कुछ ऐसे भी यह दुनिया जानी जाती है
पागल-से, लुटे-लुटे,जीवन से छुटे-छुटे
ऊपर से सटे-सटे,
अंदर से हटे-हटे,
कुछ ऐसे भी यह दुनिया जानी जाती है :
अपनी ही रची सृष्टि,
अपनी ही ब्रह्म-दृष्टि,
ऊपर से रचे-रचे,
अंदर से बचे-बचे,
कुछ ऐसे भी दुनिया पहिचानी जाती है :
स्वयं बिना नपे-तुले,
कण-कण से मिले-जुले,
ऊपर से ठगे-ठगे,
अंदर से जगे-जगे,
कुछ ऐसे भी दुनिया अनुमानी जाती है।
कुँवर नारायण
kuchh aise bhi yah duniya jani jati hai
pagal se, lute-lute,jeevan se chhute-chhute,
upar se sate-sate,
andar se hate-hate,
kuchh aise bhi yah duniya jani jati hai :
apni hi rachi srishti,
apni hi brimha-drishti,
upar se rache-rache,
andar se bache-bache,
kuchh aise bhi duniya pahchani jati hai :
svyam bina nape-tule,
kan-kan se mile-jule,
upar se thage-thage,
andar se jage-jage,
kuchh aise bhi duniya anumani jati hai.
Kunwar Narayan