उठो हिन्द के बाग़बानो उठो
उठो हिन्द के बाग़बानो उठोउठो इंक़िलाबी जवानो उठो
किसानों उठो काम-गारो उठो
नई ज़िंदगी के शरारो उठो
उठो खेलते अपनी ज़ंजीर से
उठो ख़ाक-ए-बंगाल-ओ-कश्मीर से
उठो वादी ओ दश्त ओ कोहसार से
उठो सिंध ओ पंजाब ओ मल्बार से
उठो मालवे और मेवात से
महाराष्ट्र और गुजरात से
अवध के चमन से चहकते उठो
गुलों की तरह से महकते उठो
उठो खुल गया परचम-ए-इंक़लाब
निकलता है जिस तरह से आफ़्ताब
उठो जैसे दरिया में उठती है मौज
उठो जैसे आँधी की बढ़ती है फ़ौज
उठो बर्क़ की तरह हँसते हुए
कड़कते गरजते बरसते हुए
ग़ुलामी की ज़ंजीर को तोड़ दो
ज़माने की रफ़्तार को मोड़ दो- अली सरदार जाफ़री
utho hind ke baghbano utho
utho hind ke baghbano uthoutho inqilabi jawano utho
kisano utho kam-garo utho
nai zindgi ke sharao utho
utho khelte apni zanzeer se
utho khak-e-bangal-o-kashmir se
utho wadi o dahshat o kohsar se
utho sindh o punjab o malbar se
utho malwe aur Mewat se
Maharashtra aur Gujarat se
awadh ke chaman se chakate utho
gulo ki tarah mahkate utho
utho khul gaya parcham-e-inqlab
niklata jis tarah se aaftab
utho jaise dariya me uthti hai mouj
utho jaise aandhi ki badhti hai fouz
utho barq ki tarah haste hue
kadkate garjate barsate hue
gulami ki zazeer ko tod do
zamane ki raftaar ko mod do - Ali Sardar Jafri
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 27 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
धन्यवाद
वाह
धन्यवाद
बहुत ख़ूब !
सरदार जाफ़री की ये नज़्म दिल में आज भी जोश भर देती है. लेकिन हर तरह की गुलामी की ज़ंजीरें तोड़ने में और ज़माने की रफ़्तार को मोड़ने में सबसे बड़ी रुकावट हमारे नेता है. इन्हें दबाए बिना न तो हम उठेंगे और नण ण ही वतन उठेगा.
गोपेश जी बिलकुल सही कहा आपने, हर तरह की जंजीरे तोड़ने में सबसे बड़ी रुकावट हमारे अपने चुने हुए नेता ही है और अपने स्वार्थ के लिए हमारी बेडियो को ही उपयोग में लाते है |