मुझे गर इश्क़ का अरमान होता - सरशार सिद्दीकी

मुझे गर इश्क़ का अरमान होता

मुझे गर इश्क़ का अरमान होता,
तो घर में 'मीर' का दीवाना होता |

किसी तकरीब का सामान होता,
कि हमसाया मेरा सामान होता |

न होते फ़ासलों के शहर में हम,
तो फिर मिलना बहुत आसान होता |

अगर सब लोग होते मुझसे छोटे,
तो मै सबसे बड़ा इंसान होता |

जिसे दिल में छिपाए फिर रहे,
अगर लब पर वही तूफ़ान होता |

तेरी महफ़िल में आ कर सोचता कि,
न आता, तो बहुत नुकसान होता |

जो मै सच्ची ग़ज़ल लिखता, तो 'सरशार',
वही हर शेर का उन्वान होता | - सरशार सिद्दीकी
मायने
उन्वान = शीर्षक


mujhe gar ishq ka arman hota

mujhe gar ishq ka arman hota,
to ghar me Meer ka deewana hota

kisi taqreeb ka saaman hota,
ki hamsaya mera saman hota

n hote faslon ke shahar me ham,
to fir milna bahut aasan hota

agar sab log hote mujhse chhote,
to mai sabse bada insaan hota

jise dil me chhipae fir rahe,
agar lab par wahi tufaan hota

teri mahfil me aa kar sochta ki,
n aata, to bahut nuksaan hota

jo mai sachchi ghazal likhta, to 'Sarshar',
wahi har sher ka unwaan hota - Sarshar Siddiqui

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