सन्नाटा या शोर
कितना अजीब हैअपने ही सिरहाने बैठकर
अपने को गहरी नींद में सोते हुए देखना।
यह रोशनी नहीं
मेरा घर जल रहा है।
मेरे ज़ख्मी पाँवों को एक लम्बा रास्ता
निगल रहा है।
मेरी आँखें नावों की तरह
एक अंधेरे महासागर को पार कर रही हैं।
यह पत्थर नहीं
मेरी चकनाचूर शक्ल का एक टुकड़ा है।
मेरे धड़ का पदस्थल
उसके नीचे गड़ा है।
मेरा मुंह एक बन्द तहखाना है। मेरे अन्दर
शब्दों का एक गुम खज़ाना है। बाहर
एक भारी फ्त्थर के नीचे दबे पड़े
किसी वैतालिक अक्लदान में चाभियों की तरह
मेरी कटी उँगलियों के टुकड़े।
क्या मैं अपना मुँह खोल पा रहा हूँ?
क्या मैं कुछ भी बोल पा रहा हूँ?
लगातार सांय...सांय...मुझमें यह
सन्नाटा गूंजता है कि शोर?
इन आहटों और घबराहटों के पीछे
कोई हमदर्द है कि चोर?
लगता है मेरे कानों के बीच एक पाताल है
जिसमें मैं लगातार गिरता चला जा रहा हूँ।
मेरी बाईं तरफ़
क्या मेरा बायां हाथ है?
मेरा दाहिना हाथ
क्या मेरे ही साथ है?
या मेरे हाथों के बल्लों से
मेरे ही सिर को
गेंद की तरह खेला जा रहा है?
मैं जो कुछ भी कर पा रहा हूँ
वह विष्टा है या विचार?
मैं दो पांवों पर खड़ा हूं या चार?
क्या मैं खुशबू और बदबू में फ़र्क कर पा रहा हूँ?
क्या वह सबसे ऊँची नाक मेरी ही है
जिसकी सीध में
मैं सीधा चला जा रहा हूँ?
- कुँवर नारायण
Sannata ya Shor
kitna ajeeb haiapne hi sirhane baithkar
apne ko gahri neend me sote hue dekhna
yah roshn nahin
mera ghar jal raha hai
mere jakhmi paanvo ko ek lamba rasta
nigal raha hai
meri aankhe naavo ki tarah
ek andhere mahasagar ko paar kar rahi hai
yah patthar nahin
meri chaknachur shakl ka ek tukda hai
mere dhad ka padsthal
uske neeche gada hai
mere munh ek band tahkhana hai mere andar
shabdo ka ek gum khajana hai. bahar
ek bhari patthar ke neeche dabe pade
kisi vaitalik akldan me chabhiyon ki tarah
meri kati ungliyon ke tukde
kya main apna munh khol pa raha hun?
kya main kuch bhi bol pa raha hun?
lagatar saany... saany... mujhme yah
sannata gunjta hai ki shor?
in aahto aur ghabrahto ke peechhe
koi hamdard hai ki chor?
lagta hai mere kano ke beech ek patal hai
jisme mai lagatar girta chala ja raha hun
mere baai taraf
kya mere bayan hath hai?
mera dahina hath
kya mere hi sath hai?
ya mere haatho ke ballo se
mere hi sir ko
gend ki tarah khela ja raha hai?
mai jo kuchh bhi kar pa raha hun
wah vishta hai ya vichar?
mai do paanvo par khada hun ya char?
kya mai khushbu aur badbu me fark kar pa raha hun?
kya wah sabse unchi naak meri hi hai
jiski seedh me
main seedha chala ja raha hun
Kunwar Narayan