खंडहर बचे हुए है, इमारत नहीं रही
खंडहर बचे हुए है, इमारत नहीं रही,अच्छा हुआ कि सर पे कोई छत नहीं रही |
कैसी मशाले लेके चले तीरगी में आप,
जो रौशनी थी वो भी सलामत नहीं रही |
हमने तमाम उम्र अकेले सफ़र किया,
हम पर किसी खुदा की इनायत नहीं रही |
मेरे चमन में कोई नशेमन नहीं रहा,
या यु कहो की बर्क की दहशत नहीं रही |
हमको पता नहीं था हमें अब पता चला
इस मुल्क में हमारी हक़ूमत नहीं रही
कुछ दोस्तों से वैसे मरासिम नहीं रहे
कुछ दुश्मनों से वैसी अदावत नहीं रही
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते है लोग,
रो-रो के बात कहने की आदत नहीं रही |
सीने में जिन्दगी के अलामात है अभी,
गो जिन्दगी की कोई जरुरत नहीं रही |- दुष्यंत कुमार
Khandhar bache hue hai, imaarata nahi rahi
Khandhar bache hue hai, imaarata nahi rahiachcha hua sar pe koi chhat nahi rahi
kaisi mashale le ke chale teeragi me aap,
jo roshni thi wo bhi salamat nahi rahi
hamne tamaam umr akele safar kiya
ham par kisi khuda ki inayat nahi rahi
mere chaman me koi nasheman nahi raha,
ya yu kaho ki bark ki dahshat nahi rahi
hamko pata nahi tha, hame ab pata chala
is mulk me hamari hukumat nahi rahi
kuchh dostose waise marasim nahi rahe
kuchh dushmano se waisi adawat nahi rahi
himmat se sach kaho to bura mante hai log
ro-ro ke baat kahne ki aadat nahi rahi
seene me jindgi ke alaamaat hai abhi
go jindgi ki koi jarurat nahi rahi - Dushyant Kumar
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (25-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग ...
रो रो कर बात कहने की आदत नहीं रही ...
लाजवाब !
दुष्यंत जी की ग़ज़ल पर क्या कहा जाए...बस सर झुका कर मन ही मन नमन करते हैं उन्हें
नीरज
लाजवाब शेर हैं दुष्यत जी के ...
ग़ज़ल पढवाने के लिए शुक्रिया .....
लाज़वाब गज़ल..दुष्यंत जी की गज़ल पढवाने के लिये आभार
lajawaab prastuti.
बहुत सुन्दर गज़ल्।