प्रतिध्वनि - रमापति शुक्ल

प्रतिध्वनि - रमापति शुक्ल

मेरे मुँह से जो कुछ निकला
कौन उसे दोहराता है?
कहाँ छिपा है? किस कोने में?
क्यों न सामने आता है?
‘कौन’? कहूँ तो ‘कौन’? कहे
‘मैं’ कहने पर मैं कहता है
डाँटूँ तो वह डाँट सुनाता,
बात न कोई सहता है!
ओ हो, मैंने अब पहचाना,
रही प्रतिध्वनि यह मेरी!
जो बोलूँगा दोहराएगी,
बिना किए कुछ भी देरी।
इससे अब मैं मीठी-मीठी,
बातें मुँह से बोलूँगा!
कड़वी बातें कहने को अब
कभी नहीं मुँह खोलूँगा!
~ रमापति शुक्ल


Pratidhvni

mere munh se jo kuchh nikla
kaun use dohrata hai?
kahan chhipa hai? kis kaune me?
kyon n samne aata hai?
'kaun'? kahun to 'kaun'? kahe
'mai' kahne par mai kahta hai
dantu to wah daant sunata,
baat n koi sahta hai!
o ho, maine ab pahchana,
rahi pratidhwani yah meri!
jo bolunga, dohrayegi,
bina kiye kuchh bhi deri
isse ab mai mithi-mithi,
baaten munh se bolunga!
kadvi baate kahne ko ab
kabhi nahi munh kholunga!
~ Ramapati Shukla

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