अजनबी दुनिया में तेरा आशना मैं ही तो था
अजनबी दुनिया में तेरा आशना मैं ही तो थादी सज़ा तू ने जिसे वो बेख़ता मैं ही तो था
मैं जो टूटा हो गया हंगामा ए महशर बपा
तार ए साज़ ए बेसदा ओ बेनवा मैं ही तो था
नाख़ुदा ओ मौज ए तूफ़ान की शिकायत क्या करूं
जिस ने ख़ुद किश्ती डुबो दी ऐ ख़ुदा मैं ही तो था
उस को बाहर ला के रुसवा कर दिया बाज़ार में
जो मुझे अन्दर से देता था सदा मैं ही तो था
ता अबद करना पडेगा सुबह ए नौ का इन्तिज़ार
मुन्तज़िर रोज़ ए अज़ल से शाम का मैं ही तो था
हो गया मसरूर बुत अपनी अना को तोड़ कर
दरमियान ए मा ओ तो इक फ़ासला मैं ही तो था
था 'ज़िया' अहसास ए तन्हाई भरी महफ़िल में भी
मुझ से रह कर भी जुदा जो था मेरा मैं ही तो था -मेहर लाल ज़िया फतेहाबादी
ajnabi duniya me tera aashna main hi to tha
ajnabi duniya me tera aashna main hi to thadi saja tu ne jise wo bekhta main hi to tha
main jo tuta ho gaya hangama e mashhar bapaa
taar e saaj ae besada o benwa mai hi to tha
nakhuda o mauz e tufaan ki shikayat kya karun
jis ne khud kishti dubo di ae khuda main hi to tha
us ko bahar la ke ruswa kar diya nazar me
jo mujhe andar se deta tha sada main hi to tha
taa abad karna padega subah ae nau ka intizar
muntzir roz e azal se sham ka mai hi to tha
ho gaya masrur boot apni ana ko tod kar
darmiyan e maa o to ek fasla mai hi to tha
tha 'Zia' ahsas ae tanhai bhari mahfil me bhi
mujh se rah kar bhi juda jo tha mera main hi to tha - Mehr Lal Zia Fatehabadi
बहुत अच्छी ग़ज़ल पढवाने का शुक्रिया।
भावपूर्ण सुन्दर ग़ज़ल पढवाने के लिए शुक्रिया।
bahut khubsurat gazal
thanx dost