दुनिया मेरी नज़र से तुझे देखती रही - मेहर लाल ज़िया फतेहाबादी

दुनिया मेरी नज़र से तुझे देखती रही फिर मेरे देखने में बता क्या कमी रही

दुनिया मेरी नज़र से तुझे देखती रही

दुनिया मेरी नज़र से तुझे देखती रही
फिर मेरे देखने में बता क्या कमी रही

क्या ग़म अगर क़रार ओ सुकूँ की कमी रही
ख़ुश हूँ कामयाब मेरी ज़िन्दगी रही

इक दर्द था जिगर में जो उठता रहा मुदाम
इक आग थी कि दिल में बराबर लगी रही

दामन दरीदा लब पे फुगाँ आँख खूँचकाँ
गिरकर तेरी नज़र से मेरी बेकसी रही

आई बहार जाम चले मय लुटी मगर
जो तिशनगी थी मुझको वही तिशनगी रही

खोई हुई थी तेरी तजल्ली में कायनात
फ़िर भी मेरी निग़ाह तुझे ढूँढती रही

जलती रहीं उम्मीद की शम्में तमाम रात
मायूस दिल में कुछ तो " ज़िया " रोशनी रही - मेहर लाल ज़िया फतेहाबादी
Contributed by Ravinder Soni (रविंदर सोनी)


duniya meri nazar se tujhe dekhti rahi

duniya meri nazar se tujhe dekhti rahi
fir mere dekhne me bata kya kami rahi

kya gam agar kara-o-sukun ki kami rahi
khush hu kamyab meri zindgi rahi

ik dard tha zigar me jo uthta raha mudam
ik aag thi ki dil me barabar aag lagi rahi

daaman darida lab pe fuga aankh khunchka
girkar teri nazar se meri beksi rahi

aai bahaar jaam chale gaye may luti magar
jo tishnagi thi mujhko wahi tishnagi rahi

khoi hui thi teri tazlli me kaynaat
fir bhi meri nigaah tujhe dhundhti rahi

jalti rahi ummid ki shamme tamam raat
mayus dil me kuch to "Zia" roadhni rahi- Mehr Lal Soni Zia Fatehabadi

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