हमको मगर किसी ने पुकारा कभी न था - आलम खुर्शीद

हमको मगर किसी ने पुकारा कभी न था

ऐसा नहीं कि रुकना गवारा कभी न था
हमको मगर किसी ने पुकारा कभी न था

हालाकि याद आता है अब भी बहुत हमें
वो शहर जिसमे कोई हमारा कभी न था

हम जिसके साथ-साथ थे उसके कभी न थे
जो साथ था हमारे, हमारा कभी न था

कुछ फ़र्ज़ मेरा रास्ता रोके खड़े रहे
वरना जमी पे रहना गवारा कभी न था

अब क्यों है इन्तजार हमें वक्ते-साद का
हमराह तो हमारे सितारा कभी न था

मै बर्फ-बर्फ था सो फरेबो में आ गया
उन मुठ्ठियों में कोई शरारा कभी न था - आलम खुर्शीद
मायने
वक्ते-साद = शुभ घडी, शरारा = चिंगारी


अब सुनते है इसी ग़ज़ल को प्रीता व्यास की आवाज में, संगीत तन्मय जी ने दिया है |

aisa nahin ki rukna gawara kabhi n tha

aisa nahin ki rukna gawara kabhi n tha
hamko magar kisi ne pukara kabhi n tha

haalaki yaad aata hai ab bhi bahut hame
wo shahar jisme koi hamara kabhi n tha

ham jiske saath-saath the, uske kabhi n the
jo saath tha hamaare, hamara kabhi n tha

kuchh farz mere rasta roke khade rahe
warna zamin pe rahna gawara kabhi n tha

ab kyo hai intzaar hame wakte-saad ka
hamraah to hamaare sitara kabhi n tha

mai barf-barf tha so farebo me aa gaya
un muththiyo me koi sharara kabhi n tha - Aalam Khurshid
हमको मगर किसी ने पुकारा कभी न था

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