कैसे-कैसे लोग हमारे जी को जलाने आ जाते हैं
कैसे-कैसे लोग हमारे जी को जलाने आ जाते हैं,अपने-अपने ग़म के फ़साने हमें सुनाने आ जाते हैं।
मेरे लिए ये ग़ैर हैं और मैं इनके लिए बेगाना हूँ
फिर एक रस्म-ए-जहाँ है जिसे निभाने आ जाते हैं।
इनसे अलग मैं रह नहीं सकता इस बेदर्द ज़माने में
मेरी ये मजबूरी मुझको याद दिलाने आ जाते हैं।
सबकी सुनकर चुप रहते हैं, दिल की बात नहीं कहते
आते-आते जीने के भी लाख बहाने आ जाते हैं। - मुनीर नियाजी
kaise kaise log hamare ji ko jalane aa jate hai
kaise kaise log hamare ji ko jalane aa jate haiapne-apne gam ke fasane hame sunane aa jate hai
mere liye ye gair hai aur mai inke liye baigana hu
fir ek rasm-e-jahaan hai jise nibhane aa jate hai
inse alag mai rah nahi sakta is bedard jamane me
meri ye majburi mujhko yaad dilane aa jate hai
sabki sunkar chup rahte hai, dil ki bat nahi kahte
aate-aate jine ke bhi laakh bahane aa jate hai - Munir Niazi
beautifull shayari
एक बहतरीन साईट।बहुत उम्दा काम हो रहा है यहाँ।
मुबारकबाद!