मौज-ए-गम गुल क़तर गई होगी - मेहर लाल ज़िया फतेहाबादी

मौज-ए-गम गुल क़तर गई होगी नदी चढ़ कर उतर गई होगी

मौज-ए-गम गुल क़तर गई होगी

मौज-ए-गम गुल क़तर गई होगी
नदी चढ़ कर उतर गई होगी

गर्क होना था जिस को वो किश्ती
साहिलों से गुज़र गई होगी

हम ज़मी वालो की जो पहले पहल
आसमाँ पर नज़र गई होगी

आईनाखाने मै बा हर सूरत
आब ओ ताब ए गुहर गई होगी

हादसों आफतों मसाइब से
जिंदगी क्या जो डर गई होगी

उस सफ़र मै खलाओं के ता दूर
हसरत ए बाल ओ पर गई होगी

ए जिया बात अकल ओ दानिश की
दिल का नुकसान कर गई होगी- मेहर लाल ज़िया फतेहाबादी


mauz-e-gham gul qatar gai hogi

mauz-e-gham gul qatar gai hogi
nadi chadh kar utar gai hogi

garq hona tha jis ko wo kishti
sahilo se guzar gai hogi

ham zameen walo ki jo pahle pahal
aasmaaN par nazar gai hogi

aainakhane mai baa har surat
aab o taab ae guhar gai hogi

hadso aafto masaaib se
zindagi kya jo dar gai hogi

us safar mai khalaon ke taa door
hasrat e baal o par gai hogi

ae zia baat akal o danish ki
dil ka nuksan kar gai hogi - Mehr Lal Zia Fatehabadi

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