वे आ रहे है
"वे आ रहें हैं"सत्य को प्रतिष्ठित बनाने
मार्ग पर तुमको चलाने
चक्षुओं से, चुनके काँटें
हृदय से अपने लगाने
वे आ रहें हैं.........
आसमां के पार से
स्वयं फंसे, मझधार से
इस धरा पर,धर्म रक्षक
हमको बुलाने !
वे आ रहें हैं.........
शंखनादों का समूह
विजयश्री, समेटे हुए
विश्वास रथ,वे हो सवार
सत्य ध्वज फहरा रहें
वे आ रहें हैं.........
सुन ! पथिक
मत हो ! निराश
कर, अपने तूं
कर ! सपाट
देख ! वो ललचा रहें
वे आ रहें हैं.........
साहस थोड़ा,तूं जुटा
प्रत्यंचा पर बाण चढ़ा !
निज-पर मिथ्या,समस्त भुला
अधर्म केवल, लक्ष्य बना !
अत्याचार बरपा रहें
वे आ रहें हैं.........
तूं तो,धर्म का दूत है
सत्य तेरा रूप है
भरा शौर्य,मस्तक है तेरे
आशा का प्रतिरूप है
तनिक देख ! न्याय वो खा रहें
वे आ रहें हैं.........
इच्छाओं को अग्नि दे !
सिर चढ़ीं हैं, बोलतीं
ताण्डव करतीं वेदनायें
अस्मिता ले जा रहें
वे आ रहें हैं......... - ध्रुव सिंह "एकलव्य"
we aa rahe hai
we aa rahe haisaty ko pratishthit banae
marg par tumko chalane
chakshuo se, chunke kante
hridya se apne lagane
we aa rahe hai ...
aasmaan ke paar se
savym fase, majhdar se
is dhara par, dharm rakshak
hamko bulane!
we aa rahe hai ...
shankhnado ka samuh
vijayshree, samete hue
vishwas rath, we ho sawar
satya dhavj fahra rahe
we aa rahe hai ...
sun! pathik
mat ho ! nirash
kar, apne tu
kar ! sapat
dekh ! wo lalcha rahe
we aa rahe hai ...
sahas thoda tu juta
pratyncha par baan chada !
nij -par mithya, samst bhula
adharm kewal, lakshya bana
atyachar barpa rahe
we aa rahe hai ...
tu to dharm ka vrat hai
bhara shourya, mastak hai tere
aasha ka pratiroop hai
tanik dekh ! nyay wo kha rahe
we aa rahe hai ...
ichchao ko agni de
sir chadi, bolti
tandav karti vednaye
asmita le ja rahe
we aa rahe hai ... - Dhruv singh eklavya
परिचय : ध्रुव सिंह "एकलव्य''उपनाम : 'एकलव्य' ( साहित्य में )
जन्मस्थान : वाराणसी 'काशी'
शिक्षा : विज्ञान में परास्नातक उपाधि
सम्प्रति : कोशिका विज्ञान(आनुवांशिकी ) में तकनीकी पद पर कार्यरत ( संजय गाँधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान ) लख़नऊ ,उत्तर प्रदेश ,भारत
साहित्य क्षेत्र : वर्तमान में kalprerana.blogspot.com नाम से ब्लॉग का संचालन एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में हिंदी कवितायें प्रकाशित।
'अक्षय गौरव' पत्रिका में लेखक
इंसाफ़ के लिए संघर्ष और आशाओं का सबेरा कविता का केन्द्रीय भाव है। सन्देश और मर्म व्यापकता से परिपूर्ण।
शानदार रचना गूढ़ अर्थ समेटे सकारत्मक पुंज समेटे। ध्रुव बहुत शानदार लेखन।👏👏
बहुत ही सुंदर व श्रेष्ठ, एकलव्य जी।
आशा और साहस की उम्मीद जगाती ... ओनेक भाव और विचारों से गुज़रती प्रभावी रचना ...
दिनांक 13/06/2017 को...
आप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
बहुत ही सुन्दर....
आशावाद की ओर....
सुन ! पथिक
मत हो! निराश
कर, अपने तूंं
कर! सपाट
देख!वो ललचा रहें.....
वे आ रहे है.....
वाह!!!
आशाओं और सन्देशों से परिपूर्ण सुंदर
रचना..
अनमोल विचारों हेतु
आप सभी गणमान्य लोगों का
हृदय से आभार प्रकट करता हूँ।
"एकलव्य"