शिकार को निकला शेर - सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

शिकार को निकला शेर - सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला |  एक शेर एक रोज जंगल में शिकार के लिए निकला। उसके साथ एक गधा और कुछ दूसरे जानवर थे। सब के बीच मे यह मत ठहरा कि शिकार का बराबर हिस्सा लिया जाएगा।

शिकार को निकला शेर


एक शेर एक रोज जंगल में शिकार के लिए निकला। उसके साथ एक गधा और कुछ दूसरे जानवर थे। सब के बीच मे यह मत ठहरा कि शिकार का बराबर हिस्सा लिया जाएगा। आखिर एक हिरण पकड़ा और मारा गया। जब साथ के जानवर हिस्सा लगाने चले, शेर ने धक्के मारकर उन्हें अलग कर दिया और कुल हिस्से छाप बैठा।

उसने गुर्राकर कहा, "बस, हाथ हटा लो। यह हिस्सा मेरा है, क्योंकि मैं जंगल का राजा हूँ और यह हिस्सा इसलिए मेरा है, क्योंकि मैं इसे लेना चाहता हूँ, और यह इसलिए कि मैंने बड़ी मेहनत की है। और एक चौथे हिस्से के लिए तुम्हें मुझसे लड़ना होगा, अगर तुम इसे लेना चाहोगे।" खैर, उसके साथी न तो कुछ कह सकते थे, न कर सकते थे; जैसा अकसर होता है, शक्ति सत्य पर विजय पाती है, वैसा ही हुआ।

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