हम मेहनतकश मजदूरों से - डॉ. जियाउर रहमान जाफरी


हम मेहनतकश मजदूरों से जब कोई लुक्मा छीनेगा

हम मेहनतकश मजदूरों से जब कोई लुक्मा छीनेगा
हो जितने ऊंचे आसन पर वो अपना ओहदा छीनेगा

वह जमा हुआ जो आसन है
जो सत्ता और सिंहासन है
जो केवल थोता भाषण है
जो रोके रस्ता शासन है
हम बढे चलेंगे दिल्ली तक क्या मेरा रास्ता छीनेगा
यह बेघर करने वाला ही कल अपनी दुनिया छीनेगा
हम मेहनतकश मजदूरों से.....

ये खेतों की हरियाली में
है मेहनत डाली डाली में
पर जीवन है बदहाली में
न होली न दिवाली में
कानून बनाकर वो मुझसे जब पत्ता पत्ता छीनेगा
हम नहीं हटेंगे रास्ते से वो मेरा बस्ता छीनेगा
हम मेहनतकश मजदूरों से...

हम जुल्मो सितम सब सह लेंगे
हम फूटपाथ पर रह लेंगे
वह रोकें भी तो बह लेंगे
जो हक़ है अपना कह लेंगे
हम देखेंगे कब तक वो मुझसे टुकड़ा टुकड़ा छीनेगा
हम बढ़े हैं हक़ की खातिर तो वह कितना धंधा छीनेगा
हम मेहनतकश मजदूरों से....

यह मुझको जो तड़पाते हैं
सब अन्न हमारे खाते हैं
हम उन तक सब पहुंचाते हैं
हम भूखे पर रह जाते हैं
बेशर्म है हम जैसों से वह जो पैसा पैसा छीनेगा
हम डटे हुए हैं मंजिल तक फिर कब तक दाता छीनेगा
हम मेहनतकश मजदूरों से.....
- डॉ. जियाउर रहमान जाफरी


मजदूरों पर कहे गए कुछ शेर

hum mehnatkash majdooro se jab koi lukma chhinega

hum mehnatkash majdooro se jab koi lukma chhinega
ho jitne unche aasan par wo apna ohda chhinega

wah jama hua jo aasan hai
jo satta aur sinhasan hai
jo keval thotha bhashan hai
jo roke rasta shasan hai
ham badhe chalenge dilli tak, kya mera rasta chhinega
yah beghar karne wala hi kal apni duniya chhinega
ham mehnatkash majdooro se...

ye kheto ki hariyali me
hai mehnat dali dali me
par jeevan hai badhali me
n holi n diwali me
kanun banakar wo mujhse jab patta patta chhinega
ham nahi hatenge raaste se wo mera basta chhinega
ham mehnatkash majdooro se...

ham zulmo sitam sab sah lenge
ham footpath par rah lenge
wo roke bhi to bah lenge
jo haq hai apna kah lenge
ham dekhenge kab tak wo mujhe tukda tukda chhinega
ham badhe hai haq ki khatir to wah kitna dhandha chhinega
ham mehnatkash majdooro se...

yah mujhko jo tadpate hai
sab ann hamare khate hai
ham un tak sab pahuchate hai
besharm hai ham jaiso se wah jo paisa paisa chhinega
ham date hue hai manzil tak phir kab tak data chhinega
ham mehnatkash majdooro se...
- Dr. Zia Ur Rehman Zafri

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