तेरी खुशबु में जलना चाहता हूँ
तेरी खुशबु में जलना चाहता हूँमै पत्थर हूँ, पिघलना चाहता हूँ
उजालो ने दिए है जख्म ऐसे
कि जिस्मो-जा बदलना चाहता हूँ
मै अपनी प्यास का सहरा हूँ लेकिन
समंदर बन के चलना चाहता हूँ
मेरे चेहरे पे खालों-खंद है किस के
मै आईना बदलना चाहता हूँ
शिकस्ता आयनों का अक्स हूँ मै
चट्टानों को कुचलना चाहता हूँ
खयालो-ख्वाब के सब घर जला कर
बदन की सम्त चलना चाहता हूँ
अगर सूरज नही हूँ मै, तो फिर क्यों
अंधेरो से निकलना चाहता हूँ मै - जाज़िब कुरैशी
मायने
सहरा = जंगल/रेगिस्तान, खालो-खंद = नयन-शिख, शिकस्ता = टूटे हुए, सम्त = तरफ
teri khushbu me jalna chahta hun
teri khushbu me jalna chahta hunmai patthar hu, pighlana chahta hun
ujalo ne diye jakhm aise
ki jismo-ja badalana chahta hun
mai apni pyas ka sahra hu lekin
samndar ban ke chalna chahta hun
mere chehre pe khalo-band hai kis ke
mai aaina badlana chahta hun
shiksta aaino ka aks hu mai
chattano ko kuchlana chahta hun
khyalo-khwab ke sab ghar jala kar
badan ki samt chalna chahta hun
agar suraj nahi hu mai, to phir kyo
andhero se niklana chahta hu mai - Jazib Qureshi