अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे
इस ग़ज़ल के मतले को सुनकर ग़ालिब उछल पड़े थे |अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे
मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएँगे
तुम ने ठहराई अगर ग़ैर के घर जाने की
तो इरादे यहाँ कुछ और ठहर जाएँगे
ख़ाली ऐ चारागरो होंगे बहुत मरहम-दाँ
पर मिरे ज़ख़्म नहीं ऐसे कि भर जाएँगे
पहुँचेंगे रहगुज़र-ए-यार तलक क्यूँ कर हम
पहले जब तक न दो आलम से गुज़र जाएँगे
शोला-ए-आह को बिजली की तरह चमकाऊँ
पर मुझे डर है कि वो देख के डर जाएँगे
हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर
बल्कि पूछेगा ख़ुदा भी तो मुकर जाएँगे
आग दोज़ख़ की भी हो जाएगी पानी पानी
जब ये आसी अरक़-ए-शर्म से तर जाएँगे
नहीं पाएगा निशाँ कोई हमारा हरगिज़
हम जहाँ से रविश-ए-तीर-ए-नज़र जाएँगे
सामने चश्म-ए-गुहर-बार के कह दो दरिया
चढ़ के गर आए तो नज़रों से उतर जाएँगे
लाए जो मस्त हैं तुर्बत पे गुलाबी आँखें
और अगर कुछ नहीं दो फूल तो धर जाएँगे
रुख़-ए-रौशन से नक़ाब अपने उलट देखो तुम
मेहर-ओ-माह नज़रों से यारों की उतर जाएँगे
हम भी देखेंगे कोई अहल-ए-नज़र है कि नहीं
याँ से जब हम रविश-ए-तीर-ए-नज़र जाएँगे
'ज़ौक़' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला
उन को मय-ख़ाने में ले आओ सँवर जाएँगे - शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
मायने
चश्मे-गुहरबार = मोती बरसाने वाले नेत्र, चारागरो = इलाज करने वाले, दो-आलम = लोक-परीलोक, आसी = गुनाहगार, अर्के-शर्म = शर्म का पसीना, रूखे-रौशन = खूबसूरत चेहरा, मेहरो-मह = चाँद-सूरज
ab to ghabra ke ye kahte hain ki mar jayenge
ab to ghabra ke ye kahte hain ki mar jayengemar ke bhi chain na paya to kidhar jayenge
tum ne thahrai agar ghair ke ghar jaane ki
to irade yahan kuchh aur thahar jayenge
khali ae chaaragaro honge bahut marham-dan
par mere zakhm nahin aise ki bhar jayenge
pahunchenge rahguzar-e-yar talak kyun kar hum
pahle jab tak na do aalam se guzar jayenge
shola-e-aah ko bijli ki tarah chamkaun
par mujhe dar hai ki wo dekh ke dar jayenge
hum nahin wo jo karen khun ka dawa tujh par
balki puchhega khuda bhi to mukar jayenge
aag dozakh ki bhi ho jaegi pani pani
jab ye aasi araq-e-sharm se tar jayenge
nahin paega nishan koi hamara hargiz
hum jahan se rawish-e-tir-e-nazar jayenge
samne chashm-e-guhar-bar ke kah do dariya
chadh ke gar aae to nazron se utar jayenge
lae jo mast hain turbat pe gulabi aankhen
aur agar kuchh nahin do phul to dhar jayenge
rukh-e-raushan se naqab apne ulat dekho tum
mehr-o-mah nazron se yaron ki utar jayenge
hum bhi dekhenge koi ahl-e-nazar hai ki nahin
yan se jab hum rawish-e-tir-e-nazar jayenge
'zauq' jo madrase ke bigde hue hain mulla
un ko mai-khane mein le aao sanwar jayenge
- Shaikh Ibrahim Zouq