Alif Laila - 57 सीदी नोमान की कहानी

Alif Laila - 57 सीदी नोमान की कहानी

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सीदी नोमान की कहानी Sidi Noman ki Kahani पिछली कहानी : Alif Laila - 56 अंधे बाबा अब्दुल्ला की कहानी - अलिफ लैला कहानी सूची भिखारी की कहा...

Alif Laila सीदी नोमान की कहानी | Sidi Noman ki Kahani

सीदी नोमान की कहानी
Sidi Noman ki Kahani

पिछली कहानी : Alif Laila - 56 अंधे बाबा अब्दुल्ला की कहानी - अलिफ लैला

कहानी सूची

भिखारी की कहानी सुनने के बाद खलीफा ने बराबर घोड़ी दौड़ानेवाले पर ध्यान दिया और उससे पूछा कि तुम्हारा क्या नाम है। उसने अपना नाम सीदी नोमान बताया। खलीफा ने कहा, मैंने बहुत-से घुड़सवारों और साईसों को देखा है कि वह घुड़सवारी सिखाने या घोड़े को सिखाने में बहुत श्रम करते हैं। मैंने स्वयं भी बहुत-से घोड़ों को फेरा है लेकिन तुम्हारी तरह घोड़ी दौड़ाते मैंने किसी को नहीं देखा। तुम्हारी घोड़ी दौड़ती चली जाती थी फिर भी तुम उसे बराबर चाबुक मारे जा रहे थे। सभी को तुम्हारे इस व्यवहार पर आश्चर्य हो रहा था। किंतु सबसे अधिक ताज्जुब मुझे ही हो रहा था। इसलिए मैंने कल उस जगह खड़े लोगों से तुम्हारे इस बर्ताव का कारण पूछा था किंतु किसी को भी पता नहीं था कि तुम ऐसा क्यों कर रहे हो तुम सच-सच सारा हाल बताओ।

सीदी नोमान के चेहरे का रंग उड़ गया। उसने समझा कि खलीफा मेरी हरकत से बहुत नाराज है और न मालूम क्या सजा देगा। वह यह भी समझ गया कि खलीफा को उसका रहस्य जानने की अत्यंत प्रबल इच्छा है और बगैर पूरी बात बताए उसे छुटकारा नहीं मिल सकता। फिर भी भय के कारण उसकी जबान बंद हो गई थी और वह मूर्तिवत निश्चल खड़ा था। खलीफा ने यह देख कर कहा, सीदी नोमान, डरो मत। मैं तुम से मित्र भाव से यह बात पूछ रहा हूँ। अगर तुमसे कोई अपराध भी हुआ है तो मैंने अभी से तुम्हें उसके लिए क्षमा कर दिया। अब तुम निर्भय हो कर अपनी बात कहो।

सीदी नोमान को यह सुन कर ढाँढ़स हुआ। वह हाथ जोड़ कर बोला। संसार के स्वामी, आपकी आज्ञानुसार मैं अपनी पूरी कहानी आपके सम्मुख रखता हूँ। मैंने किसी जाति या किसी धर्म के नियमों का उल्लंघन नहीं किया। फिर भी यदि मेरा कोई अपराध सिद्ध हो तो मुझे निःसंदेह दंड मिले। मैं अपनी घोड़ी के प्रति जो कठोरता बरतता हूँ उससे आपको बुरा लगा और घोड़ी पर आपको दया आई। किंतु जब इसकी कहानी सुनेंगे तो आप भी इस नतीजे पर पहुँचेंगे कि यह दंड उसके लिए कम है।

यह कहने के बाद सीदी नोमान ने अपनी कहानी शुरू की। उसने कहा कि मेरे माता-पिता की मृत्यु के बाद मुझे उत्तराधिकार में इतना धन मिला जो मेरे जीवन भर के लिए काफी था। मैं बड़े आराम से गुजारा कर रहा था और मुझे किसी बात की चिंता नहीं थी। मेरी तरुणावस्था थी इस लिए स्वभावतः ही मेरी इच्छा विवाह करने की हुई। भगवान की ऐसी इच्छा न थी कि मुझे सुगृहणी मिले। मैंने एक स्त्री से अनिंद्य सौंदर्य को देख कर विवाह किया। आप जानते ही है कि हमारी जात में पहले से लड़की को देख-परख कर विवाह करने का रिवाज नहीं है। इसीलिए हमारे लिए उचित है कि मृदुल या कर्कशा जैसी स्त्री भाग्य से मिले उसी पर संतोष करना चाहिए और उसके साथ प्रसन्नतापूर्वक निर्वाह करना चाहिए। किंतु हर बात की एक सीमा होती है और ऐसी स्थितियाँ भी आ जाती हैं कि एक दिन के लिए भी निर्वाह नहीं होता।

मैं अपनी पत्नी के अनूप रूप को देख कर बड़ा प्रसन्न था किंतु दूसरे दिन ही से उसकी कुत्सितता का हाल खुलना शुरू हो गया। सुहागरात के दूसरे दिन मैं दिन का भोजन करने बैठा तो मैंने अपनी पत्नी को भी साथ खाने के लिए बुलाया। हमारे सामने पुलाव था। मैं अपने समाज की रीति के अनुसार चम्मच से उठा-उठा कर पुलाव खा रहा था किंतु मेरी पत्नी कान खोदने की सलाई से चावल का एक एक दाना उठा कर खाने लगी। मुझे यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ। मैंने कहा, प्यारी, क्या तुम्हारे मायके में इसी तरह से लोग खाना खाया करते हैं। जितनी देर तुमने भोजन किया है उसमें तुमने दस-पंद्रह चावलों से अधिक न खाया होगा। तुम दाने गिन-गिन कर क्यों खा रही हो? क्या तुम किफायत के लिए ऐसा कर रही हो? अगर ऐसा है तो तुम किफायत का ख्याल छोड़ दो और जैसे मैं खुल कर खा रहा हूँ वैसे ही तुम भी खाओ। मुझे भगवान ने इतना दे रखा है कि तुम्हें पेट भर खाना खिला सकूँ।

उसने मेरी बात का कोई उत्तर न दिया। पूर्ववत ही एक-एक दाना उठा कर खाती रही, बल्कि मुझे खिजाने के लिए एक-एक दाना भी बहुत देर में उठाने लगी। जब हमारे सामने शीरमाल और बाकर खानी रोटियाँ आईं तो उसने एक रोटी के छिलके का बहुत ही छोटा टुकड़ा तोड़ कर बड़े नखरे से मुँह में रखा। जितना खाना कुल मिला कर उसने खाया वह एक चिड़िया का पेट भरने को भी काफी नहीं था।

मुझे उसकी अल्प भोजन की जिद पर आश्चर्य हुआ किंतु मैंने सोचा कि यह मेरे साथ पहली बार खाना खा रही है और किसी पुरुष के साथ खाने का पहला मौका होने के कारण लजा रही है, जब इसे मेरे साथ खाने की आदत हो जाएगी तो खुल कर खाएगी। मैंने यह भी सोचा कि हो सकता है कि मेरे साथ खाने के पहले यह कोई चीज अधिक मात्रा में खा चुकी हो और इस समय इसके पेट में जगह न हो। एक विचार यह भी आया कि शायद इसे अकेले ही खाने की आदत हो। यह सब सोच कर मैंने उससे कुछ न कहा और वह पूर्ववत ही नाम चार के लिए खाती रही। खाने के बाद मैं घूमने-फिरने चला गया और यह बात बिल्कुल भूल गया कि मेरी पत्नी कितनी अल्पभक्षी है।

किंतु शाम के खाने पर भी उसका यह हाल रहा। बाद में भी कई दिनों तक मैंने खाने के मामले में उसका यही रवैया देखा तो मुझे यह आश्चर्य हुआ कि यह स्त्री इतना कम खाने पर भी न केवल जीवित है अपितु स्वस्थ भी है। एक दिन हम दोनों सोने के लिए लेटे तो यह मुझे सोता जान कर सावधानी से उठी। मैं आँखें बंद किए था किंतु जाग रहा था। मैं जान-बूझ कर खर्राटे भरने लगा। वह उठ कर अंदर गई और कपड़े पहन कर घर से बाहर निकली। मैं भी अपने कपड़ों को कंधे पर डाल कर चुपके-चुपके उसके पीछे चल दिया। बाहर चाँदनी थी इसलिए उसका पीछा करना मुश्किल न हुआ। वह चलते-चलते हमारे घर के समीपवर्ती कब्रिस्तान में पहुँची। मैं ओट में खड़ा हो कर देखने लगा। मैंने देखा कि मेरी पत्नी एक नरभक्षी जंगली के साथ बैठी है और उससे प्रसन्नतापूर्वक कुछ बातें कर रही है वे बातें मेरी समझ में नहीं आईं क्योंकि मैं दूर खड़ा हुआ था।

दीनबंधु, आपको मालूम ही है कि नरभक्षी जंगली रास्ते में इक्का-दुक्का मुसाफिर को देख कर उसे मार डालते हैं और खा लेते हैं। जब उन्हें कोई मुसाफिर नहीं मिलता तो वे कब्रिस्तान में चले जाते हैं और नए दफन होनेवाले मुर्दों को खाते हैं। मैं अपनी पत्नी को ऐसे जंगली के पास बैठे देख कर घबराया और समझ गया कि मेरी पत्नी भी इसी जाति की है। इन दोनों ने मिल कर उसी दिन बनी हुई एक नई कब्र खोदी और उसमें से लाश निकाल कर बाहर लाए और उसे काट-काट कर खाने लगे। वे बातें भी करते जाते थे किंतु मेरा भय से बुरा हाल था और मैं थर-थर काँप रहा था। जब वे दोनों पूरी लाश का मांस खा चुके तो उन्होंने उसकी हड्डियों को कब्र में वापस डाला और कब्र पर मिट्टी इस तरह चढ़ा दी जिससे मालूम हो कि कब्र खोदी ही नहीं गई थी।

मैं उन दोनों को वहीं छोड़ कर घर में आ गया और दरवाजा खुला छोड़ कर पलंग पर जा लेटा और सोता हुआ दिखने लगा। कुछ देर में मेरी पत्नी आई। उसने अंदर के कमरे में जा कर वस्त्र बदले और सावधानी से मेरे पलंग पर लेट गई। उसके बर्ताव से स्पष्ट था कि वह यह नहीं जानती कि मैं उसके पीछे पीछे जा कर उसका सारा हाल देख आया हूँ। मुझे ऐसी मुर्दाखोर स्त्री के साथ सोने में बड़ी घृणा उत्पन्न हुई और मैं उससे बच कर ही लेटा रहा और सो गया। सुबह मसजिद के मुल्ला की अजान सुन कर मैं उठा। नित्य कर्म से निवृत्त हो कर मैंने स्नान किया फिर मसजिद में जा कर दूसरी नमाज पढ़ी। इसके बाद मैं बागों की सैर करने चला गया। टहलते-टहलते मैं सोचने लगा कि किस प्रकार अपनी स्त्री की यह गंदी आदत छुड़ाऊँ। घर आ कर भी मैं यही सोचता रहा।

दोपहर के भोजन के समय उसने पुराना क्रम जारी रखा यानि एक-एक दाना उठा कर खाने लगी। मैंने कहा, रानी, अगर तुम्हें कोई विशेष वस्तु पसंद न हो तो दूसरी मँगवा लो, यहाँ तो रसोई में सब कुछ है। फिर हर रोज खाने में भी बदल-बदल कर बनाए जाते हैं, इसलिए एकरसता का सवाल भी नहीं है। अगर तुम्हें इन खानों में कुछ भी पसंद न हो तो अपने पसंद की जो भी चीज जैसे भी चाहो बनवा लो या बना लो। मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ कि क्या दुनिया में मुर्दे के मांस से, जिसे तुम स्वाद से खाया करती हो, अधिक स्वादिष्ट भोजन कोई नहीं है?

मेरी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि वह समझ गई कि मैंने उसका शवभक्षण का भेद जान लिया है। क्रोध के मारे उसका चेहरा लाल हो गया, उसकी आँखें उभर आईं और उसके मुँह से झाग निकलने लगा। उसका क्रोध देख कर मैं भयभीत हो गया कि न जाने यह दुष्ट अब क्या करे। उसने दाँत पीसते हुए कहा, नीच, दुष्ट, कमीने, तूने छुप कर मेरा रहस्य जान लिया। लेकिन तू अब इस योग्य नहीं रहेगा कि किसी से वह भेद कह सके। यह कह कर उसने पास रखे हुए गिलास के जल में उँगलियाँ डुबोईं और कुछ बोलने लगी जिसे मैं समझ न सका। फिर उसने उँगलियों का पानी मुझ पर छिड़क कर कहा, कुत्ता बन जा। उसके इस शब्दों के साथ ही मैं कुत्ता बन गया।

वह एक लकड़ी उठा कर मुझे मारने लगी। वह शायद मुझे इतना मारती कि मैं मर ही जाता। इसलिए मैं जान बचा कर भागा और सारे घर में दौड़ने लगा कि शायद कहीं बचने की जगह मिल जाए। वह लकड़ी लिए हुए मुझे सारे घर में खदेड़ती और पीटती रही। जब थक गई तो उसने दरवाजा खोल दिया और मैं दर्द से चिल्लाता हुआ घर के बाहर भाग गया ताकि उसकी पिटाई से बच सकूँ।

बाहर आ कर भी मुझे चैन न मिला। मुहल्ले के कुत्ते मुझे देख कर भौंकने लगे और मुझे पकड़ कर झिंझोड़ने भँभोड़ने लगे। मैं बाजार में भाग कर गया और एक दुकान में, जहाँ बकरी के सिरी पाए और जीभ बिकती थी, घुस कर एक कोने में छुप गया। दुकानदार को मुझ पर दया आई और उसने मेरे पीछे पड़े हुए कुत्तों को भगा दिया। मैं रात भर वहीं पड़ा रहा। सुबह दुकानदार सिरी पाए लेने गया और बहुत-सा माल ले कर अपनी दुकान में रखा। मांस की गंध पाकर बहुत-से कुत्ते दुकान के सामने आ गए। मैं भी जा कर उनमें मिल गया। दुकानदार ने देखा कि मैं रात भूखा ही रहा हूँ इसलिए मेरे सामने उसने मांस का एक लोथड़ा डाल दिया। मैं मांस की ओर झुका भी नहीं, दुकानदार के सामने जा कर दुम हिलाने लगा। दुकानदार यह न चाहता था कि मैं हमेशा उसकी दुकान में रहूँ इसलिए उसने एक लकड़ी उठा कर मुझे धमकाया। मैं भाग कर एक नानबाई की दुकान के आगे पहुँचा। वह उस समय भोजन कर रहा था। उसने रोटी का एक टुकड़ा मेरे आगे फेंक दिया। मेरा इरादा उससे खाना माँगने का न था फिर भी मैं कुत्तों की भाँति झपटा और रोटी खाने लगा। फिर उसके आगे जा कर दुम हिलाने लगा। वह मेरा रूप देख कर प्रसन्न हुआ और मुस्कुराने लगा। मैंने समझ लिया कि इसे इस बात में कोई आपत्ति नहीं है कि मैं उसकी दुकान में रहूँ। मैं उसकी दुकान के सामने उसकी ओर मुँह करके बैठ गया।

शाम को जब नानबाई ने दुकान बंद की तो वह मुझे अपने घर ले गया। इसके बाद उसका नियम हो गया कि रात को अपने घर में रखता और दिन में उसकी दुकान के सामने बैठा रहता था। उसे यह देख कर भी बड़ी खुशी हुई कि मैं उसकी अनुमति के बगैर उसके घर के अंदर पाँव नहीं रखता। वह मुझे बहुत प्यार से रखता था और खूब खाने को देता था। मैं भी उसकी ओर ताकता रहता था और उसके इशारे पर ही सब काम किया करता था। उसने मेरा एक नाम भी रख दिया था।

मैं हर जगह अपने नए मालिक के पीछे-पीछे घूमता था और उसे भी मेरा इतना शौक हो गया था कि अगर कभी वह बाहर जाता और उस समय मैं अपने कोने में सो रहा होता तो वह मेरा नया नाम ले कर पुकारता और मैं उसके पास दौड़ कर चला जाता। वह मुझसे तरह-तरह से दिल बहलाया करता था। मैं उसके इशारे पर कभी लेटता कभी बैठता, कभी दो टाँगों पर खड़ा होता, कभी कोई फेंकी हुई चीज उठा लाता। इसी तरह बहुत दिन बीत गए। मेरा मालिक मुझसे और मैं अपने मालिक से बहुत प्रसन्न रहा करते थे और एक-दूसरे का साथ पसंद करते थे।

एक दिन उसकी दुकान में एक स्त्री आई और सामान खरीद कर जब दाम देने लगी तो अच्छे सिक्कों के साथ एक खोटा सिक्का भी मिला कर देने लगी। नानबाई ने खोटा सिक्का उसे फेर कर दिया तो वह तकरार करने लगी। नानबाई ने कहा, तुम मेरी बात नहीं मानती हो। इस सिक्के को तो मेरा कुत्ता भी खोटा कह देगा। यह कह कर उसने मुझे पुकारा। मैं दौड़ कर उसके सामने गया तो उसने उस स्त्री को दिए सभी सिक्के मेरे आगे फेंक दिए और कहा कि इनमें खोटा सिक्का पहचान ले। मैंने सारे सिक्के अलग-अलग किए फिर मैंने उसमें से सारे अच्छे सिक्के एक ओर समेट दिए और खोटे सिक्के पर पंजा रख कर नानबाई की ओर देखने लगा। नानबाई यह देख कर बहुत खुश हुआ। उस स्त्री को भी आश्चर्य हुआ और उसने खोटा सिक्का बदल दिया।

उस स्त्री के जाने के बाद नानबाई ने आसपास के लोगों से कहा कि मेरे कुत्ते को खरे-खोटे सिक्कों की पहचान है। उन्होंने पहले विश्वास न किया और मेरी परीक्षा लेनी चाही। उन्होंने अच्छे सिक्कों में खोटे सिक्के मिला कर मेरे आगे फेंक दिए और देखने लगे कि मुझे खरे-खोटे की पहचान है या नहीं। मैंने उन सिक्कों को देखा और एक-एक करके सारे खोटे सिक्कों पर अपना पंजा रखता चला गया। पड़ोसी दुकानदारों को यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने दूसरे दुकानदारों तथा ग्राहकों से कहा कि फलाने नानबाई के कुत्ते को खरे-खोटे सिक्कों की परख हैं। कुछ ही दिनों में यह समाचार सारे नगर में फैल गया और बहुत-से लोग सिक्कों को परखवाने के लिए नानबाई के पास आने लगे।

अब यह हाल हो गया कि नानबाई के दुकान के आगे सिक्के परखवानेवालों की भीड़ लगने लगी। मैं दिन भर सिक्के परखता रहता। नानबाई का व्यापार चमक उठा क्योंकि सिक्के परखवानेवाले उसी से सौदा लेते थे। आसपास के नानबाई इस बात से जलने लगे और चाहने लगे कि मुझे उड़ा ले जाएँ। इस कारण मेरा मालिक मेरी और अच्छी तरह देखभाल करने लगा।

एक दिन एक स्त्री नानबाई के पास आई और छह अच्छे सिक्कों के साथ एक खोटा सिक्का मिला कर उसे देने लगी। नानबाई के इशारे पर मैंने खोटे सिक्के पर पाँव रख दिया। स्त्री ने स्वीकारा कि सिक्का खोटा है, और उसे बदल दिया। फिर उसने नानबाई की नजर बचा कर मुझे इशारा किया कि उसके साथ उसके घर को जाऊँ। मैं बराबर यह चाहता था कि किसी प्रकार फिर मनुष्य बनूँ। उस स्त्री की निगाहों से मुझे ऐसा लगा कि उसके द्वारा यह बात संभव है। मैं उसकी ओर बराबर देखने लगा। वह अपने घर की ओर चली और कई कदम चल कर वापस लौटी और फिर मुझे अपने साथ आने का इशारा किया। अब मैंने निश्चय कर लिया कि उसके साथ जाऊँ। मैं अपने मालिक नानबाई की नजर बचा कर उसके साथ हो लिया। वह यह देख कर बड़ी प्रसन्न हुई। उसने तुरंत रास्ता बदल दिया जिससे नानबाई मुझे उसके साथ जाता हुआ न देख सके।

वह स्त्री मुझे अपने घर ले गई। मेरे अंदर जाने पर उसने बाहर का दरवाजा बंद कर दिया और मुझे घर के अंदर ले गई। अंदर एक नवयौवना सुंदरी कीमती जरी के वस्त्र पहने बैठी थी। मुझे अंदाजे से लगा कि वह उस स्त्री की पुत्री है जो मुझे बाजार से लाई थी। घर के अंदर बैठी हुई सुंदरी जादू की विद्या में अति प्रवीण थी। जो स्त्री मुझे लाई थी उसने उस सुंदरी से कहा, यही वह कुत्ता है जो खोटे-खरे सिक्कों की पहचान जानता है। मैंने कई दिनों से इसका हाल सुन रखा था। मुझे ऐसा लगा कि यह जन्मजात कुत्ता नहीं है, बल्कि कोई आदमी है जिसे जादू से कुत्ता बना दिया गया है। इसीलिए मैं इसे आज घर ले आई। बेटी, तुम देख कर बताओ कि मेरा अंदाजा ठीक है या नहीं। नवयौवना ने ध्यानपूर्वक मुझे देखा और बोली, अम्मा, तुम ठीक कहती हो, इसे जादू से कुत्ता बनाया गया है। मैं अपनी रमल की पुस्तक देख कर अभी इसका हाल तुम्हें बताती हूँ। यह कह कर वह एक अंदर के कमरे में चली गई।

उसने वापस आ कर एक पानी के बर्तन में हाथ डाल कर मुझ पर पानी छिड़का और बोली, अगर तुझे जादू से कुत्ता बनाया गया है तो फिर से आदमी हो जा। उसके यह कहते ही मैं मनुष्य बन गया। मैंने सुंदरी के पैरों पर गिर कर उसके वस्त्रों को चूमा और कहा, आपने मुझ पर ऐसा अहसान किया है जिसे मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकता। मैं चाहता हूँ कि मैं आपका हमेशा के लिए गुलाम बन जाऊँ। यह कह कर मैंने बताया कि क्यों मेरी पत्नी ने मुझे जादू से कुत्ता बना दिया था और उस सुंदरी की दया भावना की अत्यधिक प्रशंसा करने लगा। उसने कहा, मेरी इतनी प्रशंसा न करो। मैं तुम्हारी स्त्री का हाल विवाह के पहले से जानती हूँ। मुझे यह भी मालूम है कि वह जादू की विद्या में पारंगत है। दरअसल हम दोनों जादू के मामले में एक ही शिक्षिका की शिष्याएँ हैं। पहले मेरी उससे मित्रता थी किंतु उसकी दुष्टता के कारण मैंने उससे मिलना-जुलना छोड़ दिया और उससे घृणा करने लगी। मैंने तुम्हें मनुष्य का शरीर वापस दिलाया है किंतु मैं इतने ही पर बस नहीं करूँगी। तुम्हारे जैसे भले मानस के साथ उसने जो दुष्टता की है उसका दंड मैं उसे अवश्य दिलाऊँगी। मैं तुम्हारे ही हाथों उसे पशु बनवाऊँगी। तुम यहीं ठहरो, मैं अभी आती हूँ।

वह फिर अंदर चली गई। कुछ देर में आई तो उसके हाथ में एक बोतल और एक प्याला था। उसने मुझसे कहा, सीदी नोमान, मैंने अभी अपनी रमल पुस्तक देख कर मालूम किया है कि तुम्हारी पत्नी इस समय तुम्हारे घर में नहीं है। तुम्हें घर से निकालने के बाद उसने तुम्हारे नौकरों से कहा कि मेरा पति किसी काम से बाहर चला गया और यह भी कहा कि दरवाजा खुला पा कर एक कुत्ता घर में घुस आया था, उसे मैंने उसे मार कर भगा दिया। अब तुम तुरंत ही अपनी स्त्री के वापस आने के पहले अपने घर जाओ। इस बोतल को अलग न करना और अपनी पत्नी की प्रतीक्षा करना। वह जल्दी ही घर आएगी। तुम्हें देख कर वह परेशान होगी और भागने की कोशिश करेगी। तुम इस बोतल का पानी प्याले में डालना और इसमें से कुछ उस पर छिड़क कर यह शब्द जो मैं तुम्हें बताती हूँ पढ़ देना। इससे अधिक कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। तुम इसी से मेरे जादू का कमाल देखोगे।

मैं उसका सिखाया हुआ मंत्र अच्छी तरह याद करके अपने घर आया। सब कुछ वैसा ही हुआ जैसा उस सुंदरी ने कहा था। मेरी पत्नी शीघ्र ही वापस आई और मुझे देखा तो परेशान हो कर भागने लगी। मैंने तुरंत ही बोतल का पानी प्याले में डाल कर उस पर छिड़का और मंत्र पढ़ दिया।

इससे वह घोड़ी बन गई। वह स्त्री वही घोड़ी है जिसे आपने कल देखा था। मैंने उसे घोड़ी के रूप में देखा तो आश्चर्य करने लगा। फिर मुझे उस सुंदरी के शब्द याद आए। मैंने घोड़ी को ले जा कर घुड़साल में बाँध दिया और उसे इतने चाबुक मारे कि मारते-मारते थक गया।

अपना वृत्तांत पूरा करके सीदी नोमान बोला, सरकार, अब यह कहानी सुनने के बाद मुझे क्षमा करेंगे और यह स्वीकार करेंगे कि मैं घोड़ी बनी हुई अपनी स्त्री को जो दंड देता हूँ वह उचित है। अगर अब भी आप मेरा कार्य अनुचित समझें तो जो चाहे वह सजा दें। खलीफा ने कहा, तुम्हारी कहानी वास्तव में विचित्र है और तुम्हारी स्त्री ने जो अपराध किया है उसे देखते हुए उसका दंड कम ही है। किंतु मैं तुम से पूछता हूँ कि क्या तुम आजीवन उसे इसी तरह मारते रहोगे? तुम ऐसा क्यों नहीं करते कि उस सुंदरी के पास जा कर फिर से अपनी पत्नी को स्त्री रूप दिलवाओ। सीदी नोमान ने कहा, आपकी आज्ञा शिरोधार्य किंतु मेरी पत्नी फिर दुष्टता पर उतरी तो क्या करूँगा? खलीफा ने कहा, तुम ठीक कहते हो। उसे ऐसा ही रहने दो और जब तक चाहो उसे इसी तरह सजा देते रहो।

फिर खलीफा ने तीसरे आदमी यानी ख्वाजा हसन हब्बाल की ओर दृष्टि की और कहा, ख्वाजा हसन, कल मैंने तुम्हारी गली में जा कर तुम्हारा महल देखा। मैं उससे बहुत प्रभावित हुआ। फिर मैंने वहाँ के लोगों से पूछा कि यह विराट भवन किसका है तो तुम्हारे पड़ोसियों ने तुम्हारा नाम लिया।

साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि तुम्हारा पेशा रस्सी बनाने का है। इस पेशे में तो अधिक आय नहीं होती। तुम्हारे पड़ोसियों का भी कहना है कि कुछ समय पूर्व तक तुम कठिनाई से जीवन निर्वाह करते थे। तुम्हारे पड़ोसी तुम्हारी इस बात में बड़ी प्रशंसा करते हैं कि तुम अपने पुराने जीवन को नहीं भूले और अपने धन को व्यर्थ खर्च नहीं करते हो। मैं यह सब सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ कि मेरे राज्य में तुम जैसे भले आदमी रहते हैं। फिर भी मैं तुमसे यह पूछना चाहता हूँ कि तुमने इतना धन किस प्रकार प्राप्त किया। तुम मेरे प्रश्न से कुछ भयभीत न होना। मुझे तुम्हारी धन-संपत्ति से कुछ लेना देना नहीं है। तुम्हें यह धन भगवान ने दिया है। तुम इसका जैसा चाहो उपयोग करो। भगवान तुम्हारी संपत्ति और बढ़ाए। मुझे केवल यह जानने की उत्कंठा है कि तुम्हारे जैसे निर्धन व्यक्ति को इतनी संपदा मिली कैसे।

ख्वाजा हसन ने सिंहासन के पाए को चूम कर कहा, भगवान आपको हमेशा सही- सलामत रखे। मैं सारा वृत्तांत सच्चा-सच्चा कहता हूँ। भगवान जानते हैं कि मैंने कभी कोई बात ऐसी नहीं की जिसे हमारे इस्लाम धर्म या मेरी जाति-बिरादरी ने वर्जित किया हो। मुझे जो कुछ मिला है भगवान की कृपा ही से मिला है। अब आपकी आज्ञानुसार अपना हाल कहता हूँ।

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Alif Laila - 57 सीदी नोमान की कहानी
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