कुछ तो अपनी निशानिया रख जा - अमीर कज़लबाश

कुछ तो अपनी निशानिया रख जा

कुछ तो अपनी निशानिया रख जा
इन किताबो में तितलियाँ रख जा

लोग थक हार कर लौट न जाये
रास्ते में कहानियाँ रख जा

मुन्तजिर कोई तो मिले तुझको
घर के बाहर उदासियाँ रख जा

इन दरख्तों से फल नहीं गिरते
इनके नजदीक आंधियाँ रख जा

हो रहा है अगर जुदा मुझसे
मेरी आँखों पे उँगलियाँ रख जा

आज तूफ़ान भी अकेला है
तू भी साहिल पे कश्तियाँ रख जा - अमीर कज़लबाश
मायने
मुन्तजिर = प्रतीक्षारत, साहिल = किनारा


Kuch to apni nishaniya rakh ja

Kuch to apni nishaniya rakh ja
in kitabo me titliya rakh ja

log thak har kar lout n jaye
raste me kahaaniya rakh ja

muntzir koi to mile mujhko
ghar ke baahar udasiyan rakh ja

in darkhto se fal nahi girte
inke najdik aandhiyaan rakh ja

ho raha hai agar juda mujhse
meri aankho pe ungliyan rakh ja

aaj tufaan bhi akela hai
tu bhi sahil pe kashtiya rakh ja- Amir Kazalbash/Ameer Qazlbash

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