दो दिन भी किसी से वह बराबर नहीं मिलता
दो दिन भी किसी से वह बराबर नहीं मिलतायह और क़यामत है कि मिलकर नहीं मिलता
क्या पूछते हो बज़्म में क्या ढूंढ रहे हो
लो साफ़ बता दू दिले-मुन्ज्तर नहीं मिलता
क्यों कर न मरे मौत पे बीमारे मोहब्बत
ऐसा मज़ा है की मुकर्रर नहीं मिलता
क्या ईद के दिन भी रमज़ा है की जो साकी
मुझको नहीं मिलता, कोई साग़र नहीं मिलता
महफ़िल में तेरी ईद के दिन मेरे गले से
यह कौन सा फितना है जो उठ कर नहीं मिलता
परवाने का भी वक़्त है, बुलबुल का भी मौसम
मरता हूँ जो माशूक घडी भर नहीं मिलता
हर वक़्त पढ़े जाते है 'दाग' के अशआर
क्या तुमको कोई और सुखनवर नहीं मिलता - दाग़ देहलवी
मायने
दिले-मुन्ज्तर = बैचेन दिल, मुकर्रर = दोबारा, रमज़ा = रोजा, साग़र = प्याला, फितना = लड़ाई / झगडा
do din bhi kisi se wah barabar nahi milta
do din bhi kisi se wah barabar nahi miltayah aur kayamat hai ki milkar nahi milta
kya puchhte ho bazm me kya dhundh rahe ho
lo saaf bata dun dile-muntzar nahi milta
kyo kar n mare mout pe beemare mohbbat
aisa maja hai ki mukarrar nahi milta
kya id ke din bhi ramja hai ki jo saaki
mujhko nahi milta, koi saaghar nahi milta
mahfil me teri eid ke din mere gale se
yah koun sa fitna hai jo uth kar nahi milta
parwane ka bhi waqt hai, bulbul ka bhi mousam
marta hun jo mashuq ghadi bhar nahi milta
har waqt padhe jate hai daagh ke ashaar
kya tumko koi aur sukhanwar nahi milta - Daagh Dehlvi
So beautiful shayri