ख़ुद को हर रोज़ इम्तिहान में रख - उमैर मंज़र

ख़ुद को हर रोज़ इम्तिहान में रख बाल ओ पर काट कर उड़ान में रख सुन के दुश्मन भी दोस्त हो जाए शहद से लफ़्ज़ भी ज़बान में रख

ख़ुद को हर रोज़ इम्तिहान में रख

ख़ुद को हर रोज़ इम्तिहान में रख
बाल ओ पर काट कर उड़ान में रख

सुन के दुश्मन भी दोस्त हो जाए
शहद से लफ़्ज़ भी ज़बान में रख

ये तो सच है कि वो सितमगर है
दर पर आया है तो अमान में रख

मरहले और आने वाले हैं
तीर अपना अभी कमान में रख

वक़्त सब से बड़ा मुहासिब है
बात इतनी मिरी ध्यान में रख

तज़्किरा हो तिरा ज़माने में
ऐसा पहलू कोई बयान में रख

तुझ को नस्लें ख़ुदा न कह बैठें
अपनी तस्वीर मत मकान में रख

जिस की क़िस्मत है बेघरी 'मंज़र'
उन को तो अपने साएबान में रख - उमैर मंज़र
मायने
अमान = शरण, मरहले = पढाव, मुहासिब = हिसाब रखने वाला, तज़्किरा = संस्मरण / याद, साएबान = छत


khud ko har roz imtihan me rakh

khud ko har roz imtihan me rakh
baal o par kat kar udan me rakh

sun ke dushman bhi dost ho jaye
shahad se lafz bhi zaban me rakh

ye to sach hai ki wo sitamgar hai
dar par aaya hai to aman me rakh

marhale aur aane wale hai
teer apna abhi kaman me rakh

waqt sab se bada muhasib hai
baat itni meri dhyan me rakh

tazkira ho tera zamane mein
aisa pahlu koi bayan me rakh

tujh ko naslen khuda na kah baithen
apni tasweer mat makan me rakh

jis ki qismat hai beghari 'manzar'
un ko to apne sayeban me rakh - Umair Manzar

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