रोज़ा रखो या न रखो माहे- रमज़ान में
रोज़ा रखो या न रखो माहे- रमज़ान में,दिल की बुराई तो तजो माहे -रमज़ान में।
ख़ुशियां ख़ूब मना ली जीवन में गर तो,
ग़ैरों के दुख को हरो माहे-रमज़ान में।
कि बड़ों के आगे झुकना वाजिब है पर,
सच के ख़ातिर न झुको माहे -रमज़ान में।
बेश डरो अपने माबूद से जीवन भर,
झूठ फ़रेब से भी डरो माहे-रमज़ान में।
हर ज़ीस्त ख़ुदा का है, हर ज़ीस्त ख़ुदा जब,
ज़ीस्ते ख़ुदा से न लड़ो माहे-रमज़ान में।
पाप की टोकरी तुम सदियों ढो चुके, तो बस,
नेकी की फ़स्ल रखो माहे-रमज़ान में।
उलजन, फ़िसलन, विचलन, संशय बंद भी हो,
कि सबल किरदार करो माहे-रमज़ान में।
बीबी बच्चों से बड़ा जग में शय ना इक,
वापस घर लौट चलो माहे-रमज़ान में। - डॉ.संजय दानी "कंसल"
मायने
तजो = त्यागना, माहे-रमजान = रमजान का महीना, माबूद (अरबी) = जिस की इबादत की जाए, उपास्य, ज़ीस्त = मौजूद/अस्तित्व, जिस्ते-खुदा = मौजूद खुदा
परिचयडॉ.संजय दानी "कंसल" पेशे से चिकित्सक हैं और साथ ही साथ उर्दू शायरी भी करते हैं। आपका एक ब्लॉग भी है | आप मुख्यत: गज़ल और कहानियॉं लिखते हैं, वर्तमान में आप दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति के अध्यक्ष एवं विभिन्न साहित्यिक व अदबी संस्थाओं से जुड़े हुए हैं।
roza rakho ya na rakho maaahe-ramjaan me
roza rakho ya na rakho maaahe-ramjaan medil ki burai to tazo maahe-ramjaan me
khushiyaN khoob mana li jeevan me gar to
gairo ke dukh ko haro maahe-ramjaan me
ki bado ke aage jhukna waajib hai par,
sach ke khatir n jhuko maahe-ramjaan me
besh daro apne mabud se jeevan bhar
jhuth fareb se bhi daro maahe-ramjaan me
har zist khuda ka hai, har zist khuda jab,
ziste khuda se na lado maahe-ramjaan me
paap ki tokri tum sadiyo dho chuke, to bas,
naiki ki fasal rakho maahe-ramjaan me
uljhan, fislan, vichlan, sanshay band bhi ho
ki sabal kirdar karo maahe-ramjaan me
bibi bachcho se bada jag me shay na ik
waapas ghar lout chalo maahe-ramjaan me - Dr. Sanjay Dani "Kansal"