बात सच्ची कहो पर अधूरी नहीं - निज़ाम फतेहपुरी

बात सच्ची कहो पर अधूरी नहीं

ग़ज़ल- 212 212 212 212
अरकान- फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन

बात सच्ची कहो पर अधूरी नहीं।
लोग माने न माने ज़रूरी नहीं।।

आज जो है जहाँ कल रहेगा वहाँ।
जानकारी किसी को ये पूरी नहीं।।

जिनको नफ़रत थी हमसे जुदा हो गए।
दूर रह कर भी उनसे है दूरी नहीं।।

दोस्ती दिल से की दुश्मनी खुल के की।
साफ दिल हूँ बगल में है छूरी नहीं।।

मुँह पे कहता बुरे को बुरा ये निज़ाम।
अपनी फितरत में है जी हज़ूरी नहीं।। - निज़ाम फतेहपुरी


baat sachchi kaho par adhuri nahin

baat sachchi kaho par adhuri nahin
log mane na mane jaruri nahin

aaj jo hai jahan kal rahega wahan
jankari kisi ko ye puri nahin

jinko nafrat thi hamse juda ho aye
door rahkar bhi unhe hai duri nahi

dosti dil se ki dushmani khul ke ki
saaf dil hun bagal me hai chhuri nahin

munh pe kahta bure ko bura ye nizam
apni fitrat men hai ji huzuri nahin - Nizam Fatehpuri

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