वो लड़की घर पे कैसे आ गई है - ज़िया उर रहमान जाफ़री

वो लड़की घर पे कैसे आ गई है

वो लड़की घर पे कैसे आ गई है
शिकन बिस्तर पे कैसे आ गई है

कभी जो प्यार ही बस चाहती थी
वो अब जेवर पे कैसे आ गई है

जरा सी बात हो जाती है घर में
ये तू खंजर पे कैसे आ गई है

यहां हर बूंद इससे है परेशां
नदी पत्थर पे कैसे आ गई है

मोहब्बत मिट गई दुनिया से आखिर
सियासत सर पे कैसे आ गई है

मुझे बदनाम करने पर तुली है
वो फिर छप्पर पे कैसे आ गई है

ग़ज़ल पनघट पे शरमाती थी कल तक
वो अब शावर पे कैसे आ गई है - ज़िया उर रहमान जाफ़री


wo ladki ghar pe kaise aa gai hai

wo ladki ghar pe kaise aa gai hai
shikan bistar pe kaise aa gai hai

kabhi jo pyar hi bas chahti thi
wo ab jewar pe kaise aa gai hai

jara si baat ho jati hai ghar me
ye tu khanzar pe kaise aa gai hai

yahan har boond isse hai pareshaaN
nadi patthar pe kaise aa gai hai

mohabbat mit gai duniya se aakhir
siyasat sar pe kaise aa gai hai

mujhe badnaam karne par tuli hai
wo phir chhappat pe kaise aa gai hai

ghazal panghat pe sharmati thi kal tak
wo ab shaawar pe kaise aa gai hai - Zia Ur Rehman Zafri

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