आज़ादी-ए-वतन - मखदूम मोहिउद्दीन

आज़ादी-ए-वतन

कहो हिन्दुस्तान की जय ... कहो हिन्दुस्तान की जय ...
कसम है खुन से सींचे हुए रंगी गुलिस्तां की
कसम है खूने दह्कां की, कसम खूने शहीदां की
ये मुमकिन है के दुनिया के समुन्दर खुश्क हो जाएँ
ये मुमकिन है के दरिया बहते-बहते थक के सो जाएँ
जलाना छोड़ दे दोज़ख के अंगारे ये मुमकिन है
रवानी तर्क कर दे बर्क के धारे ये मुमकिन है
ज़मीने पाक अब नापकियो को ढो नहीं सकती
वतन की शम्मे आज़ादी कभी गुल हो नहीं सकती
कहो हिन्दुस्तान की जय ... कहो हिन्दुस्तान की जय ...

वो हिंदी नौजवां याने अलम्बरदारे आज़ादी

वतन का पासबां वो तेग-ए-जौहरेदारे आज़ादी
वो पाकीज़ा शरारा बिजलियो ने जिसको धोया है
वो अंगारा के जिसमे ज़ीस्त ने खुद को समोया है
वो शम्म-ए-ज़िन्दगानी आँधियों ने जिसको पाला है
एक ऐसी नाव तुफानो ने खुद जिसको संभाला है
वो ठोकर जिससे गीती लरज़ा बरअन्दाम रहती है
कहो हिन्दुस्तान की जय ... कहो हिन्दुस्तान की जय ...

वो धारा जिसके सीने पर अमल की नाव बहती है
छुपी खंमोश आहे शोरे-महशर बनके निकली है
दबी चिंगारियां खुरशीदे खावर बनके निकली है
बदल दी नौजवाने हिंद ने तकदीर जिंदा की
मुजाहिद की नज़र से कट गई ज़ंजीर जिंदा की
कहो हिन्दुस्तान की जय ... कहो हिन्दुस्तान की जय ...
- मखदूम मोहिउद्दीन
मायने
रवानी तर्क = बंद कर दे, बर्क = बिजली, तेग-ए-जौहरेदारे = पराक्रमी की तलवार, ज़ीस्त =जीवन, गीती = संसार, बरअन्दाम = काँप कर सुन्न हो जाती है, शोरे-महशर - क़यामत के दिन का शोर, खांवर = चमकीला सूर्य

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