इस दास्ताँ को फिर से नया कोई मोड़ दे - वीरेन्द्र खरे अकेला

इस दास्ताँ को फिर से नया कोई मोड़ दे टूटा हुआ हूँ पहले से कुछ और तोड़ दे - Virendra Khare Akela

इस दास्ताँ को फिर से नया कोई मोड़ दे

इस दास्ताँ को फिर से नया कोई मोड़ दे
टूटा हुआ हूँ पहले से कुछ और तोड़ दे

अब देके ज़ख्म मेरे सितमगर खड़ा है क्यों
मिर्ची भुरक दे ज़ख्म पे नीबू निचोड़ दे

बर्बाद हम हुए कि तेरे मन की हो गई
अब जा के नारियल किसी मन्दिर में फोड़ दे

उकता गया क़फ़स में है सय्याद अब तो दिल
ऐसा न कर कि तू मेरी गर्दन मरोड़ दे

तुझको भी पत्थरों से रहम की उमीद है
नाहक़ पटक पटक के न सर अपना फोड़ दे

क़ातिल ही ऐ अकेला अचानक पलट गया
मैंने कहाँ कहा था मुझे ज़िन्दा छोड़ दे - वीरेन्द्र खरे अकेला


is dastaan ko phir se naya koi mod de

is dastaan ko phir se naya koi mod de
tuta hua hun pahle se kuch aur tod de

ab deke zakhm mere sitamgar khada hai kyo
mirchi bhurak de, zakhm pe nimbu nichod de

barbaad ham hue ki tere man ki ho gayi
ab ja ke nariyal kisi mandir me phod de

ukta gaya kafas me hai sayyad ab to dil
aisa n kar ki tu meri gardan marod de

tujhko bhi pattharo se raham ki ummid hai
nahak patak patak ke n sar apna phod de

qatil hi ae "Akela" achanak palat gaya
maine kahaN kaha tha mujhe zinda chhod de - Virendra Khare "Akela"

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