहीं ज़ौक़-ए-नज़र अपना कलीमाना अभी
- ग्यान चन्द मंसूर



या दूर मिरा हिजाब कर दे
या अपने को बे-नक़ाब कर दे
- मुबारक अज़ीमाबादी



या मेरे ज़ख़्म-ए-रश्क को रुस्वा न कीजिए
या पर्दा-ए-तबस्सुम-ए-पिन्हाँ उठाइए
- मिर्ज़ा ग़ालिब



या हमीं को न मिला उस की हक़ीक़त का सुराग़
या सरा पर्दा-ए-आलम में कोई था भी नहीं
- असलम अंसारी



याद ने आ कर यकायक पर्दा खींचा दूर तक
मैं भरी महफ़िल में बैठा था कि तन्हा हो गया
- सलीम अहमद



यार को बे-हिजाब देखा हूँ
मैं समझता हूँ ख़्वाब देखा हूँ
- सिराज औरंगाबादी



यार जब पर्दा-नशीं है तो कहाँ का पर्दा
पर्दा ये है कि उसे पर्दे से बाहर देखा
- अब्दुल हादी वफ़ा



यारब उस बुत को शोख़ियाँ आतीं
दूर उस से हिजाब हो जाता
- फ़ज़ल हुसैन साबिर



यारा… इतना भी ना बना करो मासूम हर बार
नकाब उतर गया तो खुद को पहचानोगे कैसे?
- योगिता पाटील



यूँ लगे जैसे पर्दा-ए-सीमीं
आँख क्या रूह का दरीचा है
- अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद



ये अच्छी पर्दा-दारी है ये अच्छी राज़दारी है
कि जो आए तुम्हारी बज़्म में दीवाना हो जाए
- बेदम शाह वारसी



ये आँख पर्दा है इक गर्दिश-ए-तहय्युर का
ये दिल नहीं है बगूला उछल रहा है मियाँ
- नसीर तुराबी



ये आह-ए-पर्दा-दर ऐसी हुई अदू मेरी
हबाब हो गई आख़िर को आबरू मेरी
- साक़िब लखनवी



ये कह के रख़्ना डालिए उन के हिजाब में
अच्छे बुरे का हाल खुलेगा नक़ाब में
- मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा



ये कह के रख़्ने डालिए उन के हिजाब में
अच्छे बुरे का हाल खुले क्या नक़ाब में
- मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा



ये काएनात है कि किसी ने ब-सद हिजाब
इक ख़ास जल्वा आम किया और गुज़र गया
- कैफ़ मुरादाबादी



ये कौन सा रिवाज़ है,
हिजाब भी अज़ाब है?
- अस्मा सुबहानी



ये क्या कि अपनी भी पहचान हो गई मुश्किल
बिल-आख़िर अपनी निगाहों से भी हिजाब हुआ
- ऋषि पटियालवी



ये क्या कि पर्दा-ए-अल्फ़ाज़ में छुपाए मुझे
हर एक शे'र मिरा सामने भी लाए मुझे
- शरीफ़ मुनव्वर



ये घूँघट क्या बुर्क़ा क्या रिदा क्या
उठा जब आँख का पर्दा रहा क्या
- हाशिम अज़ीमाबादी



ये जो पर्दा है किसी रोज़ उठाया जाए
कौन हूँ मैं ये ज़माने को बताया जाए
- जावेद अख़्तर बेदी



ये था हिजाब-ए-फ़रेब उस का या फ़रेब-ए-हिजाब
कि बे-हिजाब था वो और बे-हिजाब न था
- शिफ़ा ग्वालियारी



ये दिल अहम है चलो ये माना मगर सुनो ये अना भी कुछ है
तो ये भी उस से 'हिजाब' कहना कभी न ख़ुद बे-क़रार लिक्खे
- हिजाब अब्बासी



ये दिलबरी के तक़ाज़ों के भी मुनाफ़ी है
कि यार सामने हो और बे-हिजाब न हो
- मुहिउद्दीन गुल्फ़ाम



ये नई एहतियात देखी है
आइने से हिजाब करते हो
- अब्दुल हमीद अदम



ये पर्दा हसीनों को लाज़िम न था
छुपाती हैं ये अच्छी सूरत अबस
- हफ़ीज़ जौनपुरी



ये पर्दा ही था पर्दापोश-ए-नज़र
हिजाब उठ गया ख़ुद-नुमा हो गया
- पंडित जवाहर नाथ साक़ी



ये शर्मगीं निगह ये तबस्सुम नक़ाब में
क्या बे-हिजाबियाँ हैं तुम्हारे हिजाब में
- जोज़फ़ डिसिल्वा



ये हिजाब-ए-जिस्म-ए-ख़ाकी कि है दीद का मुनाफ़ी
कभी दरमियाँ से उठता तो विसाल-ए-यार होता
- मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी



ये हुस्न की नहीं जादूगरी तो फिर क्या है
कि तेरी आँख में शोख़ी भी है हिजाब भी है
- जलील मानिकपूरी



ये हूरयान-ए-फ़रंगी दिल ओ नज़र का हिजाब
बहिश्त-ए-मग़रबियाँ जल्वा-हा-ए-पा-ब-रिकाब
- अल्लामा इक़बाल



रंज राहत में बदल जाएगा
ख़ैर दर-पर्दा-ए-शर भी होगी
- मुसतफ़ा राही



रंजिशें भुला देना फ़ासले मिटा देना
इक महीन सा पर्दा फिर भी दरमियाँ रखना
- शफ़ीक़ सलीमी



रखते नहीं पर्दा ग़ैर से तुम
झूटी क़स्में न खाओ साहिब
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी



रफ़ीक़-ओ-यार कहाँ ऐ हिजाब-ए-तन्हाई
बस अपने चेहरे को तकता हूँ आईना रख के
- महमूद अयाज़



रस्म काविश तो नहीं थी जो मिटा दी तू ने
हाथ पर्दा तो नहीं था जो उठा बैठा है
- मुज़्तर ख़ैराबादी



रस्में इस अंधेर-नगर की नई नहीं ये पुरानी हैं
मेहर पे डालो रात का पर्दा माह को रौशन रहने दो
- आरज़ू लखनवी



रहज़नी में पर्दा-दारी शर्त है
ऐसा कीजे रहनुमा हो जाइए
- मोहम्मद अब्दुल कबीर हनफ़ी



रहता हो जो गुस्से को नाक पे लिए सदा,
न हो नाझुकी चेहरे पे तो हिजाब क्या करे
- निशित जोशी



रहा न पर्दा सलामत जमाल-ए-पर्दा-नशीं
गुलों ने खींच ली तस्वीर हू-ब-हू तेरी
- रम्ज़ अज़ीमाबादी



रही है पर्दा-ए-उलफ़त में मस्लहत क्या क्या
अदावतों में हुई है मुफ़ाहमत क्या क्या
- ख़ुर्शीद रिज़वी



राज़-ए-उल्फ़त न छुपाएगा ये छुपना तेरा
पर्दा-दर ख़ुद यही इक दिन तिरा पर्दा होगा
- मोहम्मद लुतफ़ुद्दीन ख़ान लुत्फ़



राज़-ए-दर-पर्दा का पर्दा ख़ुद-बख़ुद उठ जाएगा
बस फ़क़त उन से नज़र दो-चार हो जाने को है
- अब्दुल करीम मजरूह सिद्दीक़ी



राज़-ए-दरून-ए-पर्दा ज़े-रिंदान-ए-मस्त पुर्स
सालिक है क्यूँ हिजाब-ए-शुहूद-ओ-वजूद में
- पंडित जवाहर नाथ साक़ी



रात को ढ़क ले अपने आँचल से
चाँद को बे-नक़ाब रहने दे
- सचिन मेहरोत्रा



रात बे-पर्दा सी लगती है मुझे
ख़ौफ़ ने ऐसी नज़र दी है मुझे
- शारिक़ कैफ़ी



रात भर ख़्वाब लाजवाब आये,
ख़ाब में आप बे ह़िजाब आये
- पवन मुंतज़िर



रात-भर हम न सो सके 'नासिर'
पर्दा-ए-ख़ामुशी में क्या कुछ था
- नासिर काज़मी



राहे हयात लोग मिले लाजवाब से
झोंके खुली हवा के तो कुछ थे नक़ाब से
- मंजू सक्सेना



रुख़ पे अपने नक़ाब रहने दे
दरमियाँ इक हिजाब रहने दे
- इब्राहीम ख़लील



रुख़ पे हया का रंग-ए-शहाबी नक़ाब सा
इज़हार के लबों पे लरज़ता हिजाब सा
- सज्जाद सय्यद



रुख़ से नक़ाब उसने हटाया था और मैं
उस हुस्न-ए-ला-ज़वाल का शैदाई हो गया
- जावेद अहमद सिद्दीकी



रुख़ से पर्दा उठा दे ज़रा साक़िया बस अभी रंग-ए-महफ़िल बदल जाएगा
है जो बेहोश वो होश में आएगा गिरने वाला है जो वो सँभल जाएगा
- अनवर मिर्ज़ापुरी



रुख़ से पर्दा जो उठा रक्खा है तौबा तौबा
तू ने हंगामा मचा रक्खा है तौबा तौबा
- मोनिस फ़राज़



रुख़-ए-आरज़ू पर हिजाब-ए-मोहब्बत
खिला और इस से शबाब-ए-मोहब्बत
- वफ़ा बराही



रुख़-ए-बे-पर्दा उन का याद आता है शब-ए-हिज्राँ
हिजाब-ए-अब्र जब रू-ए-मह-ए-कामिल से उठता है
- शेर सिंह नाज़ देहलवी



रुख़-ए-रौशन से यूँ उट्ठी नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
कि जैसे हो तुलू-ए-आफ़्ताब आहिस्ता आहिस्ता
- वहशत रज़ा अली कलकत्वी



रूपोश हो गए सभी चेहरे नक़ाब में
अब आईने की कोई ज़रूरत नहीं रही
- अभिषेक सिंह



'रूह' क़ालिब का बंद तोडकरहि जाएगी
कबतलक तू इसे हिजाब में छुपाएगा ?
- रूह (क्रांति) क्रांति साडेकर



रोक अपना हाथ रोक अब ऐ जुनून-ए-जामा-दर
हुस्न-ए-पर्दा-दार की पर्दा-दरी होने लगी
- नज़ीर बनारसी



रोकना ऐ माद्दियत के हिजाब
ख़ुद-बख़ुद इफ़्शा हुआ जाता हूँ मैं
- मोहम्मद सादिक़ ज़िया



रोका था मुझ को मेरी ख़ुदी के हिजाब ने
देखा तो उन के दर पे कोई पासबाँ न था
- शाकिर नायती



रोने के बदले हाल पर अपने हँसा किए
पर्दा हुआ न फ़ाश हमारे मलाल का
- हैदर अली आतिश



रोब-ए-हुस्न आदाब-ए-इश्क़ उन की हया का एहतिराम
उठ गई चिलमन तो अब पर्दा ही पर्दा रह गया
- शफ़ीक़ जौनपुरी



रौशनी का पर्दा है दरमियाँ तिरे मेरे और प्यार जारी है
प्यार में मोहब्बत में हम न ख़ुद को बदलेंगे ऐसी अपनी यारी है
- जावेद अख़्तर बेदी



रौशनी से किस तरह पर्दा करेंगे
आख़िर-ए-शब सोचते हैं क्या करेंगे
- फ़र्रुख़ जाफ़री



लग गई आग आतिश-ए-रुख़ से नक़ाब-ए-यार में
देख लो जलता है कोना चादर-ए-महताब का
- मुनीर शिकोहाबादी



लताफ़त इश्क़ की है मान-ए-नज़्ज़ारा-ए-सूरत
मोहब्बत ख़ुद हिजाब-ए-दरमियाँ मालूम होती है
- कँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर



लफ़्ज़ ख़ामोशियों का पर्दा हैं
बोलता है वो बोलता भी नहीं
- फ़ारूक़ बख़्शी



लबरेज़-ए-हक़ीक़त गो अफ़साना-ए-मूसा है
ऐ हुस्न-ए-हिजाब-आरा किस ने तुझे देखा है
- वहशत रज़ा अली कलकत्वी



लर्ज़िश-ए-पर्दा-ए-इज़हार का मतलब क्या है
है ये दीवार तो दीवार का मतलब क्या है
- ज़फ़र इक़बाल



लाख चाहा मैं ने पर्दा सामने आया नहीं
मेरी आँखों ने उसे ढूँडा मगर पाया नहीं
- रशीद उस्मानी



लाख पर्दा किया मगर न छुपी
आह मजनून-ए-दिल-कबाब की बात
- हकीम आग़ा जान ऐश



लाख पर्दे से रुख़-ए-अनवर अयाँ हो जाएगा
पर्दा खुल जाएगा हर पर्दा कताँ हो जाएगा
- मिर्ज़ा रज़ा बर्क़



लाख रोका तुम्हारे आँचल ने
हम ने देखा हिजाब आँखों से
- साबिर दत्त



लाखों हिजाब हुस्न को घेरे रहें मगर
ठहरे हैं कब निगाह-ए-मोहब्बत के सामने
- इरम लखनवी



लिखा जो पैरो की जंजीर का सच
बेनक़ाब हुआ वो तहरीर का सच
- ऋषिकेश देवेंद्र खाकसे



वजूद-ए-ख़ाक ही तो ख़ाक की अमानत है
तुम्हारा ख़ौफ़ रहेगा मिरा हिजाब वजूद
- मंज़र नक़वी



वफ़ा के राज़ से पर्दा नहीं उठाऊँगी
मैं दिल के ज़ख़्म तह-ए-दिल से ही छुपाऊँगी
- सबीला इनाम सिद्दीक़ी



वर्ना पर्दा उठा दें दुनिया का
सिर्फ़ अपनी हया से डरते हैं
- सय्यदा फ़ातिमा रिज़वी



वस्ल की शब न कर इतना भी हिजाब ऐ ज़ालिम
शोख़ियाँ तंग हैं तेरी तिरे शरमाने से
- वसीम ख़ैराबादी



वस्ल की शब रहेगी बरसों याद
और उस बे-हिजाब का आलम
- बूम मेरठी



वस्ल में बेकार है मुँह पर नक़ाब
शरम का आँखों पे पर्दा चाहिए
- शाद लखनवी



वहदत-ए-सर्फ़ आई कसरत में
पर्दा उस पर पड़ा हुआ देखा
- मोहम्मद इब्राहीम आजिज़



वहशत है इश्क़-ए-पर्दा-नशीं में दम-ए-बुका
मुँह ढाँकते हैं पर्दा-ए-चश्म-ए-परी से हम
- मोमिन ख़ाँ मोमिन



वहशतें भी नज़र आती हैं सर-ए-पर्दा-ए-नाज़
दामनों में है ये आलम न गरेबानों में
- फ़िराक़ गोरखपुरी



वहाँ भेजा गया हूँ चाक करने पर्दा-ए-शब को
जहाँ हर सुब्ह के दामन पे अक्स-ए-शाम है साक़ी
- साहिर लुधियानवी



वही लिखो जो लहू की ज़बाँ से मिलता है
सुख़न को पर्दा-ए-अल्फ़ाज़ में छुपाओ मत
- उबैदुल्लाह अलीम



वाँ बराबर है ख़ल्वत-ओ-जल्वत
उस की बे-पर्दगी हिजाब भी है
- इस्माइल मेरठी



वाँ है ये बद-गुमानी जावे हिजाब क्यूँकर
दो दिन के वास्ते हो कोई ख़राब क्यूँकर
- जुरअत क़लंदर बख़्श



वाए बे-ताक़ती ओ बे-सब्री
पर्दा जब दरमियाँ से उठता है
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी



विसाल-ओ-हिज्र की सरहद पे झुटपुटे में कहीं
वो बे-हिजाब हुआ था मगर हिजाब के साथ
- रहमान फ़ारिस



वैसे ज़ाहिर का लुत्फ़ है छुपना
कम तमाशा नहीं ये पर्दा कुछ
- मीर तक़ी मीर



वो अगर बे-हिजाब हो जाता
ख़ल्क़ में इंक़लाब हो जाता
- अब्दुल अलीम आसि



वो अजब चीज़ है उस का कोई चेहरा ही नहीं
एक पर्दा जो उठे दूसरा पर्दा देखूँ
- बिमल कृष्ण अश्क



वो आलम था तअय्युन का वहाँ पर्दा ही पर्दा था
ये आलम है तयक़्क़ुन का यहाँ जल्वा ही जल्वा है
- जमील मज़हरी



वो उन का हिजाब और नज़ाकत के नज़ारे
आए वो शब-ए-वादा तसव्वुर के सहारे
- असर रामपुरी



वो एक राज़! जो मुद्दत से राज़ था ही नहीं
उस एक राज़ से पर्दा उठा दिया गया है
- अज़ीज़ नबील



वो और मिरे घर में चले आएँ ख़ुद-बख़ुद
सर पर मिरे हिजाब मगर आसमाँ नहीं
- मुन्नी बाई हिजाब



वो कभी धूप है कभी साया
आँख मेरी हिजाब उस का है
- अबरार मुजीब



वो करते हैं मेरी पुर्सिश निगाहें यूँ झुका कर क्यूँ
यक़ीनन कुछ तो है पिन्हाँ कि जिसकी पर्दादारी है
- डॉ. मनोज कुमार



वो चाहता है मुझे टूट कर समझती हूँ
मगर वो क्यों मिरा मुझ से हिजाब माँगता है
- सादिया सेठी



वो चेहरा तो आईना-नुमा है
मैं जिस को हिजाब लिख रहा हूँ
- हसन आबिदी



वो चौकीदार कहाँ है, कहाँ मरा पड़ा है?
नकाबपोशों के चेहरे दिखाओ, और पूछो?
- ओम प्रकाश



वो छुपना तिरा पर्दा-ए-रंग-ओ-बू में
वो हर रंग में मेरा पहचान जाना
- मख़्फ़ी लखनवी



वो जब आप से अपना पर्दा करें
तो बंद-ए-क़बा किस तरह वा करें
- सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम



वो जिनके हाथ में लाठी है आज, देखियेगा कल
उन्हें भी देना होगा हर जबाब आहिस्ता-आहिस्ता
- सचिन मेहरोत्रा



वो जिसने दिल की नज़र से देखा, कहाँ का पर्दा हिजाब कैसा
कहाँ नहीं है जमाल उसका, कहाँ वो जलवा नुमा नहीं है
- हसन फ़तेहपुरी



वो दिन जो नीली किताबों में बंद है उस को
अभी तो मेरे लिए बे-हिजाब होना है
- ग़यास मतीन



वो पर्दा ज़ीनत-ए-दर के सिवा कुछ और नहीं
हमारे हुस्न-ए-नज़र के सिवा कुछ और नहीं
- सैफ़ बिजनोरी



वो पर्दा-नशीनी की रिआयत है तुम्हारी
हम बात भी ख़ल्वत से निकलने नहीं देते
- ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़



वो पर्दे से निकल कर सामने जब बे-हिजाब आया
जहान-ए-इश्क़ में यक-बारगी इक इंक़लाब आया
- अनवर सहारनपुरी



वो बे-पर्दा भी पर्दा-पोश-ए-नज़र है
हिजाब आ गया है हमें हुस्न-ए-ज़न का
- पंडित जवाहर नाथ साक़ी



वो बे-हिजाब मिरी याद से हिजाब करे
अजीब क्या है कि अब तक ख़याल में न मिला
- साक़ी फ़ारुक़ी



वो मेरे सामने ख़ंजर-ब-कफ़ खड़ा था 'ज़ेब'
मैं देखता रहा उस को कि बे-नक़ाब था वो
- ज़ेब ग़ौरी



वो शरर हो या कि चराग़ हो है तपिश मिज़ाज में ऐ 'हिजाब'
कभी हर नफ़स को जला दिया कभी रौशनी को बढ़ा दिया
- सलमा हिजाब



वो सामने मिरे बे-पर्दा आ गए लेकिन
मज़ा तो जब है कि फिर से हिजाब हो जाए
- बाबू सि द्दीक़ निज़ामी



वो सामने है और नज़र से छुपा दिया
ऐ इश्क़-ए-बे-हिजाब मुझे क्या दिखा दिया
- फ़िराक़ गोरखपुरी



वो हैं बे-पर्दा सामने लेकिन
पर्दा-ए-शौक़-ए-दीद हाइल है
- माहिर क़ुरैशी बरेलवी



शक़ हो गया है सीना ख़ुशा लज़्ज़त-ए-फ़राग़
तकलीफ़-ए-पर्दा-दारी-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर गई
- मिर्ज़ा ग़ालिब



शगुफ़्तन-ए-जमाल को हिजाब-ए-लम्स चाहिए
फ़सील-ए-शब की ओट में चराग़ ये जला रहे
- मज़हर इमाम



शनाख़्त हो सकी न फिर भी ये मिरा क़ुसूर था
हमारे दरमियाँ था जो हिजाब कोई ले गया
- अज़ीज़ तमन्नाई



शब वस्ल की तमाम हुई बात भी न की
ऐसा भी क्या हिजाब है ऐसा भी क्या लिहाज़
- शाह अकबर दानापुरी



शब-ए-फ़िराक़ की ज़ुल्मत है ना-गवार मुझे
नक़ाब उठा कि सहर का है इंतिज़ार मुझे
- अनवर साबरी



शब-ए-विसाल जो गुज़री कि तेरे चेहरे पर
सबा का लम्स है रंग-ए-हिजाब है क्या है
- नईम सबा



शबिस्तान-ए-इशरत में जो पर्दा-गर हैं
वही होंगे फिर पर्दा-दर देख लेना
- क़ाज़ी गुलाम मोहम्मद



शम्अ' जैसे कँवल में हो रौशन
आप का ये हिजाब क्या कहना
- रौशन बनारसी



शरम इक अदा-ए-नाज़ है अपने ही से सही
हैं कितने बे-हिजाब कि यूँ हैं हिजाब में
- मिर्ज़ा ग़ालिब



शराब पी जान तन में आई अलम से था दिल कबाब कैसा
गले से लग जाओ आओ साहब कहाँ का पर्दा हिजाब कैसा
- हबीब मूसवी



शर्म इक अदा-ए-नाज़ है अपने ही से सही
हैं कितने बे-हिजाब कि हैं यूँ हिजाब में
- मिर्ज़ा ग़ालिब



शर्म से हैं वो लाख पर्दे में
गो मिरे पास आए बैठे हैं
- मीर मेहदी मजरूह



शर्म है एहतिराज़ है क्या है
पर्दा सा दरमियान है प्यारे
- हफ़ीज़ जालंधरी



शर्म-ए-रुस्वाई से जा छुपना नक़ाब-ए-ख़ाक में
ख़त्म है उल्फ़त की तुझ पर पर्दा-दारी हाए हाए
- मिर्ज़ा ग़ालिब



शर्मोहया की बात तुम्हारे लबो प क्यों
तुम तो सदा ख़िलाफ़ रहे हो हिजाब के
- अमजद आतिश



शह-ए-बे-ख़ुदी ने अता किया मुझे अब लिबास-ए-बरहनगी
न ख़िरद की बख़िया-गरी रही न जुनूँ की पर्दा-दरी रही
- सिराज औरंगाबादी



शहर सोता है रात जाती है
कोई तूफ़ाँ है पर्दा-दर ख़ामोश
- नासिर काज़मी



शह्र जलाने वाला तो इक मोहरा था
कोई है जो पर्दा कर के बैठा है
- मोनिस फ़राज़



शाइ'री को मिरा इज़हार समझता है मगर
पर्दा-ए-शे'र उठाना भी नहीं चाहता है
- फ़रहत एहसास



शामिल पस-ए-पर्दा भी हैं इस खेल में कुछ लोग
बोलेगा कोई होंट हिलाएगा कोई और
- आनिस मुईन



'शारिब' जमाल-ए-दोस्त का पर्दा तो रह गया
अच्छा हुआ हिजाब-ए-नज़र दरमियाँ रहे
- शारिब लखनवी



शिकवे रहे हिजाब-ए-रुख़-ए-नाज़ से बहुत
आँखें मिलीं तो होश न आया किसी तरह
- बिशन दयाल शाद देहलवी



शिर्क का पर्दा उठाया यार ने
हम को जब अपना बनाया यार ने
- यासीन अली ख़ाँ मरकज़



शुऊर में कभी एहसास में बसाऊँ उसे
मगर मैं चार तरफ़ बे-हिजाब पाऊँ उसे
- अहमद नदीम क़ासमी



शुक्र है पैदा किया ख़ालिक़ ने जिस्म
रूह का कुछ दिन को पर्दा हो गया
- नसीम देहलवी



शुरू-ए-इश्क़ में उन से ही कुछ हिजाब न था
कभी कभी तो ख़ुद अपने से भी हया आई
- रईस अमरोहवी



शोख़ी ने तेरी लुत्फ़ न रक्खा हिजाब में
जल्वे ने तेरे आग लगाई नक़ाब में
- मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता



शोख़ी से कश्मकश नहीं अच्छी हिजाब की
खुल जाएगी गिरह तिरे बंद-ए-नक़ाब की
- अज़ीज़ हैदराबादी



शोर से अपने हश्र है पर्दा
यूँ नहीं जानता कि किया है ये
- मीर तक़ी मीर



शो'ला-ए-हुस्न तेरा क्या कहना
फूँक दे उस के पर्दा-हा-ए-हिजाब
- मीर मेहदी मजरूह



शौक़ तिरा अगर न हो मेरी नमाज़ का इमाम
मेरा क़याम भी हिजाब! मेरा सुजूद भी हिजाब!
- अल्लामा इक़बाल



शौक़ था माना-ए-तजल्ली-ए-दोस्त
उन की शोख़ी हिजाब में गुज़री
- फ़ानी बदायुनी



'शौक़' है तेरा मुंतज़िर कब से
अब तो सूरत दिखा हिजाब न कर
- शौक़ बिजनौरी



शौक़-ए-नज़्ज़ारा का पर्दा उठ्ठा
नज़र आने लगी दुनिया हम को
- बाक़ी सिद्दीक़ी



शौक़-ए-नज़्ज़ारा सलामत है तो देखा जाएगा
उन को पर्दा ही अगर मंज़ूर है पर्दा करें
- फ़ानी बदायुनी



सच कहो किस से दिल लगा है 'ऐश'
नहीं यारों से ये हिजाब की बात
- हकीम आग़ा जान ऐश



सद-जल्वा बे-हिजाब ख़िरामाँ है आज कल
सहमा हुआ सा गुम्बद गर्दां है आज कल
- वासिफ़ देहलवी



सदहा हिजाब-हा-ए-तअ'य्युन के बावजूद
वो क्या करें जो उन की तमन्ना करे कोई
- कैफ़ मुरादाबादी



सब कुछ है अयाँ फिर भी है पर्दा मेरे आगे
दुनिया है तिरी एक करिश्मा मिरे आगे
- नुसरत मेहदी



सब दोस्त मिरे मुंतज़िर-ए-पर्दा-ए-शब थे
दिन में तो सफ़र करने में दिक़्क़त भी बहुत थी
- परवीन शाकिर



सब महव-ए-नक़्श-ए-पर्दा-ए-रंगीं तो हैं मगर
कोई सितम-ज़रीफ़ ये पर्दा हटा न दे
- असलम अंसारी



सब रूहें ज़ेहनों पर कपड़ा रखती थीं
हम बस जिस्मों का ही पर्दा करते थे
- निवेश साहू



सब लोग आ के अपनी कहानी सुना गए
मैं कुछ न कह सका मुझे कितना हिजाब था
- नसीम अहमद नसीम



सभी उठ गए दीदा ओ दिल से पर्दे
न उट्ठा मगर इक हिजाब-ए-मोहब्बत
- जिगर मुरादाबादी



सभी नज़ारे नज़र में गुम थे
कि सारा मंज़र हिजाब में था
- सुल्तान अख़्तर



समझ रहा था उसे हासिल-ए-हयात मगर
उठा हिजाब मुझे आगही ने मार दिया
- मुज़म्मिल अब्बास शजर



सर-ए-महफ़िल वो फिर से आ गए हैं आज बे-पर्दा
न जाने कौन सी शय फिर मिरी तक़्सीम होनी है
- एहतिमाम सादिक़



सर-ए-शब इक नई तमसील बपा होनी है
और हम पर्दा उठाने के लिए निकले हैं
- जौन एलिया



सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
निकलता आ रहा है आफ़्ताब आहिस्ता आहिस्ता
- अमीर मीनाई



सरगश्ता-ए-जमाल की हैरानियाँ न पूछ
हर ज़र्रे के हिजाब में इक आइना मिला
- सीमाब अकबराबादी



सलाम उस पे कि जिस ने उठा के पर्दा-ए-दिल
मुझी में रह के मुझी में समा के लूट लिया
- जिगर मुरादाबादी



साथ शोख़ी के कुछ हिजाब भी है
इस अदा का कहीं जवाब भी है
- दाग़ देहलवी



साफ़ बे-पर्दा नहीं होता वो ग़ुर्फ़ा में न हो
रौज़न-ए-दर से कभी आँख लड़ाए तो सही
- शेख़ इब्राहीम ज़ौक़



सारा पर्दा है दुई का जो ये पर्दा उठ जाए
गर्दन-ए-शैख़ में ज़ुन्नार बरहमन डाले
- अमीर मीनाई



सारी दुनिया है एक पर्दा-ए-राज़
उफ़ रे तेरे हिजाब के अंदाज़
- जोश मलीहाबादी



सारे चेहरे बहुत परेशां हैं
ये नक़ाबों के आख़िरी दिन हैं
- शम्स खालिद



सारे हिजाब-ए-हुस्न निगाहों से हट गए
इक आइना ज़रूर मुक़ाबिल में रह गया
- फ़िगार उन्नावी



साहब तुम अपने मुँह को छुपाते हो मुझ से क्यूँ
है उस से क्या हिजाब जो अपना ग़ुलाम हो
- बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान



सितम सितम से झलकती रही बहार-ए-करम
कभी जलाल हिजाब-ए-जमाल हो न सका
- कौकब शाहजहाँपुरी



सुख़न राज़-ए-नशात-ओ-ग़म का पर्दा हो ही जाता है
ग़ज़ल कह लें तो जी का बोझ हल्का हो ही जाता है
- शाज़ तमकनत



सुनते हैं एक नूर है रौशन हिजाब में
दिखला दो इक झलक ज़रा पर्दा उठा के तुम
- ज़ीशान नियाज़ी



सुना है हश्र में हर आँख उसे बे-पर्दा देखेगी
मुझे डर है न तौहीन-ए-जमाल-ए-यार हो जाए
- जिगर मुरादाबादी



सुनाई जाती हैं दर-पर्दा गालियाँ मुझ को
कहूँ जो मैं तो कहे आप से कलाम नहीं
- दाग़ देहलवी



सुब्ह के इस हिजाब ने मारा
रात भर ऐसे बे-हिजाब रहे
- निज़ाम रामपुरी



सुब्ह है पर्दा तिरे चेहरे से हट जाने का नाम
शाम है गेसू तिरे रुख़ पर बिखर जाने का नाम
- नजमा जाफ़री



सुलग रहे थे मिरे होंट जल रहा था बदन
ज़बाँ से कुछ न कहा था हिजाब ऐसा था
- अली विजदान



'सैफ़' बे-पर्दा सामने है वो
फ़ासला अब सहा नहीं जाता
- मोहम्मद सैफ़ बाबर



सोहबत-ए-वस्ल है मसदूद हैं दर हाए हिजाब
नहीं मालूम ये किस आह से शरम आती है
- शाद लखनवी



सौ चराग़ जल बुझे तीरगी न कम हुई
मुस्तक़िल हिजाब हैं रतजगों के दरमियाँ
- अतीक़ुर्रहमान सफ़ी



सौ हिजाबों में बे-हिजाब है हुस्न
सौ लिबासों में बे-लिबासी है
- फ़िगार उन्नावी



हिजाब पर शायरी | नक़ाब पर शायरी | स्टेज पर पड़ा था जो पर्दा वो उठ चुका जो अक़्ल पर पड़ा है वो पर्दा उठाइए
स्टेज पर पड़ा था जो पर्दा वो उठ चुका
जो अक़्ल पर पड़ा है वो पर्दा उठाइए
- दिलावर फ़िगार



हँस के पर्दा जो उठाता तो गुलिस्ताँ होता
और ही रंग-ए-जहाँ तुझ से नुमायाँ होता
- वफ़ा बराही



हँसी नाम का मुफ्त का नकाब जो पहन लिया,
कितने ही बेशकिमती ग़म छुप गये, बडी नज़ाकत से
- किर्ती वैराळकर इंगोले



हक़ीक़त बन गई ख़ुद ही हिजाब आहिस्ता आहिस्ता
नज़र को ले मरा ज़ौक़-ए-सराब आहिस्ता आहिस्ता
- साबिर अबुहरी



हक़ीक़तों का न पर्दा अभी उठाना था
ख़याल-ओ-ख़्वाब का मंज़र बड़ा सुहाना था
- इक़बाल जहाँ क़दीर



हक़ीक़ी चेहरा कहीं पर हमें नहीं मिलता
सभी ने चेहरे पे डाले हैं मस्लहत के नक़ाब
- मरग़ूब अली



हज़ार कसरत-ए-रा'ना ने चिलमनें डालीं
ब-हर-हिजाब-ए-तअ'य्युन वो आश्कार रहे
- एहसान दानिश



हज़ार चेहरे हैं मौजूद आदमी ग़ाएब
ये किस ख़राबे में दुनिया ने ला के छोड़ दिया
- शहज़ाद अहमद



हज़ार तफ़तीश पर मुझे अब पता चला है कि मेरे दिल को
बहुत ही बेचैन कर गया था सहर से शब का हिजाब बाबा
- जाफ़र साहनी



हज़ार शाख़ें अदा से लचकीं हुआ न तेरा सा लोच पैदा
शफ़क़ ने कितने ही रंग बदले मिला न रंग-ए-शबाब तेरा
- जोश मलीहाबादी



हटा जो रुख से नक़ाब उस के तो ये राज़ खुला
अजल हयात का चोला बदल के आई है
- शमशाद शाद



हबाब ओ बहर में हाजिब वजूद ही है हम आह
मिलें कब उस से ये जब तक हिजाब रखते हैं
- क़ाएम चाँदपुरी



हम अपने चेहरे से पर्दा उठा तो दें लेकिन
ग़रीब चाँद-सितारों का हाल क्या होगा
- साहिर लुधियानवी



हम किस पते पे ढूँढें किसे
यहाँ हर शख़्स ख़ानाबदोश है
- शारिक़ हयात



हम को मंज़ूर तुम्हारा जो न पर्दा होता
सारा इल्ज़ाम सर अपने ही न आया होता
- वहीद अख़्तर



हम तुम्हारे हैं तुम हमारे हो
पर्दा क्यों दरमियान है प्यारे
- मसीहुल्लाह ख़ाँ अता



हम तो नज़रें उठाना भूल गये
जब से देखा हिजाब आँखों में
- माहिर निज़ामी



हम पस-ए-पर्दा रहें या पेश-ए-मंज़र में रहें
हाँ हमारे हर्फ़ रौशन दीदा-ए-तर में रहें
- साइमा इसमा



हम भी कुछ कुछ ख़राब हो जाएँ
दूर सारे हिजाब हो जाएँ
- अशरफ़ अली अशरफ़



हम से तो अब तलक वही शर्म-ओ-हिजाब है
गर हर किसी के सामने आते हो हम को क्या
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी



हम से पर्दा वही हिजाब का है
कूचा-गर्दों से रू-बराह हो तुम
- हैदर अली आतिश



हम से मिलते हैं वो दर-पर्दा शिकायत के एवज़
चाँद रू-पोश हो जिस तरह लताफ़त के एवज़
- आसी फ़ाईकी



हम सोच रहे थे उन को अभी वो पर्दा उठा कर आ भी गए
वो फूल मोहब्बत के हम पर अज़-राह-ए-करम बरसा भी गए
- सुहैल काकोरवी



हम ही उन को बाम पे लाए और हमीं महरूम रहे
पर्दा हमारे नाम से उट्ठा आँख लड़ाई लोगों ने
- बहादुर शाह ज़फ़र



हमारा शेर भी लौह-ए-तिलिस्म है शायद
हर एक रुख़ से हमें बे-नक़ाब करता है
- सरफ़राज़ दानिश



हमारी महफ़िलों में बे-हिजाब आने से क्या होगा
नहीं जब होश में हम जल्वा फ़रमाने से क्या होगा
- इम्तियाज़ अली अर्शी



हमारे दिल में है क्या झाँक कर न देख सके
ख़ुद अपनी ज़ात से पर्दा उठा के छोड़ दिया
- शहज़ाद अहमद



हमें भी पढ़ लिया कीजे, किताबों में नहीं हैं हम
ज़रा नज़र-ए-करम कीजे, हिजाबों में नहीं हैं हम
- सचिन मेहरोत्रा



हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे
तुम्हें है शर्म तो आँखों पे हाथ धर लेना
- दाग़ देहलवी



हया हिजाब पे करते हैं तब्सिरे 'अम्बर'
सरों पे जिन के कभी भी रिदा नहीं आती
- अम्बर आबिद



हर इक जल्वे में इक पर्दा हर इक पर्दा में इक जल्वा
ब-हर-सूरत सहाब-ए-दरमियाँ कुछ और कहता है
- अफ़क़र मोहानी



हर जा मुतजल्ली है वो बे-पर्दा व-लेकिन
ग़फ़लत के मुझे पर्दा-ए-हाइल ने सताया
- शाह नसीर



हर तरफ़ पर्दा-दार-ए-ज़ुल्मत है
इक तबस्सुम की फिर ज़रूरत है
- जमील मज़हरी



हर पर्दे के बाद एक पर्दा
हद दर्जा अजीब हो गए हो
- अहमद अज़ीमाबादी



हर रूह पस-ए-पर्दा-ए-तरतीब-ए-अनासिर
ना-कर्दा गुनाहों की सज़ा काट रही है
- जमुना प्रसाद राही



हर शय पुकारती है पस-ए-पर्दा-ए-सुकूत
लेकिन किसे सुनाऊँ कोई हम-नवा भी हो
- नासिर काज़मी



हर सम्त तिरे रू-ए-मुनव्वर की तजल्ली
ओ पर्दा-नशीं पर्दा न कर देख रहे हैं
- संजर ग़ाज़िपुरी



हर हक़ीक़त पे ड़ाल मत पर्दा
सच को कुछ बे-हिजाब रहने दे
- सचिन मेहरोत्रा



हरीम-ए-ग़ुंचा में ख़ुश्बू सिमट के बैठी है
हिजाब उठ्ठे जो सहन-ए-चमन में आए सबा
- ख़ातिर ग़ज़नवी



हरीम-ए-नाज़ में कुछ ऐसा एहतिमाम रहा
उठे हिजाब मगर शौक़ तिश्ना-काम रहा
- रशीद शाहजहाँपुरी



हर्फ़ पर्दा-पोश थे इज़हार-ए-दिल के बाब में
हर्फ़ जितने शहर में थे हर्फ़-ए-ला होते गए
- मुनीर नियाज़ी



हलाक अंदाज़-ए-वस्ल करना कि पर्दा रह जाए कुछ हमारा
ग़म-ए-जुदाई में ख़ाक कर के कहीं अदू की ख़ुशी न करना
- दाग़ देहलवी



हल्की हल्की फुवार के दौरान में
दफ़अतन सूरज जो बे-पर्दा हुआ
- अख़्तर अंसारी



हवा भी पर्दा हिलाए तो हो गुमाँ उस का
वो जाते जाते यूँ पर्दा हिला के छोड़ गया
- कालीचरण सिंह



हवा में जब उड़ा पर्दा तो इक बिजली सी कौंदी थी
ख़ुदा जाने तुम्हारा परतव-ए-रुख़्सार था क्या था
- परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़



हसरत बहुत तरक़्क़ी-ए-दुख़्तर की थी उन्हें
पर्दा जो उठ गया तो वो आख़िर निकल गई
- अकबर इलाहाबादी



हसरत-ए-नज़्ज़ारा की तासीर से
पर्दा उट्ठा यार की तस्वीर से
- फ़रहत कानपुरी



हसीन चेहरा भी उसका नक़ाब था शायद
नसीबे दीद ही अपना ख़राब था शायद
- सिद्ध नाथ सिंह



हस्ती तिरी पर्दा है उठा दे इसे ग़ाफ़िल
क्यूँ ऐसा हिजाब-ए-रुख़-ए-दिलदार हुआ है
- रासिख़ अज़ीमाबादी



हस्ती ही हिजाब थी जो देखा
इस बहर से पार हो गए हम
- मीर मोहम्मदी बेदार



हाँ अंजुमन में कम है उस को हिजाब लेकिन
अंजान सा रहा है तन्हा अगर मिला है
- अनवर ख़लील



हाइल है हिजाब-ए-शर्म-ओ-हया दीदार तो क्या गुफ़्तार तो क्या
मुबहम हैं इशारे सब उस के इंकार तो क्या इक़रार तो क्या
- मोहम्मद आबिद अली आबिद



हादसा वो जो अभी पर्दा-ए-अफ़्लाक में है
अक्स उस का मिरे आईना-ए-इदराक में है
- अल्लामा इक़बाल



हालत-ए-जज़्ब में तो तेरा हिजाब
आग था और शरार था मुझ को
- कामरान नफ़ीस



हासिल है लुत्फ़-ए-दीद मगर ये ख़बर नहीं
तू बे-हिजाब है कि नज़र बे-हिजाब है
- शाहिद सिद्दीक़ी



हिजाब अज़्मत-ए-इंसानियत का ज़ामिन है
रहो कहीं भी प पाबंदी-ए-हिजाब करो
- इबरत बहराईची



'हिजाब' अहल-ए-जुनूँ में शुमार होने की
असास इज़्ज़त-ए-सादात थोड़ी होती है
- हिजाब अब्बासी



हिजाब आ गया था मुझ को दिल के इज़्तिराब पर
यही सबब है तेरे दर पे लौट कर न आ सका
- अली अकबर नातिक़



'हिजाब' आया था दिल में धीरे धीरे
मगर यक-लख़्त आई बे-क़रारी
- शाहजहाँ जाफ़री हिजाब अमरोहवी



'हिजाब' इस शहर-ए-ना-पुरसाँ में सब झगड़ा अना का है
सुरूर-ए-ख़ुद-परस्ती में ख़ुदी को कौन लिक्खेगा
- हिजाब अब्बासी



हिजाब उट्ठे हैं लेकिन वो रू-ब-रू तो नहीं
शरीक-ए-इश्क़ कहीं कोई आरज़ू तो नहीं
- उम्मीद फ़ाज़ली



हिजाब उस का हुआ शब माने-ए-दीद
नक़ाब उल्टी न चेहरे की हया से
- मर्दान अली खां राना



हिजाब उस के मिरे बीच अगर नहीं कोई
तो क्यूँ ये फ़ासला-ए-दरमियाँ नहीं जाता
- फ़र्रुख़ जाफ़री



हिजाब उस ने किया आसूदा-ए-ग़म
ये अंदाज़-ए-मसीहाई सलामत
- हिजाब अब्बासी



हिजाब ऐ फ़ितनापरवर अब उठा लेती तो अच्छा था
खुद अपने हुस्न को परदा बना लेती तो अच्छा था
- मजाज़ लखनवी



हिजाब करने की बंदिश मुझे गवारा नहीं
कि मेरा जिस्म कोई माल-ए-ज़र तुम्हारा नहीं
- सय्यदा अरशिया हक़



हिजाब का है अज़ाब वर्ना
ख़ुदा से कब मैं जुदा रहा हूँ
- महमूद आलम



हिजाब कोई नहीं है नक़ाब कोई नहीं
मिरी खुली हुई आँखों में ख़्वाब कोई नहीं
- अब्दुल क़वी ज़िया



हिजाब दूर तुम्हारा शबाब कर देगा
ये वो नशा है तुम्हें बे-हिजाब कर देगा
- बेख़ुद देहलवी



हिजाब बन के वो मेरी नज़र में रहता है
मुझी से पर्दा है मेरे ही घर में रहता है
- चंद्र प्रकाश जौहर बिजनौरी



हिजाब माने-ए-अश्काल-ए-ख़ीरगी ठहरा
निहाँ हुए हो तो कुछ और भी अयाँ तुम हो
- रशीद कौसर फ़ारूक़ी



हिजाब में छुपा चेहरा, सर पे आंचल भी जरूरी है,
घुंघट में सुंदर लगे हो, तहज़ीब पर्दे का भी जरूरी है
- शाहरुख मोईन



हिजाब में भी तुझे बे-हिजाब देख लिया
हर एक फूल में चेहरा तिरा है बू तेरी
- रम्ज़ अज़ीमाबादी



हिजाब हटने दे 'कशफ़ी' तू अज्नबिय्यत का
फिर इस के बाद बिला-ख़ौफ़ तुम से तू करना
- रिज़वान कशफ़ी



हिजाब हम थे हमीं से हिजाब हो के रहा
हमारा शौक़ किसी का नक़ाब हो के रहा
- सय्यद बशीर हुसैन बशीर



हिजाब हो मगर ऐसा भी क्या हिजाब आख़िर
झलक दिखाते नहीं मुँह छुपाए जाते हैं
- रियासत अली ताज



हिजाब-अंदर-हिजाब अमवाज-ए-तूफ़ान-ए-तजल्ली हैं
फ़रोग़-ए-शम'अ से परवाना है आतिश-बजाँ फिर भी
- सीमाब अकबराबादी



हिजाब-ए-अब्र रुख़-ए-महताब से छलका
वो अपने चेहरे से पर्दे को जब हटाने लगा
- अम्बर वसीम इलाहाबादी



हिजाब-ए-ख़ुदी उठ गया जब कि दिल से
तो पर्दा कोई फिर न हाएल रहेगा
- मीर मोहम्मदी बेदार



हिजाब-ए-गंज-ए-मख़्फ़ी में निहाँ थे
इलाही हम कहाँ आए कहाँ थे
- अब्दुल अलीम आसि



हिजाब-ए-ज़ात से बाहर कहाँ अभी हम लोग
अभी ये कौन बताए कि आदमी क्या है
- अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी



हिजाब-ए-ज़ाहिर-ओ-बातिन भी दरमियाँ में नहीं
अब इम्तियाज़ कोई मेरे जिस्म-ओ-जाँ में नहीं
- वहशी कानपुरी



हिजाब-ए-दरमियाँ से दीद का अरमान बढ़ता है
अदा मतलब हिजाब-ए-दरमियाँ से कुछ नहीं होता
- तालिब देहलवी



हिजाब-ए-नज़र से खुले भेद दिल के
अबस हम से ज़ाहिर में पर्दा हुआ है
- नसीम देहलवी



हिजाब-ए-फ़ित्ना-परवर अब उठा लेती तो अच्छा था
ख़ुद अपने हुस्न को पर्दा बना लेती तो अच्छा था
- असरार-उल-हक़ मजाज़



हिजाब-ए-महमिल-ए-लैला को तू उठा न सका
कि तेरी आँख में दीदार का शुऊ'र नहीं
- नक़्क़ाश अली बलूच



हिजाब-ए-रंग-ओ-बू है और मैं हूँ
ये धोका था कि तू है और मैं हूँ
- असर लखनवी



हिजाब-ए-रुख़ लहक उठा अगर बहुत ख़फ़ा हुआ
जभी तो हम से पय-ब-पय क़ुसूर-ए-मुद्दआ हुआ
- शाद आरफ़ी



हिजाब-ए-रुख़-ए-यार थे आप ही हम
खुली आँख जब कोई पर्दा न देखा
- ख़्वाजा मीर दर्द



हिजाब-ए-रुख़-ए-लाला-ओ-गुल उठा कर
मोहब्बत की चिंगारियाँ देखता हूँ
- शारिक़ मेरठी



हिजाब-ए-हुस्न में या हुस्न-ए-बे-हिजाब में है
ये रौशनी का सफ़र अक्स-ए-माहताब में है
- नईम सबा



हिजाब-ओ-हया सोचते रह गए हैं
मिली इश्क़ में कामयाबी पहल से
- दीपक पुरोहित



हिज्र में भी मुझे इम्दाद-ए-अजल है दरकार
मेरी तुर्बत पे न आ तुझ से हिजाब आता है
- फ़ानी बदायुनी



हिज्र-ए-पर्दा-नशीं में मरते हैं
ज़िंदगी पर्दा-ए-दर न हो जाए
- मोमिन ख़ाँ मोमिन



हिज्र-ओ-विसाल-ए-यार का पर्दा उठा दिया
ख़ुद बढ़ के इश्क़ ने मुझे मेरा पता दिया
- फ़िराक़ गोरखपुरी



हुआ यक़ीं कि ज़मीं पर है आज चाँद-गहन
वो माह चेहरे पे जब डाल कर नक़ाब आया
- मर्दान अली खां राना



हुआ वो ख़ूब-रू यूँ बे-हिजाब आहिस्ता आहिस्ता
नज़र देखे है जैसे कोई ख़्वाब आहिस्ता आहिस्ता
- अहमद मुशर्रफ़ ख़ावर



हुआ है माने-ए-दीदार-ए-यार पर्दा-ए-चश्म
खुली जो आँख तो कुछ दरमियाँ हिजाब नहीं
- इमाम बख़्श नासिख़



हुई शक्ल अपनी ये हम-नशीं जो सनम को हम से हिजाब है
कभी अश्क है कभी आह है कभी रंज है कभी ताब है
- नज़ीर अकबराबादी



हुई है आज बे-पर्दा तिरी ये बे-रुख़ी कुछ यूँ
मिरे हालात ने रुख़ से तिरे पर्दा हटाया हो
- अलख निरंजन



हुज़ूरी निगाहों को दीदार से थी
खुला था वो पर्दा कि जो दरमियाँ था
- हैदर अली आतिश



हुस्न का अक्स है हिजाब-ए-नज़र
फिर जुनूँ को तो सूझता भी नहीं
- ख़लील राज़ी



हुस्न की फ़ितरत-ए-मा'सूम थी पाबंद-ए-हिजाब
इश्क़ से सीख लिया जल्वा-नुमा हो जाना
- मोहम्मद सादिक़ ज़िया



हुस्न को बे-हिजाब होना था
शौक़ को कामयाब होना था
- असरार-उल-हक़ मजाज़



हुस्न ख़ुद पर्दा-वर है क्या कहिए
ये हमारी नज़र है क्या कहिए
- असरार-उल-हक़ मजाज़



हुस्न ख़ुद-आरा न यूँ होता हिजाब-अंदर-हिजाब
शान-ए-तमकीं को ख़याल-ए-मंज़र-ए-आम आ गया
- अज़ीज़ लखनवी



हुस्न था पर्दा-ए-तजरीद में सब सूँ आज़ाद
तालिब-ए-इश्क़ हुआ सूरत-ए-इंसान में आ
- वली मोहम्मद वली



हुस्न बजाए ख़ुद पर्दा है इस पर्दे को उठाए कौन
देख नहीं सकती आँख उस को बदले अपनी राय कौन
- वाजिद सहरी



हुस्न बे-पर्दा हुआ और तवक़्क़ो ये है
इश्क़ देखे उसे आँखों में शराफ़त ले कर
- यासिर ख़ान इनाम



हुस्न बे-पर्दा है जल्वा आम है
देखना अहल-ए-नज़र का काम है
- पन्ना लाल नूर



हुस्न मसरूफ़-ए-पर्दा-दारी है
जाने अब किस नज़र की बारी है
- शकील बदायुनी



हुस्न वालों के वास्ते कर दे
ऐ ख़ुदा तू हिजाब की बारिश
- अमित अहद



हुस्न हर गाम पे क़ाएम करे इक ताज़ा हिजाब
इश्क़ पर्दे की ये दीवार गिरानी माँगे
- नुशूर वाहिदी



हुस्न हर हाल में है हुस्न परागंदा नक़ाब
कोई पर्दा है न चिलमन ये कोई क्या जाने
- अर्श मलसियानी



हुस्न है मश्ग़ला-ए-ज़ुल्म को गहरा पर्दा
पस-ए-पर्दा है अंधेरा मुझे मालूम न था
- आरज़ू लखनवी



हुस्न-ए-ख़ुद-बीं को हुआ और सिवा नाज़-ए-हिजाब
शौक़ जब हद से बढ़ा चश्म-ए-तमाशाई का
- दिल शाहजहाँपुरी



हुस्न-ए-नज़्ज़ारा-सोज़ है पर्दा
गो वो पर्दा उठाए बैठे हैं
- अनवर देहलवी



हुस्न-ए-बे-पर्दा की यलग़ार लिए बैठे हैं
तिरछी नज़रों के कड़े वार लिए बैठे हैं
- साबिर दत्त



हुस्न-ए-बे-हिजाब पर कोई पर्दा डाल लो
तुम उसे सनम कहो मैं उसे ख़ुदा कहूँ
- नुशूर वाहिदी



हुस्न-ए-'यगाना' आप ही अपना हिजाब है
हुस्न-ए-हिजाब दूर से देखा करे कोई
- यगाना चंगेज़ी



हुस्न-ए-हिजाब-आश्ना जानिब-ए-बाम आ गया
बादा-ए-तह-नशीन-ए-जाम ता लब-ए-जाम आ गया
- कैफ़ी चिरय्याकोटी



हूर-ओ-जम्हूर ऐ मआ'ज़-अल्लाह
क्या न तुम को हिजाब आएगा
- नक़वी मुस्तफ़ाबादी



है इतना गुरूर गर शबाब पर नाज़ा
फिर इस चेहरेपर नकाब किसलिए
- प्रकाश मोरे



है कुछ तो अपनी पर्दा-दारी
न जागता हूँ न सो रहा हूँ
- अहमद हमेश



है गहन चाँद को लगा देखा
रुख़ से पर्दा उठा रही हैं वो
- अली फ़राज़ रिज़वी



है तिरी तस्वीर कितनी बे-हिजाब
हर किसी के रू-ब-रू होने लगी
- दाग़ देहलवी



है तुम्हारे चेहरे पर क्यों हिजाब की शबनम
अपने आप को हम ने बेवफ़ा कहा होगा
- हयात वारसी



है दिल आईना-सामाँ पर्दा-ए-हाइल से क्या मतलब
तिरा दीदार आसाँ है किसी मुश्किल से क्या मतलब
- हैदर हुसैन फ़िज़ा लखनवी



है दीद लाजिमी महबूब की रनाई की
प हुस्न शर्मोहया के हिजाब माँगे है
- पूजा बंसल



है देखने वालों को सँभलने का इशारा
थोड़ी सी नक़ाब आज वो सरकाए हुए हैं
- अर्श मलसियानी



है पर्दा-अंदर-पर्दा वो और अर्ज़-ओ-समा का नूर भी है
जब याद करो नज़दीक है वो जब ढूँडो उस को दूर भी है
- ख़लीलुर्रहमान राज़



है बज़्म ये हसीनों की , दिल को संभालिए
क़ातिल छिपे हुए खड़े , कितने हिजाब में
- सीमा शिवहरे सुमन



है ये तक़दीर की ख़ूबी कि निगाह-ए-मुश्ताक़
पर्दा बन जाए अगर पर्दा-नशीं तक पहुँचे
- जगदीश सहाय सक्सेना



है ये मतलब गर्दिश-ए-अय्याम का
पर्दा रख ले कोशिश-ए-नाकाम का
- सुहैल अज़ीमाबादी



हिजाब पर शायरी | नक़ाब पर शायरी | है ये रौशन कि है हिजाब में चाँद आप क्या मुँह छुपाए बैठे हैं
है ये रौशन कि है हिजाब में चाँद
आप क्या मुँह छुपाए बैठे हैं
- अनवर देहलवी



है रह-ओ-रस्म-ए-ज़माना पर्दा-ए-बेगानगी
दरमियाँ रहता हूँ मैं सब के मगर सब से अलग
- सरमद सहबाई



है हुस्न सौ हिजाब-ए-फ़रोज़ाँ लिए हुए
क्या देखे कोई दीदा-ए-हैराँ लिए हुए
- चौधरी मुईनुद्दीन उस्मानी आरिफ़



हैं तजल्ली-ए-ज़ात के तेरी
एक पर्दा सा दरमियाँ में हम
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी



हैं मनाज़िर सब बहम-पर्दा नज़र बाक़ी नहीं
सामने मंज़िल है लेकिन रहगुज़र बाक़ी नहीं
- शबनम शकील



हैं मिरी राह का पत्थर मिरी आँखों का हिजाब
ज़ख़्म बाहर के जो अंदर नहीं जाने देते
- ख़ुर्शीद रिज़वी



हैरत से बिखर रही थी ख़ुशबू
ख़ुशबू का हिजाब उतर चुका था
- कामरान नफ़ीस



हो के बे-पर्दा खाओगे नश्तर
अपने रुख़ को नक़ाब दो बाबा
- मिन्हाज नक़ीब



हो के बे-पर्दा मुल्तफ़ित भी हुआ
नाकसी से हमें हिजाब रहा
- मीर तक़ी मीर



हो कोई वस्ल का लम्हा कि हिज्र का आलम
हिजाब-ए-शौक़ हुआ है न दरमियाँ से अलग
- शकील नश्तर



हो गई आवारागर्दी बे-घरी की पर्दा-दार
काम जितना हम को आता था वो काम आ ही गया
- नातिक़ गुलावठी



हो गया राज़-ए-इश्क़ बे-पर्दा
उस ने पर्दे से जो निकाला मुँह
- मोमिन ख़ाँ मोमिन



हो गया हूँ मैं नक़ाब-ए-रू-ए-रौशन पर फ़क़ीर
चाहिए तह-बंद मुझ को चादर-ए-महताब का
- मुनीर शिकोहाबादी



हो सरसर-ए-फ़ुग़ाँ से न क्यूँकर वो मुज़्तरिब
मुश्किल हुआ है पर्दा-ए-महमिल को थामना
- मोमिन ख़ाँ मोमिन



होगा जो ए'तिबार तअम्मुल रहेगा क्या
कामिल सुपुर्दगी हो तो शर्म-ओ-हिजाब क्या
- आदित्य पंत नाक़िद



होगी मिरी बातों से उन्हें और भी हैरत
आएगा उन्हें मुझ से हिजाब और ज़ियादा
- असरार-उल-हक़ मजाज़



होती दिल में न गर वो पर्दा-नशीं
मुझ से क्यूँ होती पर्दा-दारी आज
- मोहसिन ख़ान मोहसिन


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