सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है
सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में हैबस नहीं चलता कि फिर ख़ंजर कफ़-ए-क़ातिल में है
देखना तक़रीर की लज़्ज़त कि जो उस ने कहा
मैं ने ये जाना कि गोया ये भी मेरे दिल में है
गरचे है किस किस बुराई से वले बाईं-हमा
ज़िक्र मेरा मुझ से बेहतर है कि उस महफ़िल में है
बस हुजूम-ए-ना-उमीदी ख़ाक में मिल जाएगी
ये जो इक लज़्ज़त हमारी सई-ए-बे-हासिल में है
रंज-ए-रह क्यूँ खींचिए वामांदगी को इश्क़ है
उठ नहीं सकता हमारा जो क़दम मंज़िल में है
जल्वा ज़ार-ए-आतिश-ए-दोज़ख़ हमारा दिल सही
फ़ित्ना-ए-शोर-ए-क़यामत किस के आब-ओ-गिल में है
है दिल-ए-शोरीदा-ए-'ग़ालिब' तिलिस्म-ए-पेच-ओ-ताब
रहम कर अपनी तमन्ना पर कि किस मुश्किल में है - मिर्ज़ा ग़ालिब
मायने
कफ़े-कातिल = कातिल के हाथ, वा ई हमा = इस सबके बावजूद, सइ-ए-बेहासिल = व्यर्थ प्रयास, रंज-ए-रह = राह के दर्द, जल्वा-जारे-आतशे-दौजख = नरक कि आग से भरा हुआ, फितना-ए-शोरे-कयामत = प्रलय के शोर का फितना, आब-ओ-गिल = पानी और मिटटी, दिले-शौरिदा-ए-ग़ालिब = ग़ालिब का व्याकुल दिल, तिलिस्म-ए-पेच-ओ-ताब = व्याकुलता का जादू घर
Sadgi par uski mar jaane ki hasrat dil me hai
Sadgi par uski mar jaane ki hasrat dil me haibas nai chalta, ki phir khanzar kafe-qatil me hai
dekhan takreer ki lajjat ki jo usne kaha
maine yah jana ki goya ye bhi mere dil me hai
garche hai kis-kis burai se, wale wa i hama
zikr mera mujhse behtar hai ki us mahfil me hai
bas, hujum - noumidi, khaq me mil jayegi
ye jo ek lajjat hamari sae-a-behasil me hai
ranje- rah kyo khichiye khandagi se ishq hai
uth nahi sakta hamara jo kadam manzil me hai
jalwa- qare-aatshe-doujakh hamara dil sahi
fitna-eshore-kayamat kiske aabo-gil me hai
fitna-e-shourida-e-ghalib tilisme-pech-o-taab
raham kar apni apni tamnna par ki kis mushkil me hai - Mirza Ghalib