मै समझता था कि अब रो न सकूंगा ऐ जोश
मै समझता था कि अब रो न सकूंगा ऐ जोशदौलते-सब्र कभी खो न सकूंगा ऐ जोश
इश्क की छाव भी देखूंगा तो कतराऊगा
काबा-ए-अक्ल से बाहर न कभी जाउगा
आबरू इश्क के बाजार में खोते है कही ?
जिन्से-हिकमत के खरीदार भी रोते है कही ?
अब न तडपूगा कभी इश्क के अफसानों पर
अब जो रोऊंगा तो रौंदे हुए इंसानों पर
अब तमन्ना पे न अरमान पे दिल धड्केगा
अब जो धड़केगा तो इंसान पे दिल धड्केगा
चुभ सकेगा न मेरे दिल में इशारा कोई
नौके-मिज़गा पे न दमकेगा सितारा कोई
अब न याद आएगा रगे-लबो-रुखसार कभी
दिल में गूंजेगी न पाजेब की झंकार कभी
अब कभी मुझे न रूठा हुआ दिल बोलेगा
अब तसव्वुर किसी घूँघट के न पट खोलेगा
अब पयाम आएगा फूलो का न गुलशन से कोई
अब न झाकेगा माहो-साल के रोजन से कोई
याद आएगी न भूली हुई बाते मुझको
अब पुकारेंगी न डूबी हुई राते मुझको
लेकिन अफ़सोस कि ये संगे-यकीं टूट गया
दामने-सब्र मेरे हाथ से फिर छूट गया
जल उठी रूह में फिर शमा सनमखाने की
खाके परवाना में आग आ गई परवाने की
जिस से राते कभी रोशन थी वो जुगनू जागा
चश्मे-खुबस्ता में सोया हुआ आंसू जागा
अक्ल की धुप ढली, इश्क के तारे निकले
बर्फ महताब से पिघली तो शरारे निकले
कान में दौरे-मुहब्बत के फ़साने चहके
सर पे बिछड़े हुए लम्हों के फ़साने चहके
जिनसे खिलती थी खंदो-खाल की कलिया दिल की
नौजवानी की उभर आई वो गलिया दिल की
दिल की चोटों को हवाओ ने दबाकर देखा
फिर जवानी ने मुझे आँख उठाकर देखा
इश्क के तीर मुहब्बत के वतीरे उभरे
दिल में डूबी हुई यादो के जंजीरे उभरे
ताजा होठो का जगाती हुई जादू आई
कमसिनो के नफ़्से-खाम की खुशबू आई
क्या कहू, चर्ख से क्या बारिशे-तनवीर हुई
किन लिहाफो की महक आके बगलगीर हुई
जिनकी लहरों ने दिखाया था किनारा मुझको
फिर उन्ही चांदनी रातो ने पुकारा मुझको
नाला फिर रात को साबितो सय्यार गया
हम तो समझे थे कि ऐ जोश ये आजार गया - जोश मलीहाबादी
मायने
दौलते-सब्र = धेर्य का धन, काबा-ए-अक्ल = बुद्धि रूपी तीर्थ, जिन्से-हिकमत = दार्शनिक विचार रूपी वस्तु, रगे-लबो-रुखसार = होठो और गालो का रंग, तसव्वुर = कल्पना, माहो-साल के = महीनो सालो के, रोज़न = छिद्र, संगे-यकीं = विश्वाश रूपी पत्थर, दामने-सब्र = धेर्य का आँचल, चश्मे-खुम्बस्ता = ऐसी आंव जिसमे रक्त/खून जमा हो, महताब = चाँद, शरारे = चिनगारिया, खंदो-खाल = नयन-नाग, वतीरे = ढंग, जंजीरे = टापू, कमसिनो = कम उम्र के, नफ़्से-खाम = कच्चे श्वास, चर्ख = आकाश, बारिशे-तनवीर=प्रकाश की वर्षा, नाला = अंतर्नाद, आज़ार = मुसीबत
mai samjhata tha ki ab ro na sakunga ae josh
mai samjhata tha ki ab ro na sakunga ae joshdoulte-sabr kabhi kho n sakunga ae josh
ishq ki chhav bhi dekhunga to katraunga
kaaba-e-aql se baahar n kabhi jaunga
aabru ishq ke baazar me khote hai kahi?
zinse-hiqmat ke kharidar bhi rote hai kahi?
ab n tadpunga kabhi ishq ke afsano par
ab jo rounga to ronde hue insano par
ab tamnna pe n armaan pe dil dhadkenga
ab jo dhadkenga to insaan pe dil dhadkega
chubh sakega n mere dil me ishara koi
nouke-mizga pe n damkega sitara koi
ab n yaad aayega rage-labo-rukhsaar kabhi
dil me gunjega n pajeb ki jhankaar kabhi
ab kabhi mujhe n rutha hua dil bolega
ab tasvvur kisi ghunghat ke n pat kholega
ab payaam aayega phoolo ka na gulshan se koi
ab n jhakega maaho-saal ke rojan se koi
yaad aayegi n bhuli hui baate mujhko
ab pukarengi n dubi hui raate mujhko
lekin afsos ki ye sange-yakeeN tut gaya
damne-sabr mere hath se phir chhut gaya
jal uthi rooh me phir shama sanamkhane ki
khake-parvana me aag aa gayi parwane ki
jis se raate kabhi roshan thi wo jugnu jaaga
chashme-khubasta me soya hua aansu jaaga
aqal ki dhoop dhali, ishq ke taare nikle
barf mahtaab se pighli to sharare nikle
kaan me doure-mohbbat ke fasane chahke
sar pe bichhde hue lamho ke fasane chahke
jinse khilti thi khando-khaal ki kaliya dil ki
noujawani ki ubhar aai wo galiya dil ki
dil kee choto ko hawao ne dabakar dekha
phir jawani ne mujhe aankh uthakar dekha
ishq ke teer muhbbat ke wateere ubhre
dil me dubi hui yaado ke janzeere ubhre
taja hotho ka jagati hui jaadu aai
kamsino ke nafse-khaam ki khushboo aai
kya kahu, charkh se kya barishe-tanveer hui
kin lihafo ki mahak aake bagalgeer hui
jinki lahro ne dikhaya tha kinara mujhko
phir unhi chandni raato ne pukara mujhko
nala phir raat ko sabito-sayyar gaya
ham to samjhe the ki ae Josh ye aazar gaya - Josh Malihabadi