पत्ती को फूल, फूल को गजरा नहीं किया - अहमद कमाल परवाज़ी

पत्ती को फूल, फूल को गजरा नहीं किया ज़ालिम ने पुरे गाँव का दौरा नहीं किया

पत्ती को फूल, फूल को गजरा नहीं किया

पत्ती को फूल, फूल को गजरा नहीं किया
ज़ालिम ने पुरे गाँव का दौरा नहीं किया

गो ख़्वाब हूँ, न कोई सितमयाफ़्ता किसान
पर इसके बाद भी कभी गुस्सा नहीं किया

क़ल्लाश होने आये थे क़ल्लाश हो गये
अच्छा नहीं किया, तो जा, अच्छा नहीं किया

जब से समझ में आया कि हम भी है आदमी
उस दिन से आदमी पे भरोसा नहीं किया

ये रुख नए शिआर की तमहीद तो नहीं
क्या बात है सलाम वग़ैरा नहीं किया - अहमद कमाल परवाज़ी
मायने
सितमयाफ़्ता = पीड़ित, क़ल्लाश = कंगाल, शिआर = व्यवहार, तमहीद = भूमिका


patti ko phool, phool ko gajra nahi kiya

patti ko phool, phool ko gajra nahi kiya
zalim ne pure gaon ka daura nahi kiya

go khwab hun, n koi sitamyafta kisan
par iske bad bhi kabhi gussa nahi kiya

qallash hone aaye the qallash ho gaye
achcha nahi kiya, to ja, achha nai kiya

jab se samajh me aay ki ham bhi hai aadmi
us din e aadmi pe bharosa nhi kiya

ye rukh naye shiaar ki tamheed to nhi
kya baat hai salam waghaira nhi kiya - Ahmad Kamal Parwazi

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