हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में, हड़ताल हमारा नारा है
हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में, हड़ताल हमारा नारा है!तुमने माँगें ठुकराई हैं, तुमने तोड़ा है हर वादा,
छीना हमसे सस्ता अनाज, तुम छँटनी पर हो आमादा
तो अपनी भी तैयारी है, तो हमने भी ललकारा है,
हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है!
मत करो बहाने संकट है, मुद्राप्रसार इन्फ़्लेशन है,
इन बनियों चोर-लुटेरों को क्या सरकारी कंसेशन है?
मत आँख चुराओ, बग़लें मत झाँको, दो जवाब,
क्या यही स्वराज्य तुम्हारा है,
हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में, हड़ताल हमारा नारा है!
मत समझो हमको याद नहीं है जून छियालिस की घातें,
जब काले-गोरे बनियों में चलती थीं सौदे की बातें,
रह गई ग़ुलामी बरक़रार हम समझे अब छुटकारा है,
हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में, हड़ताल हमारा नारा है!
क्या धमकी देते हो साहब, दमदाँटी में क्या रखा है?
यह वार तुम्हारे अग्रज अँग्रेज़ों ने भी तो चक्खा है!
दहला था सारा साम्राज्य जो तुमको इतना प्यारा है,
हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है!
समझौता? समझौता? हमला तो तुमने बोला है,
महँगी ने हमें निगलने को दानव जैसा मुँह खोला है,
हम मौत के जबड़े तोड़ेंगे, एका हथियार हमारा है,
हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है!
अब सँभले समझौतापरस्त घुटनाटेकू ढुलमुल-यक़ीन,
हम सब समझौतेबाज़ों को अब अलग करेंगे बीन-बीन,
जो रोकेगा वह जाएगा यह वह तूफ़ानी धारा है,
हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है! - शंकर शैलेन्द्र
har zor zulm ki takkar me hadtal hamara nara hai
har zor zulm ki takkar me hadtal hamara nara hai!tumne maange thukraai hai, tumne toda hai har waada,
chheena hamse sasta anaaj, tum chhatni par ho amada
to apni bhi taiyaari hai, to hamne bhi lalkara hai
har zor zulm ki takkar me hadtal hamara nara hai!
mat karo bahane sankat hai, mudraprasar inflation hai
in baniyoN chor-lutero ko kya sarkari concession hai?
at aankh churao, bagale mat jhaako, do jawab,
kya yahi swaraaj tumhara hai?
har zor zulm ki takkar me hadtal hamara nara hai!
mat samjho hamko yaad nahi june chhiyalis ki ghaate,
jab kale-gore baniyoN me chalti thi soude ki baate,
rah gai ghulami barqarar, ham samjhe ab chhutkara hai,
har zor zulm ki takkar me hadtal hamara nara hai!
kya dhamaki dete ho sahab, damdaati me kya rakha hai?
yah waar tumhare agraj angrezo ne bhi to chakkha hai!
dahla tha sara samrajya jo tumko itna pyara hai,
har zor zulm ki takkar me hadtal hamara nara hai!
samjhauta ? samjhauta? hamla to tumne bola hai,
mahangi ne hame nigalne ko danav jaisa munh khola hai,
ham mout ke jabde todenge, eka hathiyar hamara hai
har zor zulm ki takkar me hadtal hamara nara hai!
ab sambhale samjhautaparast ghutnateku dhulmul-yaqeen,
ham sab samjhautabazo ko ab alag karenge been-been,
jo rokega wah jayega yah wah tufani dhara hai,
har zor zulm ki takkar me hadtal hamara nara hai! - Shankar Shailendra